सपा से नाराज योगी ने घटाई अखिलेश-मुलायम की सुरक्षा, मायावती पर दिखाई मेहरबानी

punjabkesari.in Friday, Jul 14, 2017 - 01:41 PM (IST)

लखनऊ: योगी सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की काफिले में शामिल पांच एसयूवी (स्पोट्र्स यूटिलिटी व्हीकल) कारों (इसुजू) में से तीन को छीन लिया है। नायाब किस्म की इसुजू के स्थान पर पुरानी अंबेसडर कारें दी गई हैं। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के काफिले में दो एसयूवी बढ़ाई गई हैं। इसी प्रकार सपा संरक्षक मुलायम सिंह के काफिले से भी एसयूवी इसुजू कारों को वापस मांग लिया गया है। जबकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह को आवंटित फ्लीट में एसयूवी कारें बढ़ा दी गई हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को आवंटित गाडिय़ों की फ्लीट से दो अंबेसडर कार हटाकर उसके स्थान पर एसयूवी (इसुजू कार) बढ़ाई गई है। ये वही गाडिय़ां हैं जो अभी अखिलेश के काफिले में चल रही हैं। अखिलेश के काफिले की गाडिय़ों के लिए नियुक्त ड्राइवर सुनील यादव और गंगा प्रसाद को हटाकर राज्य संपत्ति विभाग से संबद्ध कर दिया गया है। 

इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के अतिरिक्त योगी आदित्यनाथ सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की फ्लीट से एक इनोवा व दो इसुजू कारें वापस लेकर उनके स्थान पर अंबेसडर कारें उपलब्ध कराई हैं। ये अंबेसडर कारें अभी गृहमंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की फ्लीट में चलती थीं। हटाई गई कारों के स्थान पर उनकी फ्लीट में एसयूवी कारें बढ़ा दी गई हैं। 

गौरतलब है कि दो दिन पूर्व केंद्र सरकार ने ऐसा ही निर्णय लेते हुए प्रदेश सरकार के मौजूदा चार मंत्रियों की सुरक्षा वापस ले ली थी। इनमें ब्रजेश पाठक और नंद गोपाल नंदी भी शामिल हैं। 

विपक्षी पार्टियों ने बोला हमला
योगी सरकार के इस फैसले पर विपक्षी पार्टियों ने तीखा हमला बोला है। सपा ने इस फैसले को घटिया राजनीति करार दिया है। वहीं योगी सरकार ने इसे रूटीन व्यवस्था का हिस्सा बताया है। 

विपक्षी एकता में सेंध लगाने की कोशिश तो नहीं!
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, योगी सरकार का यह फैसला यूपी की राजनीति से प्रेरित है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक पाण्डेय कहते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में साथ देने के कारण मुलायम सिंह यादव पर मेहरबानी जारी है, जबकि वर्ष 2019 के आम चुनावों में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन में दरार डालने की कोशिश के तौर पर अखिलेश यादव से सुविधाओं को छीनकर मायावती पर नजरें इनायत हो रही हैं। ऐसी कोशिशों से अव्वल यह संदेश जाएगा कि बसपा और भाजपा के अंदरखाने कुछ पक रहा है, साथ ही सपाइयों के दिल में बसपा को लेकर आक्रोश पैदा होगा। नतीजे में वर्ष 2019 में गठजोड़ में मुश्किल होगी। बावजूद सपा-बसपा साथ आएंगे तो कार्यकर्ताओं में दूरी कायम रहेगी।

कानपुर विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एसपी सिंह कहते हैं कि राजनीतिक दलों के निहितार्थ अलग-अलग हैं। मायावती अपना वजूद बचाने के लिए भाजपा के साथ आने से परहेज नहीं करेंगी। इसके साथ ही ब्राह्मण-बनियों के साथ-साथ दलितों की रहनुमा बनकर भाजपा लंबे समय तक यूपी में शासन करना चाहती है। इसी मंजिल को हासिल करने के लिए मायावती पर मेहरबानी के जरिए दलितों को संदेश देने का प्रयास है कि भाजपा दलितों के लिए समान भाव रखती है।