60 हजार करोड़ की परियोजना और ‘टीपू’ की चुनौती

punjabkesari.in Friday, Feb 03, 2017 - 03:26 PM (IST)

लखनऊ:चुनाव की घोषणा से पहले अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में करीब 300 परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई थी और दर्जनों परियोजनाओं का उद्घाटन किया था। लखनऊ में एक दिन के अंदर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केवल 4 घंटे के अंदर 60000 करोड़ रुपए की परियोजना की घोषणा कर दी। अस्पताल से लेकर स्टेडियम और किसान बाजार तक की परियोजनाओं में उत्तर प्रदेश के हर वर्ग को संतुष्ट करने की कोशिश की गई। आगरा लखनऊ एक्सप्रैस वे के बाद उन्होंने गोमती रिवरफ्रंट प्रोजैक्ट को हरी झंडी दिखाई और साथ ही लखनऊ मैट्रो का ट्रायल शुरू किया।

सपा सरकार अपराध पर काबू पाने में नहीं रही सफल
अखिलेश यादव ने इन योजनाओं के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की कि सरकार राज्य के विकास के लिए काम कर रही है और साथ ही उनका उद्देश्य यह भी था कि लोगों का ध्यान समाजवादी पार्टी के भीतर चल रहे अंतर्कलह से बंटाया जा सके। साथ ही अखिलेश का यह प्रयास सत्ता विरोधी लहर को रोकने का एक प्रयास भी था लेकिन अखिलेश की इन योजनाओं ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए अपेक्षा के अनुकूल माहौल नहीं बनाया क्योंकि लोगों के दिमाग में कई अन्य संशय हैं, जिसे इन योजनाओं के माध्यम से दूर नहीं किया जा सकता है। इन्हीं में से एक समस्या है कानून और व्यवस्था की, जिसे संभालने में अखिलेश यादव की सरकार पूरी तरह से सफल नहीं रह पाई है और लोगों के मन में सरकार की प्रशासनिक नीतियों के लिए ऐसा संशय हमेशा बनी रहती है। लोगों का विचार है कि सपा सरकार अपराध पर काबू पाने में सफल नहीं रही है और राज्य में अपराध का ग्राफ बढ़ा ही है। कानून व्यवस्था की इस समस्या को सपा के उन नेताओं ने और बढ़ा दिया है,जो एस.यू.वी. में सपा का झंडा के साथ सायरन लगाकर चलते हैं। यह समस्या हर शहर में देखने को मिलती है, जिसके कारण सपा सरकार के प्रति लोगों का नजरिया थोड़ा बदला-बदला रहता है।

मुलायम-शिवपाल ने अखिलेश यादव के लिए परेशानी पैदा की
अखिलेश के साथ दूसरी समस्या पारिवारिक कलह की भी रही है। जब चुनाव आयोग ने अखिलेश को पार्टी की कमान और चिन्ह दोनों सौंप दिए, तो मुलायम सिंह यादव चुप नहीं रहे, बल्कि उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वह इससे खुश नहीं हैं और वह चुपचाप रहकर इस तमाशे को देखते भी नहीं रह सकते हैं। यही नहीं, उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि वह सपा उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं करेंगे। इससे भी अखिलेश को परेशानी हुई। मुलायम सिंह के साथ-साथ अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव ने भी अखिलेश के लिए परेशानी पैदा की है। उन्होंने हार नहीं मानी और अखिलेश को पार्टी का सर्वेसर्वा मानने से इन्कार भी किया। शिवपाल यादव हमेशा अखिलेश पर तंज कसते रहे और साथ ही उन्होंने तो यह कहने से भी परहेज नहीं किया कि जिन लोगों को टिकट नहीं दिया गया है, वे अगर चुनाव लड़ते हैं तो शिवपाल उनके लिए प्रचार भी करेंगे।

अंबिका चौधरी ने थामा बसपा का हाथ
पारिवारिक कलह के साथ-साथ अखिलेश को अपनी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का भी कोपभाजन बनना पड़ा। वरिष्ठ नेता अंबिका चौधरी ने बसपा का हाथ थामा और बसपा प्रमुख मायावती ने संवाददाता सम्मेलन का आयोजन कर इसका फायदा उठाने की कोशिश की। इसी तरह दूसरे वरिष्ठ नेता नारद राय भी पार्टी छोड़कर अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हो गए। बता दें कि मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल को बसपा में विलय कराने के लिए अंबिका चौधरी ने ही मायावती को सलाह दी थी और अंसारी बंधुओं का इस्तेमाल पूर्वी यू.पी. के मुस्लिम वोट लेने के लिए इस्तेमाल करने की बात कही थी। इसके अलावा अखिलेश यादव ने मीडिया प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान दिया है। स्टीव जार्डिंग को अपना मीडिया सलाहकार बनाकर उन्होंने यह सोच लिया कि उनके 4 साल के किए गए कामों को कुछ घोषणाओं के माध्यम से मीडिया भुला देगी लेकिन ऐसा होना आसान नहीं है। मीडिया ने उन मामलों को भी उठाया, जो अखिलेश के पिछले 5 सालों के शासन काल के दौरान सुर्खियों में रही थी और जिससे लोगों को परेशानी उठानी पड़ी थी।

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