अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर समझौते का मसौदा 15-16 नवंबर तक कोर्ट में दाखिल होगा: नरेंद्र गिरि

punjabkesari.in Monday, Nov 13, 2017 - 03:11 PM (IST)

इलाहाबाद: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने साेमवार कहा कि अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे को लेकर शिया वक्फ बोर्ड के साथ सुलह समझौते में गतिरोध लगभग दूर हो गया है और समझौते का मसौदा 15-16 नवंबर तक उच्चतम न्यायालय में दाखिल कर दिया जाएगा। 

यहां बाघंबरी गद्दी में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी के साथ बैठक के बाद गिरि ने संवाददाताओं को बताया, ‘कल अयोध्या में रिजवी जी (शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष) के साथ हमारी बातचीत हुई थी जिसमें हमने एक बिंदु पर आपत्ति की थी। मस्जिद अयोध्या में बनाई जाए या फैजाबाद में बनाई जाए.. हमने इसका विरोध किया था। रिजवी साहब ने यह आपत्ति आज दूर कर दी।’’ 

उन्होंने कहा, च्च्हमारी बातचीत मुख्य पक्षकार धर्मदास एवं अन्य लोगों से हुई है। समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर होने के बाद इसे न्यायालय में दाखिल किया जाएगा। पूरी उम्मीद है कि हम इसे 15-16 नवंबर तक न्यायालय में दाखिल कर देंगे।’’  बैठक के बाद शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रिजवी ने कहा, ‘यह बात तय हो गई है कि अयोध्या या फैजाबाद में किसी नई मस्जिद का निर्माण नहीं होगा। किसी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र में मस्जिद के लिए जगह चिह्नित कर शिया वक्फ बोर्ड सरकार को अवगत कराएगा। अब इस मामले में मध्यस्थता करने की किसी को भी जरूरत नहीं है।’’  

रिजवी ने कहा, ‘मंदिर निर्माण पक्षकार और शिया वक्फ बोर्ड इस बात पर पूरी तरह सहमत हो गया है। न्यायालय में जितने पक्षकार हैं, उनसे भी हमारी बातचीत लगभग हो गई है। पांच दिसंबर से पूर्व हम आपसी सुलह समझौते की जो बातचीत हुई है उसे उच्चतम न्यायालय में दाखिल करेंगे।’’  

उन्होंने कहा कि चूंकि सुन्नी वक्फ बोर्ड अपने पंजीकरण का दावा कई जगह से हार चुका है, यह शिया वक्फ की मस्जिद थी, लिहाजा इसमें सिर्फ शिया वक्फ बोर्ड का हक है। यह मंदिर-मस्जिद निर्माण को लेकर आपसी समझौते का मामला है, इसलिए इसमें कोई भी समाज... सुन्नी समाज के लोग, सुन्नी संगठन के लोग सुलह के लिए हमारी शर्तों पर बैठ जरूर सकते हैं, लेकिन अगर कोई निगेटिव सोच के साथ बैठता है, तो उसे आने नहीं दिया जाएगा। हम इस मसले को और उलझाना नहीं चाहते। 

रिजवी ने कहा, ‘जहां तक सुन्नी वक्फ बोर्ड का सवाल है, उनका रजिस्ट्रेशन 1944 में हुआ था। वह पंजीकरण उच्चतम न्यायालय से भी अवैध घोषित हो चुका है। उच्च न्यायालय और दीवानी अदालत भी उसे अवैध घोषित कर चुके हैं। जब रजिस्ट्रेशन ही अवैध घोषित हो चुका है, तो आपका उस पर कोई अधिकार नहीं है।’’  

उन्होंने कहा, ‘यह मीर बाकी की बनाई मस्जिद है, मीर बाकी शिया थे और 1528 से लेकर 1944 तक इसका प्रशासन शिया के पास ही रहा है। इसका मुतावल्ली भी शिया रहा है। जब आपका रजिस्ट्रेशन अवैध घोषित हो गया तो उससे पहले की स्थिति बहाल हो गई। इसलिए इस पर शिया वक्फ बोर्ड का अधिकार है और उसी अधिकार के तहत शिया वक्फ बोर्ड बातचीत कर रहा है।’’