‘कौशल विकास मिशन’ के नाम पर यूपी के 32 जिलों में करोड़ों का वारा-न्यारा

punjabkesari.in Friday, Dec 08, 2017 - 04:59 PM (IST)

लखनऊ, आशीष पाण्डेय: पीएम नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट कौशल विकास अभियान को यूपी के अधिकारियों ने जमकर पलीता लगाया है। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजना ‘कौशल विकास मिशन’ के नाम पर लखनऊ समेत यूपी के 32 जिलों में करोड़ों का वारा-न्यारा हो गया। केंद्र सरकार को जब इस उलट फेर का पता चला तो इसकी पड़ताल कराने का निर्णय लिया गया। पड़ताल के बाद जो खुलासा हुआ है उससे यह स्पष्ट है कि अपात्रों को पात्र बनाकर उनके नाम पर धनराशि आबंटित कर दी गई। इतना ही नहीं इस योजना में प्रशिक्षण पाने वालों की भी संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई गई और उनके नाम पर आया पैसा हड़प लिया गया। जबकि इस योजना में हर प्रशिक्षार्थी का आधार वेरिफिकेशन जरूरी था।

युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना है मकसद
इस योजना का मकसद 12वीं या स्नातक की पढ़ाई बीच में छोडऩे वाले युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण के बाद रोजगार दिलवाना था। बीते दो वित्तीय वर्ष में हर साल कुल 40-40 करोड़ रुपये यूपी में इस योजना के तहत खर्च हुए। हाल ही में एक शिकायत के बाद केंद्र ने प्रशिक्षार्थियों और उन पर आए खर्च के सत्यापन के लिए कहा था। जिसके बाद इस धांधली का खुलासा हुआ। सबसे अधिक गड़बड़ी पूर्वांचल के जिलों में मिली है। लगभग हर जिले में गड़बडिय़ां हैं। प्लेसमेंट के लिए होने वाले कौशल मेले के नाम पर भी खानापूर्ति की गई। जबकि हर सेंटर से 80 प्रतिशत प्रशिक्षार्थियों का प्लेसमेंट जरूरी था। लखनऊ और बरेली में युवाओं से जमानत के तौर पर 1500-1500 रुपये भी लिए गए। प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार ने बताया है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2017-18 तक हर साल खर्च हुई रकम की जांच होगी। जांच कमिटी बना दी गई है। हर जिले के डीएम को जांच के लिए निर्देश भेज दिए गए हैं।

जांच के दौरान सामने आई हकीकत
अंदेशा होने पर हर जिले के जिला समाज कल्याण अधिकारी (विकास) के जरिए कौशल विकास मिशन के प्रशिक्षार्थियों का सत्यापन कराया गया। पहले चरण में यूपी के 32 जिलों में सत्यापन करवाया गया।जानकारों ने इस रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए हैं। इस मुद्दे पर पूर्व की सपा सरकार व भाजपा आमने सामने हैं। यूपी के शीतकालीन विधानसभा सत्र में इस चर्चा की मांग हो सकती है। हकीकत यह है कि यूपी में कौशल विकास मिशन के तहत 02 हजार 458 प्रशिक्षार्थी ही सत्यापित हैं जबकि कागजों में कई गुना ज्यादा दिखाया गया है। समाज कल्याण राज्यमंत्री गुलाबो देवी ने सीएजी से पूरी योजना का ऑडिट करवाने के लिए कहा है।  
- इलाहाबाद में सत्यापन के दौरान 1289 में से 13 प्रशिक्षार्थी ही मिले। जांच में पता चला कि यहां प्रशिक्षार्थियों को स्टाफ नर्स और मेडिकल संबंधित प्रशिक्षण दिया गया, लेकिन ड्रेस-टूल और प्रशिक्षण के दौरान दी ने वाली छात्रवृत्ति नहीं दी गई।
- बरेली में सत्यापान के दौरान 858 में से 56 प्रशिक्षार्थियों का ही ब्योरा सत्यापित हो पाया। बाकी नहीं मिले। मुफ्त दी जाने वाली यूनिफॉर्म, किताब के लिए प्रशिक्षार्थियों से 500-500 रुपये तक लिए गए। इसके वजूद यूनिफॉर्म मिली न किताबें। प्रमाण पत्र तक नहीं दिए।
- लखनऊ में सत्यापन के दौरान प्रशिक्षार्थियों की संख्या 640 दर्ज दिखाई गई। जबकि हकीकत में केवल 172 प्रशिक्षार्थी मिले।
- बिजनौर में आश्चर्य जनक मामला सामने आया। यहां पर 860 प्रशिक्षार्थी बताए गए थे। सत्यापन में पता चला कि प्रशिक्षण जिस संस्था से दिलवाया गया है वह खुद मानकों पर फेल थी, इसके बावजूद चुन ली गई।
- जौनपुर में सत्यापन के दौरान 743 में से सिर्फ 71 प्रशिक्षार्थी ही मिले। प्रशिक्षार्थियों ने यह आरोप भी लगाया कि पूरी ट्रेनिंग तक नहीं दी गई।
- हाथरस में 663 में से 640 सत्यापित हुए, लेकिन अधिकारियों ने कोई टिप्पणी रिपोर्ट में नहीं लिखी।
- प्रतापगढ़ के कुल प्रशिक्षार्थियों की संख्या का कॉलम खाली है, लेकिन नौ प्रशिक्षार्थियों का सत्यापन करके प्रशिक्षण संतोषजनक बता दिया।
- गोरखपुर में 307 में से केवल 30 प्रशिक्षार्थियों का सत्यापन हो पाया लेकिन अधिकारियों को यहां का काम पता नहीं क्यों संतोषजनक लगा।

इन जिलों में भी गड़बडिय़ां
लखीमपुर-खीरी, हाथरस, गोरखपुर, आजमगढ़, औरैया, फैजाबाद, फतेहपुर, प्रतापगढ़, सीतापुर, इटावा, मऊ, संभल, मुरादाबाद, बांदा, बाराबंकी, सोनभद्र, गाजियाबाद, कन्नौज, फर्रुखाबाद, मेरठ, सुलतानपुर, अमेठी, झांसी, महोबा, चंदौली, हरदोई, मुजफ्फरनगर।