UP Assembly Elections: 2022 के चुनाव में क्या श्री कृष्ण मंदिर के नाम पर मथुरा की जनता देगी वोट?

punjabkesari.in Friday, Jan 14, 2022 - 12:31 PM (IST)

 

लखनऊः मथुरा जिले में पांच विधानसभा सीटों पर पहले चरण में ही वोट डाला जाएगा। इस जिले की 5 सीट पर मतदाता अपना निर्णय दस फरवरी को ईवीएम में दर्ज करा देंगे, जो पार्टी इस जिले की जातीय समीकरण को साधेगी उसी पार्टी के कैंडिडेट को यहां से जीत मिलेगी।

इस जिले में छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव विधानसभा सीट पर बीजेपी,सपा और बसपा में कड़ा मुकाबला चल रहा है। अमरोहा की रैली में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर से मथुरा वृंदावन में मंदिर का मुद्दा उठाकर माहौल को गर्मा दिया है। भगवान कृष्ण की इस नगरी पर एक बार फिर पूरे देश की निगाह टिक गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जिसमें दम होगा। वही मथुरा को बनाएगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी में दम है इसलिए मथुरा को वैसे ही बनाएंगे जैसे अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाया है। उत्तर प्रदेश भाजपा ने इस बयान को अपने टिट्रर हैंडल से ट्वीट किया है। इससे साफ हो गया है कि बीजेपी के एजेंडे में अब अयोध्या,काशी के बाद मथुरा ने फिर से जगह बना ली है। आइए अब एक बार मथुरा की 5 सीटों के अलग अलग समीकरण पर चर्चा करते हैं।

2017 में छाता विधानसभा चुनाव से बीजेपी के चौधरी लक्ष्मी नारायण सिंह विधायक बने थे। सिंह ने 51.71 फीसदी वोट हासिल किया था। वहीं अतुल सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरा स्थान हासिल किया था। तीसरे स्थान पर बसपा के मनोज पाठक रहे थे। छाता इलाके में जाट और ठाकुरों की तूती बोलती रही है। छाता विधानसभा में मतदाताओं की संख्या करीब साढ़े तीन लाख है। यहां 90 हजार जाट, 70 हजार ठाकुर, 45 हजार ब्राह्मण,30 हजार जाटव, और 15 हज़ार मुस्लिम वोटर हैं। वहीं 15 हजार गूर्जर, 15 हजार वाल्मीकि और 15 हजार बघेल जाति के वोटर हैं। जयंत चौधरी के नाम पर सपा जाट वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।

वहीं 2017 में मांट विधानसभा सीट से बीएसपी के श्याम सुंदर शर्मा विधायक का चुनाव जीते थे। यहां रालोद कैंडिडेट योगेश चौधरी ने 65 हजार 430 वोट लाकर दूसरा स्थान हासिल किया था। बीजेपी यहां तीसरे स्थान पर रही थी। अब बात करेंगे मांट के जातीय समीकरण की, यहां 90 हजार जाट, 40 हजार ब्राह्मण, 40 हजार जाटव और 40 हजार ठाकुर वोटर हैं। इसके अलावा यहां 27 हजार वैश्य, 15 हज़ार मुस्लिम,15 हजार गूर्जर और 15 हजार वाल्मीकि वोटर हैं, तो 15 हजार बघेल, 15 हजार गुर्जर, 5 हजार कोली और 3 हजार खटीक वोटर भी चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं। मांट सीट पर रालोद एक बार फिर से चुनाव लड़ सकती है, क्योंकि यहां जाट वोटर सर्वाधिक हैं इसलिए उनका असर भी ज्यादा देखने को मिलता है। वहीं बीजेपी भी यहां जाट-ब्राह्मण-ठाकुर और वैश्य-वाल्मीकि वोटर को एकजुट कर यहां जीत हासिल करने का प्लान बना रही है।
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अब चर्चा करेंगे गोवर्धन सीट के बारे में। यहां 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट करिंदा सिंह विधायक बनने में सफल रहे थे। वहीं बीएसपी यहां दूसरे नंबर पर रही थी तो रालोद ने 40 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर तीसरा स्थान हासिल किया था। इस सीट पर ठाकुर वोटरों का जलवा रहा है...यहां 80 हजार ठाकुर, 50 हजार ब्राह्मण, 50 हजार जाट, 40 हजार जाटव और 35 हजार ओबीसी वोटर हैं। इसके अलावा यहां 25 हजार वैश्य और 10 हजार मुस्लिम वोटर भी हैं। साफ है कि अगर ठाकुर-ब्राह्मण-जाट और वैश्य वोटर को बीजेपी साधने में कामयाब रही तो एक बार वह फिर गोवर्धन में भगवा लहरा सकता है, हालांकि रालोद भी यहां दम खम दिखाने की क्षमता रखती है।

वहीं मथुरा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट श्रीकांत शर्मा ने जीत हासिल की थी। शर्मा योगी सरकार में मंत्री पद हासिल करने में सफल रहे थे। मथुरा सीट पर मोदी लहर में श्रीकांत शर्मा को जीत मिली थी। अब बात करते हैं मथुरा सीट के जातीय समीकरण की। यहां एक लाख 40 हजार वैश्य, एक लाख 10 हजार जाट, 40 हजार लोधी और 35 हजार सैनी वोटर हैं। मथुरा सीट पर 35 हजार मुस्लिम वोटर भी मौजूद हैं। 2022 में वैश्य-जाट और लोधी वोटर जिस पार्टी का रुख करेंगे उसी पार्टी के कैंडिडेट के सिर पर राजतिलक लगेगा।

वहीं बलदेव (सुरक्षित) सीट पर भी बीजेपी के पूरन प्रकाश ने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी, हालांकि 75 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर रालोद के निरंजन सिंह धनगर ने दूसरा स्थान हासिल किया था। इस सीट पर एक लाख जाट, अनुसूचित जाति के 60 हजार,50 हजार ब्राह्मण और 40 हजार सैनी वोटर हैं। इसके अलावा यहां 40 हजार बघेल और 40 हजार यादव वोटर भी हार-जीत में अपनी भूमिका अदा करते हैं। अगर जातीय समीकरण को देखें तो यहां जाट-एससी-ब्राह्मण और सैनी वोटर के रूख से ही चुनावी नतीजे तय होते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में बंदरों के आतंक से हर कोई परेशान है। इसके अलावा यमुना नदी की गंदगी और शहर से दूर बनाई गई पार्किंग को लेकर भी आम लोगों में नाराजगी है। कोरोना के संकट काल में लोगों का व्यापार और काम सब ठप हो गया था। पैसों की तंगी के चलते एक हजार से ज्यादा लोग प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा से मिलने गए थे। शर्मा से लोगों ने बच्चों की छह माह की फीस और गरीबों के घरों की बिजली बिल माफ करने की मांग की थी, लेकिन कैबिनेट मंत्री रहने के बावजूद शर्मा लोगों को राहत नहीं दिला पाए। ऐसे में इन तमाम मुद्दों पर बीजेपी के कैंडिडेट को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। वहीं सपा और रालोद के गठजोड़ से जाट वोटरों का एक हिस्सा तो बीजेपी से कटने को तैयार बैठा है, हालांकि मथुरा में मंदिर के मुद्दे को हवा देकर बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है, लेकिन ये वक्त ही बताएगा कि बीजेपी का ये दांव कितना कामयाब रहेगा।
 


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Nitika

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