बाबरी विध्वंस: सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर रिटायर हो गए जज, इसी मामले का फैसला सुनाने के लिए मिला था
punjabkesari.in Wednesday, Sep 30, 2020 - 06:06 PM (IST)

लखनऊ: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत 32 अभियुक्तों को सीबीआई की विशेष अदालत ने बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि सीबीआई इस मामले में निष्कर्ष पर पहुंचने योग्य साक्ष्य पेश नहीं कर सकी, जांच एजेंसी बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कारसेवकों की ढांचा विध्वंस के इस मामले में अभियुक्त बनाए गए लोगों से कोई सांठगांठ साबित नहीं कर सकी है।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस. के. यादव अपराह्न 12 बजकर 10 मिनट पर अदालत कक्ष में पहुंचे और अगले पांच मिनट में फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए उन्होंने सभी अभियुक्तों को बरी करने का निर्णय सुनाया। फैसला सुनाने जाने के साथ ही न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव सेवानिवृत्त (रिटायर) हो गए। इसी मामले की सुनवाई के लिए उन्हें सेवा विस्तार मिला हुआ था। यानी आज का फैसला उनके कार्यकाल का अंतिम फैसला माना जाएगा।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से संबंध रखते हैं सुरेंद्र कुमार यादव
जज सुरेंद्र कुमार यादव पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से संबंध रखते हैं। उनका जन्म पखानपुर गांव में हुआ। 31 वर्ष की उम्र में वह राज्य न्यायिक सेवा के लिए चयनित हुए थे। उनकी पहली पोस्टिंग फैजाबाद में एडिशनल मुंसिफ के पद पर हुई। इसके बाद हरदोई, सुल्तानपुर, गाजीपुर, इटावा, गोरखपुर में बतौर जज सेवा दी। अपने रिटायरमेंट के समय राजधानी लखनऊ के जिला जज तक पहुंचे। सुरेंद्र कुमार यादव लखनऊ जनपद न्यायाधीश के पद से 30 सितम्बर, 2019 को ही सेवानिवृत्त हो गये थे। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मामले की सुनवाई और उस पर फैसला सुनाने तक का उन्हें सेवा विस्तार दिया था। इस तरह विवादित ढांचा पर दिया गया आज का फैसला विशेष न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव के कार्यकाल का अंतिम फैसला माना जाएगा।
पिछले साल लखनऊ जिला जज के पद से हुए थे सेवामुक्त
पिछले साल लखनऊ जिला जज के पद से जब वे सेवामुक्त हुए थे तो बार एसोसिएशन ने उनका फेयरवेल किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले ही उनकी रिटायरमेंट की मियाद बढ़ा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के पीठासीन अधिकारी के पद पर बने रहकर विध्वंस केस की सुनवाई पूरी करने के लिए कहा। यानी वो जिला जज के रूप में रिटायर हो गए मगर विशेष न्यायाधीश बने रहे। रिटायर होने जा रहे किसी न्यायाधीश का किसी एक ही मामले के लिए कार्यकाल का बढ़ाया जाना अपने आप में ऐतिहासिक था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल किया था। इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार है कि 'मुकम्मल इंसाफ' के लिए अपने सामने लंबित किसी भी मामले में वो कोई भी जरूरी फैसला ले सकता है।
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