2012 में सपा, 2014 में भाजपा अब 2017?

punjabkesari.in Friday, Jan 20, 2017 - 10:27 AM (IST)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विविध समीकरणों के आधार पर विचार किए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी के अंदर चल रहे विवाद में अखिलेश की जीत के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है लेकिन ऐसी स्थिति में अगर साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के अनुकूल मतदान हुआ तो भारतीय जनता पार्टी की जीत तो पक्की हो जाएगी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटें जीती थी और इसे 42.3 प्रतिशत वोट मिले थे। इसका मतलब है कि यू.पी. के 403 विधानसभा सीटों में उसे इस आधार पर करीब 328 सीटें मिलनी चाहिएं। इसके अलावा अगर 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे दलों की स्थिति के बारे में बात करें, तो समाजवादी पार्टी को 22.2 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस को केवल 7.5 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था।

इस बार यह मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा
इस आधार पर समाजवादी पार्टी को जहां 42 सीटें मिलेंगी, तो कांग्रेस को 15 सीटों पर जीत मिलने की संभावना बनती है। अब जबकि लोकसभा चुनाव हुए अढ़ाई साल हो गए हैं और इस चुनाव में कांग्रेस तथा सपा के बीच गठबंधन लगभग तय है, जिसमें राष्ट्रीय लोकदल के शामिल होने की उम्मीद भी की जा रही है, तो पिछली बार के समीकरणों में भी बदलाव की उम्मीद है क्योंकि पिछली बार जहां यू.पी. में सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला हुआ था, वहीं इस बार यह मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा।

CM उम्मीदवार की भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती
ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर साल 2014 के चुनाव वाली स्थिति भाजपा के साथ रही और उन्हें उसी तरह समर्थन मिला जिस तरह का समर्थन लोकसभा चुनाव के समय में हुआ था, तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन होने के बावजूद भाजपा को 300 से अधिक सीटें मिल सकती हैं। लेकिन, सामान्यत: देखा जाए तो बहुत कुछ बदल सा गया है। एक विधानसभा का चुनाव में जहां अलग तरह के मुद्दे होते हैं, जिसमें मुख्यमंत्री उम्मीदवार की भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पिछले कुछ सालों में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के तौर पर कैसा काम किया है, यह महत्वपूर्ण कारण बनेगा।

2014 में यूपी में कांग्रेस और सपा ने अलग-अलग सीटों पर किया था मुकाबला
अगर 2014 चुनाव की बात करें, तो लोकसभा चुनाव के आधार पर यू.पी. में कांग्रेस और सपा ने अलग-अलग 57 विधानसभा सीटों पर अलग-अलग मुकाबला किया था और सपा-कांग्रेस-रालोद के गठबंधन की बात करें, तो तीनों मिलाकर ये पिछली लोकसभा चुनाव के आधार पर 87 विधानसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रह थे। तीनों मिलकर 50 विधानसभा सीटों पर नजदीकी मुकाबले में रहे थे। इन 50 सीटों में से 11 सीटों पर तीनों मिलाकर भी 5 हजार से कम वोटों से भाजपा पीछे थी, तो 19 विधानसभा सीटों पर 10 हजार वोटों से और 20 क्षेत्रों में 20 हजार वोटों से पीछे रही है। इसलिए अगर मोदी लहर कायम रहता है और लोग 2014 की पैटर्न पर वोट देते हैं, तो यह गठबंधन 87 सीटें जीत पाएगी और दूसरे 50 सीटों पर इसकी उम्मीद अधिक रहेगी।

इस वजह से कांग्रेस-सपा कर रहीं गठबंधन
लेकिन यह गठबंधन साल 2012 के चुनाव परिणाम के आधार पर 202 से अधिक सीटें लाने की उम्मीद बनाए हुए है। पिछली विधानसभा चुनाव में सपा को 224 सीटें मिली थीं और उसे 29.3 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे, जबकि कांग्रेस को 28 सीटें और 11.7 प्रतिशत वोट मिले थे। उस चुनाव में भाजपा को केवल 15 प्रतिशत वोट और 47 सीटें ही मिली थीं। इस आधार पर तो सपा-कांग्रेस गठबंधन को आसानी से बहुमत मिल जाएगा लेकिन स्थितियां वैसी ही नहीं हैं। कांग्रेस-सपा इसलिए गठबंधन कर रही है क्योंकि उन्हें पता है कि अकेले चुनाव लड़ने में वे असहज महसूस कर रहे हैं।

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