महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा: इस प्रदेश के 625 मंदिरों में महिलाएं बनाएंगी प्रसाद

punjabkesari.in Saturday, Feb 24, 2018 - 02:59 PM (IST)

देहरादून/ब्यूरो। उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ और गंगोत्री-यमुनोत्री समेत प्रदेश के 625 मंदिरों में महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा निर्मित प्रसाद बिकवाने का फैसला लिया है। स्थानीय खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देने के साथ ही किसानों की आय दोगुनी करने और इसके माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना में गैर राजनीतिक संगठन हेस्को का सहयोग भी लिया जाएगा।

 

शुक्रवार को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और हेस्को के प्रमुख पद्मश्री अनिल जोशी ने सचिवालय के मीडिया सेंटर में इस योजना की जानकारी दी। सीएम ने बताया कि बदरीनाथ धाम के आसपास बसे गांव के चार महिला स्वयं सहायता समूहों ने घाट निवासी गोविंद सिंह महर के नेतृत्व में स्थानीय उत्पाद चौलाई के आटे से एक तरह का प्रसाद तैयार किया था। पिछले वर्ष राज्य सरकार ने गोविंद सिंह को बदरीनाथ धाम में प्रसाद बेचने के लिए एक दुकान उपलब्ध कराई। इस दुकान से कुल 19 लाख का प्रसाद भक्तों ने खरीदा।

 

इसमें कुल लागत दस लाख रुपये आई थी, जो क्षेत्र की चार महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किया गया था। सीएम ने कहा कि दस लाख रुपये की लागत से बना प्रसाद 19 लाख में बिका। यानी इस काम में शामिल चार महिला स्वयं सहायता समूहों और दुकानदार को एक सीजन में नौ लाख रुपये का फायदा हुआ। एक स्वयं सहायता समूह में दस महिलाएं होती हैं। बकौल सीएम यह एक अद्भुत प्रयोग था। इससे एक तो चौलाई जैसे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिला। दूसरा, इससे महिला सशक्तीकरण का रास्ता साफ हुआ।

सरकार ने इस योजना को विस्तार देने का निर्णय लिया है। इसके तहत प्रदेश के 625 मंदिरों में स्थानीय उत्पादों पर आधारित प्रसाद बेचने का निर्णय लिया गया है। सीएम ने बताया कि एक मंदिर में कम से कम चार से पांच स्वयं सहायता समूहों की जरूरत पड़ेगी। यानी एक मंदिर से चालीस से पचास परिवारों को रोजगार मिलेगा। इस काम में हेस्को की ओर से तकनीकी सहायता दी जाएगी। प्रसाद का नामकरण स्थानीय जरूरतों और भावनाओं को ध्यान में रखकर किया जाएगा। जैसे बदरीनाथ में बिकने वाला प्रसाद पंचभोग के नाम से बिकेगा।

 

इस साल होगा 80 लाख का लक्ष्य

 

आने वाले यात्रा सीजन में सरकार का यह प्रयास होगा कि प्रदेश के सभी मंदिरों में स्थानीय उत्पादों से निर्मित प्रसाद की कम से कम एक दुकान हो। जिलाधिकारी की यह ड्यूटी होगी कि वह मंदिर परिसर में या मंदिर के निकट स्वयं सहायता समूह को दुकान उपलब्ध कराए। प्रसाद में चौलाई, मंडुआ जैसे स्थानीय उत्पादों से निर्मित भोग, एक रंगीन शिला जिस पर भगवान की आकृति होगी, धूप, अगरबत्ती और स्थानीय फूल रखे जाएंगे।

इसकी कीमत 551, 501, 251, 151 और 101 रुपये होगी। पहले वर्ष में 80 लाख रुपये की कमाई का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य प्रति वर्ष बढ़ता जाएगा। सरकार का मानना है कि प्रदेश की आबादी एक करोड़ पांच लाख है।

इसके अतिरिक्त तीन करोड़ 15 लाख सैलानी और श्रद्धालु प्रति वर्ष इस प्रदेश में आते हैं। मंदिरों में दर्शन करते हैं। इन सभी श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों तक प्रसाद की ब्रांडिंग करना, लक्ष्य रखा गया है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि गैर राजनीतिक संगठन हेस्को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।


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