मकर संक्रांति के दिन श्रीराम ने भी उड़ाई थी पतंग, जो पहुंच गई थी इंद्रलोक

punjabkesari.in Tuesday, Jan 16, 2018 - 09:41 AM (IST)

इलाहाबाद: देश में पतंग उड़ाने की प्रथा की शुरूआत का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन मान्यता है कि पतंग उड़ाने की शुरूआत भगवान श्री राम ने मकर संक्रांति के दिन की थी। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि राम इक दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुंची जाई। यह चौपाई लिखकर तुलसीदास जी ने बता दिया था कि पतंग उड़ाने की शुरूआत औरों से पहले श्रीराम ने की थी।

मकर संक्रांति वर्ष का पहला त्यौहार होता है। इस दिन लोग नदी में स्नान कर दान पुण्य करते हैं और देश के कुछ हिस्सों में पतंग भी उड़ाने की परम्परा है। इस परम्परा की शुरूआत भगवान राम ने की थी। तुलसी दास जी ने राम चरित मानस में भगवान श्री राम के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए लिखा है कि भगवान श्री राम ने भी पतंग उड़ाई थी।

रामायण के अनुसार मकर संक्रांति का वह पावन दिन रहा होगा जब भगवान श्री राम और अंजनी पुत्र हनुमान की मित्रता हुई। तन्दनान रामायण में भी इस घटना का जिक्र किया गया है। इस रामायण के अनुसार मकर संक्रांति ही वह पावन दिन था जब भगवान श्री राम और हनुमान जी की मित्रता हुई। मान्यताओं के अनुसार तभी से पतंग उड़ाने का रिवाज मकर संक्रांति के साथ जुड़ा हुआ है। मकर संक्रांति के दिन लोग घरों की छतों से पतंग उड़ाकर इस त्यौहार को मनाते हैं। कई जगह पर तो पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

इन देशों में भी पतंग उड़ाने की परम्परा
भारत के अलावा चीन, इंडोनेशिया, थाइलैंड, अफगानिस्तान, मलेशिया जापान और अन्य एशियाई देशों तथा कनाडा, अमेरिका, फ्रांस, स्विटजरलैंड, हालैंड, इंगलैंड आदि देशों में भी पतंग उड़ाने की परम्परा लंबे समय से चली आ रही है।

चीन में हुआ था पतंग का आविष्कार
यह माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व चीन में हुआ था। जापान में पतंगे उड़ाना और पतंगोत्सव एक सांस्कृतिक परम्परा है। भारत में पतंग परम्परा की शुरूआत शाह आलम के समय 18वीं सदी में की गई लेकिन भारतीय साहित्य में पतंगों की चर्चा 13वीं सदी से ही की गई है। मराठी संत नामदेव ने अपनी रचनाओं में पतंग का जिक्र किया है लेकिन ऐसे प्रसंगों से संकेत भी मिलते हैं, कि दुनिया में पतंग का आविष्कार भारत में ही हुआ हो, क्योंकि रामचरित मानस में महाकवि तुलसीदास जी ने बालकांड में उन प्रसंगों का उल्लेख किया है जब भगवान श्री राम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी।

उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है पतंग
मान्यता है कि पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है, संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वे शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है। एक छोटी-सी पतंग एकता का पाठ भी सिखाती है क्योंकि पतंग अकेले नहीं उड़ाई जाती। कोई मांझा पकड़ता है तो डोर किसी और के हाथ में होती है। यही नहीं पतंग के जरिए लोग हार-जीत का अंतर भी समझते हैं।

क्या हैं दंत कथाएं
प्राचीन दंत कथाओं पर विश्वास किया जाए तो चीन और जापान में पतंगों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यूं ही छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्यौता देना के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और उसका जन्म दिवस लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस साल उस बच्चे से जुड़े सारे दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाएं, मान्यताओं के मुताबिक थाइलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिए पतंग उड़ाते थे जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना जाता था।