संसद हमले की 16वीं बरसी पर विशेष: अशोक चक्र से सम्मानित शहीद कमलेश कुमारी की गौरव गाथा
punjabkesari.in Wednesday, Dec 13, 2017 - 06:25 PM (IST)

लखनऊ, आशीष पाण्डेय: 13 दिसंबर 2001 को संसद हमला आपको याद होगा। आज इस घटना को 16 वर्ष हो गए। आतंकवादियों के हमले को हमारे सुरक्षाकर्मियों ने नाकाम कर दिया। कड़ी टक्कर देते हुए देश के 13 जवान व एक माली शहीद हो गए। अपना सर्वोच्च बलिदान देकर संसद को बचाने वालों में एक महिला कांस्टेबल भी थी। उत्तर प्रदेश के कन्नौज में सिकंदरपुर की रहने वाली इस विरांगना ने बिना हथियारों के आतंकवादियों के मंसूबो पर पानी फेर दिया था। कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने ही पहली बार आतंकवादियों को देखा था। यूपी की इस बेटी को पूरे देश के सामने नारी शक्ति की अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। आजाद भारत में अशोक चक्र पाने वाली पहली महिला कमलेश कुमारी यादव ही थी। उन्हें यह सम्मान मरणोपरांत मिला।
आतंकियोंको सबसे पहले देखा
कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने 1994 में फोर्स ज्वाइन की थी और वे एलीट 104 रैपिड एक्शन फोर्स में तैनात थी। 22 जुलाई 2001 को उन्हें 88 महिला बटालियन में पोस्ट किया गया। संसद सत्र चलने के दौरान कमलेश की तैनाती ब्रावो कंपनी का हिस्सा बनी। 13 दिसंबर 2001 को कमलेश की तैनाती आयरन गेट नंबर एक पर थी। उसी दिन सुबह 11:50 बजे संसद भवन के भवन गेट नं 11 के बगल में लोहे गेट नंबर 1 पर जहां कमलेश तैनात थी। इसी दौरान एक अंबेस्डर कार डीएल 3 सीजे 1527 विजय चौक फाटक की ओर जाती दिखी। कमलेश को शक हुआ तो वो कार की जांच करने के लिए आगे बढ़ी। कार के पास जाने वाली पहली सुरक्षा अधिकारी थी। उन्हें मामला संदिग्ध लगा तो वो विजय गेट को बंद करने के लिए दौड़ पड़ी। उस वक्त महिलकॉन्स्टेबल को कोई राइफल या हथियार नहीं दिया जाता था। कमलेश के पास उस समय केवल एक वॉकी-टॉकी था।
11 गोली लगने के बाद भी दिखाई बहादुरी
कमलेश बिना हथियार के कुछ नहीं कर सकती थीं ऐसे में उन्होंने तुरंत ही अपने साथी सिपाही सुखवीर सिंह को से जोर से आवाज लगाई और उन्हें आगाह कर दिया। तक तक आतंकवादियों ने उनके शरीर पर 11 गोलियां चला दी और कमलेश जी वहीं शहीद हो गई। लेकिन शहीद होने से पहले इस बहादुर विरांगना ने गेट बंद कर दिया और अलार्म रेज कर दिया। जिससे संसद की सभी सुरक्षा टुकड़ी सतर्क हो गयी। कमलेश अपने पीछे दो बेटियों, ज्योति यादव और श्वेता यादव को छोड़ गई हैं। उनके पति अवधेश यादव अब गांव में ही रहते हैं, पहले उनका परिवार नई दिल्ली के विकासपुरी में रहता था।