पोस्टर हटाने के अदालत के फैसले का जाफर, दारापुरी ने स्वागत किया

punjabkesari.in Tuesday, Mar 10, 2020 - 10:44 AM (IST)

लखनऊ: कार्यकर्ता सदफ जाफर और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस.आर. दारापुरी ने जिला प्रशासन द्वारा लगवाए गए उनके नाम-पते वाले पोस्टरों को उतारने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सोमवार के आदेश का स्वागत किया है। 

गौरतलब है कि जिला प्रशासन ने दिसंबर 2019 में लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा और आगजनी में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को हुई हानि की वसूली करने के लिए आरोपियों के नाम, पता और तस्वीरों वाले पोस्टर लगवाए थे। इसमें जाफर और उदारापुरी के नाम के पोस्टर भी लगे थे। फैसला आने के बाद जाफर ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय का आदेश निश्चित रूप से स्वागत योग्य है और इससे न्यायपालिका और संविधान के प्रति हमारी आस्था और गहरी हुई है। साथ ही इससे सरकार को यह संदेश भी गया है कि शासन दबंगई से नहीं बल्कि कानून से चलता है।''

हालांकि उन्होंने अफसोस जताया कि पोस्टर में छपी उनकी निजी जानकारी तमाम लोगों तक पहुंच गयी है और उनकी जान को खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है। संकीर्ण मानसिकता वाली सरकार हमें जो नुकसान पहुंचाना चाहती थी, वह पहुंचा चुकी है। पूर्व आईपीएस अफसर दारापुरी ने कहा कि वह अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं क्योंकि इससे साबित हो गया है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की 'अराजकता' नहीं बल्कि कानून का राज ही चलेगा। यह लोकतंत्र की जीत और तानाशाही की हार है। दारापुरी ने कहा कि उन्होंने गत गुरुवार को लखनऊ में पोस्टर लगाये जाने के दिन उन्होंने राज्य के गृह विभाग के प्रमुख सचिव और पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर कहा था कि अगर प्रशासन की इस अवैध हरकत की वजह से उनके साथ कोई घटना हुई तो इसके लिये प्रशासन ही जिम्मेदार होगा। 

मालूम हो कि 19 दिसम्बर, 2019 को राजधानी लखनऊ में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को पहुंचे नुकसान के मामले में राज्य सरकार ने दारापुरी और जाफर समेत बड़ी संख्या में लोगों को दंगाई करार देते हुए उन्हें गिरफ्तार किया था और उनके खिलाफ वसूली नोटिस जारी किये थे।

गत गुरुवार को जिला प्रशासन ने नगर के हजरतगंज समेत चार थाना क्षेत्रों में प्रमुख चौराहों तथा स्थानों पर होर्डिंग लगवायी थीं, जिसमें इन आरोपियों की बड़ी तस्वीरें, पता और वल्दियत जैसी निजी जानकारियां भी छपवायी गयी थीं। सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लखनऊ जिला प्रशासन को आगामी 16 मार्च तक ये सभी होर्डिंग तथा पोस्टर हटाने के आदेश दिये। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने जिला प्रशासन के इस कदम को निहायत नाइंसाफी भरा करार देते हुए इसे व्यक्तिगत आजादी का खुला अतिक्रमण माना था। हिंसक प्रदर्शन के मामले में बड़ी संख्या में लोगों को दिसम्बर में गिरफ्तार किया गया था। इनमें दारापुरी और जाफर भी शामिल थे। अदालत ने सुबूतों के अभाव में दोनों को जनवरी में जमानत दे दी थी। 

इस बीच, मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने कहा कि अदालत के आदेश को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिये। उन्होंने 'ट्वीट' कर कहा, ''दंगाइयों के पोस्टर हटाने के उच्च न्यायालय के आदेश को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है। सिर्फ उनके पोस्टर हटेंगे, उनके खिलाफ लगी धाराएं नहीं। दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक लड़ेंगे। योगीराज में दंगाइयों से नरमी असम्भव है।'' 


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Ajay kumar

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