सपा से हाथ मिलाकर राज्यसभा जाएंगे अजीत सिंह ?

punjabkesari.in Sunday, May 29, 2016 - 05:17 PM (IST)

लखनऊ:  राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने सपा से हाथ मिलाकर राज्यसभा जाने का प्लेटफॉर्म तैयार कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक, मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव की मौजूदगी में अजीत सिंह के घर हुई मीटिंग में रालोद ने सपा से गठबंधन करने का फैसला कर लिया है। इसके पीछे रालोद की मजबूरी साफ दिखती है, लेकिन सपा को आखिर अजीत सिंह की जरूरत क्यों आन पड़ी ? खास तौर पर तब जबकि इससे पहले खुद अजीत सिंह ने रालोद का सपा में विलय करने से इंकार कर दिया था।

अजीत सिंह की मजबूरी
रालोद के पास यूपी विधानसभा में इतनी शक्ति नहीं है कि वह अपने दम पर किसी को राज्यसभा भेज सके। यहां तक कि उसकी 8 सीटों के इतर जो 10 सीटें निर्दलीय हैं उनके समर्थन के बाद भी यह मुमकिन नहीं है। लिहाजा अजीत सिंह ने चतुराई से सपा से गठजोड़ का फैसला लिया है। वह कांग्रेस से भी समर्थन नहीं हासिल कर सकते क्योंकि कांग्रेस पहले से ही कपिल सिब्बल को उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। ऐसे में अजीत सिंह को समझ आ गया कि कांग्रेस के साथ बने रहना उनके लिए फायदेमंद नहीं है।

सपा की ये कैसी रणनीति ?
वर्तमान में राज्य विधानसभा में सत्ताधारी पार्टी के तौर पर सपा 229 के संख्याबल के साथ सबसे मजबूत स्थिति में है। वह अपने 7 प्रत्याशी राज्यसभा के लिए नामित भी कर चुकी है। लेकिन अचानक अजीत सिंह को साथ लेने से उसे एक प्रत्याशी को बैठाना पड़ेगा। सवाल यह है कि आखिर अजीत सिंह को राज्यसभा के लिए समर्थन देने के पीछे सपा की कौन सी रणनीति है? इसके दूरगामी परिणाम क्या रहेंगे, ये भविष्य के गर्भ में हैं।

क्या है राज्यसभा का गणित ?
राज्यसभा सदस्य बनने के लिए 35 विधायकों का समर्थन होना जरूरी है। यानि कोई भी पार्टी इसी गणित के हिसाब से प्रत्याशी घोषित कर सकती है। सपा ने 229 सीटों के साथ 7 प्रत्याशी घोषित किए हैं। बसपा ने 80 सीटों के साथ 2 प्रत्याशी घोषित किए हैं।

सपा को एक प्रत्याशी बैठाना पड़ेगा!
अगर समाजवादी पार्टी रालोद के साथ मिलकर अजीत सिंह को राज्यसभा भेजना चाहती है तो उसे एक प्रत्याशी को बैठाना पड़ेगा. क्योंकि सपा और रालोद की संख्या को जोड़ेंगे तो कुल आंकड़ा 237 आएगा, जो एक प्रत्याशी से 3 सीट कम है. अब ऐसे में दिलचस्प ये भी रहेगा कि गाज किस पर गिरती है?

बता दें कि यूपी में कांग्रेस ने कपिल सिब्बल को प्रत्याशी बनाकर अजीत सिंह की छवि को कमतर दिखाने का प्रयास किया है। बहरहाल अजीत सिंह ने दूरदर्शी सोच रखते हुए इस फैसले को मंजूरी दी है। वे अब तक उस कांग्रेस के साथ राज्य में सर्वाइव कर रहे थे जिसका स्वंय का वजूद खतरे में पड़ चुका है। लिहाजा राजनैतिक दांव खेलते हुए अजीत सिंह सपा के साथ जाने में भलाई समझ रहे हैं।