आस्था या अंधविश्वास: यहां इलाज के लिए लोहे की गर्म सलाखों से बच्चों को जाता है दागा

punjabkesari.in Wednesday, Jan 16, 2019 - 03:27 PM (IST)

जमशेदपुर: झारखंड में जमशेदपुर (Jamshedpur) से सटे हुए आदिवासी क्षेत्र (Tribal area) में इलाज की अनोखी परंपरा के बीच लोहे की गर्म सलाखों से बच्चों के पेट को दागा जाता है। जिसे चिड़ी दाग (Chidi Dhag) कहा जाता है। आधुनिक (modern) समय में ऐसे अंधविश्वास (superstition) से छोटे मासूम बच्चों की चिल्लाहट (Scream) किसी को भी विचलित (Distracted) कर सकती है। जमशेदपुर के गांवों में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) यानी आदिवासियों का टुसू पर्व (Tusu Festival) के दूसरे दिन सूर्य की लालिमा के साथ सैकड़ों बच्चों के पेट में गर्म सलाखों से दागने की प्रथा है। इन लोगों का मानना है कि इससे बच्चों के पेट की बीमारियां (disease) दूर होती हैं।

21वीं सदी (21st century) के आधुनिक समय में भी कुछ लोग बाबा आदम के जमाने की परंपराओं में बंधे हुए हैं। चिड़ी दाग की इस परंपरा के पीछे मान्यता (Accreditation) है की पर्व के दिन कई तरह के पकवान खाने से आगामी दिनों में पेट के अंदर कोई दर्द ना हो, इसलिए गर्म सलाखों से गांव के वैद्य मासूमों के पेट में दाग कर एक वर्ष तक का इलाज करते हैं। ऐसा करने से बच्चे साल भर स्वस्थ रहते हैं। इस काम को क्षेत्र के गांवों में वैद्यराज कई दशकों से करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसे पहले उनके पूर्वज किया करते थे। साथ ही कहा कि इससे किसी तरह की बीमारी नहीं होती है।

अंविश्वास की यह एक ऐसी परंपरा है जो हमारे देश को वर्तमान समय में भी हजारों वर्ष पिछड़ा होने का अहसास (Thousands of years of feeling backwardness) कराती है। जहां एक मां अपने 10 दिन के बच्चे का इलाज भी इस तरीके से करा रही होती है। इस आदिवासी क्षेत्र में बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े ओर बुजुर्ग भी दाग चिकित्सा प्रणाली से इलाज करवाते हैं। वहीं इसके बारे में एक आदिवासी बुद्धिजीवी (ribal intellectual) ने बताया कि 13वीं सदी से यह प्रयोग किया जा रहा है। मकर संक्रांति के दूसरे दिन धरती का गुरुत्व बल  (Gravity force of the Earth) बढ़ने से लोहे की गर्म सलाखों से दागने से पेट की परेशानी एक वर्ष तक खत्म हो जाती है।

prachi