बढ़ते अतिक्रमण के चलते सूख रहे इस पर्वतीय राज्य में ग्लेशियर नदियों के जलस्रोत

punjabkesari.in Saturday, Feb 24, 2018 - 03:19 PM (IST)

देहरादून/ब्यूरो। बदलते पर्यावरण का प्रभाव हिमालय पर भी पड़ रहा है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। हालात ऐसे हो रहे हैं कि उत्तराखंड की बारहमासी नदियां मौसमी नदियों में तब्दील हो रही हैं। ये वे नदियां हैं जिन्हें ग्लेशियर से पानी मिलता था। यह बात ग्राफिक एरा विवि में आयोजित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन में वक्ताओं ने कही। सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि राज्य की 40 नदियां अपना स्वरूप बदल रही हैं।

 

यह खतरनाक संकेत हैं। इससे हमें सावधान होने की जरूरत है। ग्राफिक एरा विवि में शुक्रवार को दो दिवसीय यूसर्क राज्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी सम्मलेन शुरू हुआ। सम्मलेन के आयोजक और यूसर्क के निदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा कि उनकी संस्था देहरादून में रिस्पना और अल्मोड़ा की कोसी नदी के पुनर्जीवन के लिए काम कर रही है।

कोसी के ज्यादातर जलस्रोत सूख गए हैं। वहीं, रिस्पना देहरादून घाटी में अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। रिस्पना के पानी में ई-कोली बैक्टीरिया पाए गए हैं, जो पेट के रोगों की जड़ हैं। सम्मेलन में कोसी और रिस्पना नदियों पर जानकारों ने प्रजेंटेशन दिए।

 

मैड संस्था के अभिजय नेगी ने कहा कि रिस्पना नदी का स्वरूप बिगाड़ने में इसके किनारे होने वाले अतिक्रमण बड़ी वजह हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रो. जे.एस. रावत ने बताया कि ग्लेशियर के पानी से भरी रहने वाली अल्मोड़ा की कोसी नदी अब मौसमी नदी में तब्दील होती जा रही है।

कोसी की लम्बाई साठ वर्ष पहले 225 किमी थी, जो अब घटकर मात्र 41 किमी रह गई है। यह बेहद चिंताजनक है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सी.सी. पंत ने नैनीताल की प्रसिद्ध नैनी झील की स्थिति से रूबरू करवाया। पंत ने कहा कि नैनी झील में हर वर्ष करीब 69 घन मीटर मलबा समा रहा है।

 

झील को रिचार्ज करने वाला सूखाताल अतिक्रमण की चपेट में है। पड़ोस की भीमताल झील भी लगातार सिकुड़ रही है। झील 30 किलोमीटर से सिकुड़कर 25 किमी ही रह गयी है। सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद ने कहा कि उनके स्मरण में रिस्पना का पानी बहुत साफ था।

ग्राफिक एरा के चेयरमैन कमल घनसाला ने कहा कि उत्तराखंड की नदियों और तालाबों में पानी की कमी होना बहुत गंभीर बात है। इस दिशा में समय रहते उचित कदम उठाए जाने की जरूरत है।


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