बहादुर की बेबसीः पढ़ने तक काे मजबूर है राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित भीमसेन

punjabkesari.in Thursday, Jan 25, 2018 - 02:45 PM (IST)

बस्तीः बस्ती के बहादुर बेटे भीमसेन की बेबसी पर वाकई हमें शर्मिंदगी महसूस होती है। महज 12 साल की उम्र में भीमसेन ने घाघरा नदी में नाव पलटने पर 14 लोगों की जान बचाई,जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया था। आज जिला प्रशासन की लापरवाही से बहादुर बेटे का परिवार और ग्रामीण खाना बदोशों का जीवन जीने को मजबूर हैं। 

कलवारी थाना क्षेत्र के डकही गांव के भीमसेन उर्फ सोनू ने अपनी बहादुरी के दम पर जनपद और अपने गांव का नाम रोशन किया। भीमसेन को उसकी बहादुरी के लिए 26 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया। अपनी जान पर खेलकर भीमसेन ने नवम्बर 2014 में घाघरा नदी में नांव पलटने पर 14 लोगों की जान बचाई थी। भीमसेन की उस वक्त उम्र महज 12 साल थी। जिसके लिए उसे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन आज उस बहादुर छात्र भीमसेन की उपेक्षा हो रही है।

भीमसेन का परिवार आज भी गरीबी की वजह से छप्पर के मकान में रहने को मजबूर है। पात्र होने के बावजूद भी उसे सरकारी आवास तक नहीं दिया गया। आवास और अन्य सुविधाओं के लिए बहादुर भीमसेन पिछले दो सालों से अधिकारियों का चक्कर लगा रहा है,लेकिन कोई सुविधा आज तक नहीं मिली। अधिकारियों का चक्कर लगाते लगाते अब बहादुर भीमसेन का दिल टूट चुका है।

बहादुर भीमसेन गरीबी की वजह से ठीक से पढाई तक नहीं कर पा रहा है। परिवार वाले मेहनत मजदूरी कर किसी तरह भीमसेन की पढ़ाई लिखाई करवा रहे हैं। भीमसेन के छप्पर के मकान में चंद मिट्टी के बरतन हैं जिनमें खाने के लिए कुछ अनाज रखा जाता है। खाना बनाने के लिए घर में दो चार बरतन हैं। गैस चूल्हा न होने की वजह से चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं।

आश्वासन के बावजूद भी नहीं मिला सरकारी लाभः परिजन
भीमसेन के परिजनों का कहना है कि जब उनके लड़के को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो बहुत से अधिकारी गांव में आए और घर, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए आश्वासन भी दिया, लेकिन आज तक कोई सरकारी लाभ नहीं मिला।

नहीं मिला राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार का कोई लाभः भीमसेन
बहादुर भीमसेन का कहना है कि राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार का उसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है। गांव में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। ज्यादातर लोगों के घर छप्पर के बने हुए हैं। आजादी के बाद से आज तक बिजली की गांव में सप्लाई नहीं पहुंची है। शुद्ध जल के लिए सरकारी हैण्ड पम्प तक लोगों को मोहैया नहीं है। लोग दूषित जल पीने को मजबूर हैं। लोगों को ठीक से सरकारी राशन नहीं मिलता। 

गांव में लोगों के पास शौचालय तक नहींः ग्रामीण
गांव वालों का आरोप है कि कोटेदार एक महीने राशन देता है और एक महीने का राशन ब्लैक कर लेता है। गांव में लोगों के पास शौचालय तक नही है। लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। गांव में गरीबी की वजह से ज्यादातर लोग मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं।