नेताजी के ''बलराम'' के सामने हैं दो रास्ते, कहां जाएंगे शिवपाल?

punjabkesari.in Sunday, Jul 30, 2017 - 04:29 PM (IST)

लखनऊः समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कद्दावर नेता शिवपाल यादव के एनडीए में जाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। सूत्रों के मुताबिक शिवपाल जल्द ही इसका ऐलान भी कर सकते हैं। खबर है कि शिवपाल यादव ने इस विषय में अपने बड़े भाई और समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से बात भी की है। ऐसे में उनके समाजवादी पार्टी को छोड़कर एनडीए में जाने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। शिवपाल यादव अभी इटावा की जसवंतनगर सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं।

शिवपाल के सामने दो रास्ते
अंदरखाने से खबर है कि शिवपाल यादव के लिए फिलहाल 2 रास्ते हैं। वे या तो अपना कथित सेक्युलर मोर्चा बनाकर एनडीए में शामिल हो जाएंगे, जिसके लिए लंबे अर्से से चर्चाएं चल रही हैं या फिर वे नीतीश कुमार की जेडीयू का यूपी में सबसे बड़ा चेहरा बन एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं। ज्यादा संभावनाएं नई पार्टी को लेकर हैं, क्योंकि इसके लिए शिवपाल यादव की टीम कई महीनों से तैयारी में जुटी है। यहां तक कि विधानसभा चुनाव में जब शिवपाल ने नामांकन किया था तभी उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के लिए घोषणा कर दी थी कि चुनावी नतीजे आने के बाद वे अपना नया दल बनाएंगे। लेकिन सपा के चुनाव में लचर प्रदर्शन और नेता जी की रजामंदी न मिलने पर उस वक्त शिवपाल ने नई पार्टी के गठन का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था।

प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर शुरु हुआ था विवाद
पिछले साल सितंबर महीने में जब पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव की सहमति लिए बगैर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, तभी से पार्टी में विवाद की शुरुआत हो गई थी। इसके बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल से मंत्रिमंडल के अहम विभाग छीन लिए थे। जिसके बाद शिवपाल ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। विवाद लगातार बढ़ता गया और आखिरकार पार्टी में दो धड़े बन गए। एक धड़े में अखिलेश यादव और रामगोपाल थे तो दूसरे में मुलायम और शिवपाल। चुनाव आयोग में पार्टी पर अधिकार के लिए दावेदारी पेश हुई तो अखिलेश यादव को सफलता मिली। चुनाव आयोग ने पार्टी पर अखिलेश यादव का हक घोषित कर दिया। लिहाजा मुलायम और शिवपाल कमजोर पड़ गए।

मुलायम संरक्षक बने तो शिवपाल उम्मीदवार
पार्टी की कमान अखिलेश के हाथ में चली गई। उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह को पार्टी का संरक्षक बनाया और चाचा शिवपाल यादव को संगठन में बिना कोई जिम्मेदारी दिए उनकी परम्परागत जसवंतनगर सीट से प्रत्याशी बनाया। शिवपाल का कद पार्टी में नाममात्र का हो गया। प्रदेश में उनकी बनाई गई कार्यकारिणी रद्द कर दी गई और अखिलेश ने नए सिरे से प्रदेश में पार्टी पदाधिकारियों की फौज तैयार की।

क्या है शिवपाल की मांग? 
विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक शिवपाल यादव  नेता जी को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग पर अड़े रहे हैं, लेकिन भतीजे ने चाचा की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। यहां तक कि शिवपाल के हालिया बयानों में भी उनका ये दर्द जाहिर होता है कि अखिलेश ने पार्टी पर कब्जा जमा पार्टी के पुराने कैडरों को दरकिनार कर दिया है।देखा जाए तो शिवपाल ने ये संकेत बार-बार दिया है कि अगर मुलायम सिंह को दोबारा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाए तो वे सपा के साथ रहेंगे। अगर शिवपाल यादव बताए गए दोनों रास्तों में किसी एक को भी चुनते हैं तो निश्चित तौर पर समाजवादी पार्टी कमजोर हो जाएगी। क्योंकि शिवपाल की प्रदेश में कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ है। शिवपाल यादव पर इटावा, मैनपुरी और औरैया जैसे जिलों का वोटर काफी हद तक निर्भर रहता है।

आखिर क्या है शिवपाल का दर्द-ए-दिल?
शिवपाल यादव हमेशा से नेताजी की सियासत के साझीदार रहे हैं।पार्टी को खड़ा करने से लेकर सत्ता में लाने तक शिवपाल अहम भूमिका निभाते रहे।शिवपाल को उम्मीद थी कि 2012 में उन्हें सीएम बनाया जाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ।2012 के बाद अखिलेश की ताकत बढ़ती गई और शिवपाल को धीरे-धीरे किनारा किया जाने लगा।शिवपाल को ये महसूस होने लगा कि मुलायम की सियासत की विरासत का एक हिस्सा भी उन्हें नहीं मिलने वाला है। ऐसे में उनकी हालत उन पांडवों की तरह हो गई जो कौरवों से केवल 5 गांव मांग रहा था लेकिन उन्हें वो भी नहीं मिला। साफ है कि शिवपाल को अपनी सियासत के लिए यादव परिवार में महाभारत का ही विकल्प दिख रहा है क्योंकि इससे उनकी ताकत तो बढ़ने के साथ ही बारगेन पावर भी बढ़ती ही है।

शिवपाल को इस बात की भी टीस है कि नेताजी ऊपर से भले ही अखिलेश को चेतावनी दें, लेकिन दिल से वे अखिलेश के ही साथ हैं। ये बात तब भी दिखी जब पार्टी पर कब्जे के लिए नेताजी ने कोई मजबूत कदम नहीं उठाया और अखिलेश के हाथ में पार्टी की कमान जाने दी।अब आने वाले कुछ दिन समाजवादी पार्टी के लिए बेहद अहम साबित होने वाले हैं,अगर शिवपाल ने अलग रास्ता अपनाया तो ये यूपी की सियासत की दशा-दिशा हमेशा के लिए बदल देगा।