UP Assembly Elections: 2022 के चुनाव में बागपत की 3 सीटों पर जयंत ने बीजेपी को जकड़ा?

punjabkesari.in Wednesday, Jan 12, 2022 - 05:29 PM (IST)

 

लखनऊः 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर चल रही है। वहीं बसपा इस सियासी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की पूरी कोशिश कर रही है। इधर एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की निगाह समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने पर टिकी हुई है। वहीं बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बड़े नेता भी एक-दूसरे के घर में सेंध लगाकर सियासी ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं। एक-एक सीट के लिए समाजवादी पार्टी और बीजेपी में बराबरी का मुकाबला चल रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बागपत जिले की तीन विधानसभा सीटों पर इस बार जयंत चौधरी ने बीजेपी की नाक में दम कर दिया है। बागपत जिले में तीन विधानसभा सीटें है। दो सीटों पर जाट वोटर ही किसी कैंडिडेट की जीत-हार तय करते हैं। वहीं एक सीट पर त्यागी, ब्राह्मण, मुस्लिम, गुर्जर चुनाव में किसी भी कैंडिडेट का तख्तापलट करने की ताकत रखते हैं। 2017 के चुनाव में तीनों सीट पर बीजेपी को जीत मिली थी क्योंकि छपरौली विधानसभा सीट पर जीते रालोद कैंडिडेट ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया था।

बागपत जिले की एक ऐतिहासिक पहचान रही है। महाभारत काल में पांड़वों ने कौरवों से जो पांच गांव मांगे थे उनमें से सिनौली गांव बागपत जिले में ही पड़ता है। मेरठ से उठी 1857 की क्रांति में यहां के शूरवीरों ने अपनी ताकत का अहसास अंग्रेजों को कराया था। बाबा शाहमल का नाम आज भी यहां के लोगों की जुबान पर रहता है। वहीं आजादी हासिल करने के बाद भी बागपत लंबे समय से सत्ता विरोधी नेताओं को जीत दर्ज कराने के लिए मशहूर रहा है। उत्तर प्रदेश में सत्ता अगर समाजवादी पार्टी की रही तो यहां पर नेता बसपा और रालोद के रहे। 2017 में पहली बार यहां सत्ता पक्ष के नेताओं को जीत मिली थी। बागपत देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि रही है। यहीं से चुनावी जीत हासिल कर चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा कहलाए। चौधरी चरण सिंह के बाद उनके बेटे चौधरी अजित सिंह ने उनकी सियासी विरासत को आगे बढ़ाया। अब चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी बागपत में अपनी सियासी ताकत को फिर से हासिल करने में जुटे हैं। परंपरागत रूप से इस इलाके में जाट और मुस्लिम वोटरों का ही डंका बजता है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ बनाकर जयंत चौधरी इस समीकरण को फिर से धार देने में लगे हैं। बागपत जिले के दायरे में तीन विधानसभा सीट बागपत, बड़ौत और छपरौली पड़ती है। आइए तीनों सीटों के अलग अलग सियासी समीकरण पर डालते हैं एक नजर।

अब बात करते हैं बागपत विधानसभा सीट के संभावित नतीजों की। बागपत से 2012 में बसपा कैंडिडेट हेमलता चौधरी ने जीत हासिल की थी। वहीं रालोद यहां दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि 2017 में बागपत से बीजेपी कैंडिडेट योगेश धामा ने जीत दर्ज की थी। 2017 में यहां से बसपा दूसरे स्थान पर रही। दोनों बार ही रालोद और बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी चुने लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। राजधानी दिल्ली और पश्चिम में हरियाणा से लगने वाले इस इलाके में 2017 में ही पहली बार कमल खिला था लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी और रालोद के गठबंधन ने जाट और मुस्लिम वोटरों को एक झंडे के तले ला खड़ा किया है। इस सीट पर गुर्जर, त्यागी, ब्राह्मण और अन्य जातियां भी अहम भूमिका निभाती हैं। जाट वोट बैंक को अपने साथ रखने के लिए रालोद और बीजेपी ने एड़ी-चोटी की ताकत झोंक रखी है। यहां से जाट और गुर्जर जिस पार्टी की तरफ रूख करेंगे उसी पार्टी के कैंडिडेट को बढ़त मिल जाएगी।

अब बात करेंगे बागपत जिले की छपरौली सीट के बारे में, जी हां छपरौली जाट बहुल सीट है। इस सीट को राष्ट्रीय लोक दल का गढ माना जाता है। इसी सीट से स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह ने देश के प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया था। 2012 में यहां आरएलडी के वीरपाल राठी ने बाजी मारी थी। 2017 में भी रालोद की टिकट पर सहेंद्र सिंह रमाला ने ही जीत हासिल की थी। 2017 में एक मात्र इसी सीट पर रालोद को जीत मिली थी लेकिन बाद में रमाला ने बीजेपी का दामन थाम लिया था, हालांकि एक बार फिर यहां जाट वोटर ही उम्मीदवार की किस्मत तय करेंगे। अगर जयंत चौधरी का करिश्मा चला तो बीजेपी के हाथ से छपरौली की सीट फिसल सकती है।

वहीं बागपत जिले की बड़ौत विधानसभा सीट पहली बार 1952 में अस्तित्व में आई थी। यह इलाका भी जाट बाहुल सीट है, हालांकि 2012 के चुनाव में बसपा से लोकेश दीक्षित ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था जबकि 2017 में एक बार फिर से जाटों ने अपनी ताकत दिखाई और बीजेपी के कृष्णपाल मलिक को विधायक चुन लिया। वैसे ये सीट काफी लंबे समय तक रालोद के कब्जे में रही लेकिन 2017 में मोदी लहर में बागपत का तख्ता पल्ट हुआ और जाट वोट बैंक बिखर गया। वहीं मुजफ्फरनगर दंगों ने भी यहां के हालात बदल दिए थे। अब एक बार फिर जयंत चौधरी यहां से अपना पुराना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। सपा के साथ रालोद के गठजोड़ के बाद बीजेपी को लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं।

अब बात करेंगे बागपत जिले की तीन सीटों के चुनावी मुद्दों की बागपत जिले में तीन चीनी मिले हैं और मुख्यत: यहां गन्ने की ही खेती पर लोगों की आजीविका निर्भर करती है। इसलिए बागपत में गन्ना की कीमत और सही समय पर पेमेंट ही सबसे बड़ा मुद्दा है। वहीं किसान आंदोलन की वजह से भी यहां बीजेपी की छवि पर गहरा असर पड़ा है। वहीं बागपत का रिम धुरा उद्योग भी लगातार दम तोड़ता जा रहा है। उद्यमियों को सरकार से कोई सुविधा नहीं मिल रही है। गन्ने का भुगतान नहीं होने पर पूरे महंगी बिजली के साथ ही आसमान छूती महंगाई से बागपत की जनता त्रस्त हैं, हालांकि सड़क, बिजली, शिक्षा, कानून-व्यवस्था और गन्ना के पेमेंट करने को लेकर बीजेपी की सरकार बड़े बड़े दावे कर रही है लेकिन इन दावों की हकीकत तो अब बागपत की जनता ही तय करेगी। इस जिले में जयंत चौधरी अगर जाट वोटरों को साध ले गए तो शायद बीजेपी के लिए 2017 वाला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Nitika

Recommended News

Related News

static