मजहब नहीं होता राष्ट्र का आधार: योगी

punjabkesari.in Monday, Sep 04, 2017 - 08:32 PM (IST)

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ ने आज कहा कि मजहब किसी राष्ट्र का आधार नहीं होता बल्कि राष्ट्र का आधार संस्कृति होती है। 

गोरखनाथ मंदिर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महन्त दिग्विजयनाथ की 48वीं एवं महन्त अवैद्यनाथ की तृतीय पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित भारत की सनातन संस्कृति में राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद नामक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए योगी ने कहा कि यदि मजहब आधार होता तो पाकिस्तान महज 24 वर्षों में छिन्न भिन्न नहीं हो जाता इसलिए मजहब किसी राष्ट्र का आधार नहीं होता है।

उन्होंने कहा, ‘हमारा देश सदियों से सनातन राष्ट्र है। देश की सांस्कृतिक एकता को रामायण और महाभारत से भी जोड़ते हुये योगी ने कहा कि भगवान श्री राम ने अपने काल में उत्तर को दक्षिण से जोडऩे का कार्य किया जो महाभारत काल में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। 

योगी ने कहा कि हमारे देश में पंथ बहुत है मगर जब भी राष्ट्र की बात आयी तो सबने उपासना विधि से ऊपर उठकर राष्ट्र को धर्म माना। राष्ट्रीय भावना के निर्माण में आदि शंकराचार्य की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि केरल से निकलकर इस सन्यासी ने देश के चारों कोनों पर पीठ की स्थापना किया।  द्वादस ज्योर्तिङ्क्षलग, 51 शक्तिपीठों की राष्ट्रीय एकता में भूमिका की चर्चा करते हुये योगी ने राष्ट्रीय एकता की चर्चा से गोरक्षपीठ को भी जोड़ा।

उन्होंने कहा कि यदि यह पीठ शैव पीठ है,लेकिन जब अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण की बात आयी तो यहां के संत ब्रहमलीन महंत दिगिवजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ ने वैष्णव आन्दोलन का नेतृत्व किया और यही भारतीय राष्ट्रीय संस्कृति है। मुख्यमंत्री ने भारत की सांस्कृतिक एकता के खिलाफ हो रहे षडयंत्र को कामयाब न होने देने के लिए सभी का आह्वान किया।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, नई दिल्ली के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील अंबेडकर ने कहा कि विविधता में एकता की अनुभूति से भारत की राष्ट्रीयता पनपी है। हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विकास यात्रा ने भारत को राष्ट्र बनाया, इसीलिए भारत एक सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राष्ट्र है।

अंबेडकर ने कहा कि अलग-अलग दिखने में एकत्व की अनुभूति ही राष्ट्रीयता की पहचान है। भारत की सीमा पर सेना भारत की सीमाओं की रक्षा करती है तो दूसरी तरफ सामाजिक जीवन में सन्तों, ऋषियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को जीवन्त बनाये रखा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हमारा प्रमुख कर्तव्य है कि हम भारत की राष्ट्रीयता अर्थात सांस्कृतिक एकता के प्रतीकों से भावी पीढ़ी को परिचित करायें। भारत को महाशक्ति के साथ-साथ महान राष्ट्र भी बनना है और महान राष्ट्र बनने का पाथेय भारत की संस्कृति ही है। 

उन्होंने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता वेद, उपनिषद, आरण्यक, रामायण, महाभारत जैसे उन महान ग्रन्थों में व्यवस्थापित है जो भारत की संस्कृति एवं परंपरा के साक्षी है। दुनिया को सांस्कृतिक चेतना का साफ्टवेयर भारत ही दे सकता है। सौभाग्य से यह गोरक्षपीठ ज्ञान के मार्गदर्शन की पीठ है। राष्ट्र-राष्ट्रीयता को सामाजिक जीवन तक पहुॅचाने की पीठ है। संगाष्ठी को जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य ने कहा कि भारतीय राष्ट्र को समझने के लिए भारतीय संस्कृति की अनवरत विकसित धारा को समझना पड़ेगा। राष्ट्र की अपनी विशिष्ट पहचान होती है, उसका अपना व्यक्तित्व होता है, उसकी अपनी विशिष्टताएं होती हैं। भारत राष्ट्र की भी अपनी पहचान है, अपनी परंपरा है, अपनी संस्कृति है, अपना विशिष्ट जीवन मूल्य है।  

पटना से पधारे भारत साधु समाज के महामंत्री स्वामी हरिनारायणानन्द ने कहा कि राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता की सही अवधारणा आजाद भारत के तथाकथित सेकुलरिस्टों एवं बुद्विजीवियों ने सामने ही नहीं आने दिया। शिक्षण संस्थान यह पढाती रहीं है कि कारवाँ आता गया और भारत बसता गया। वे पढ़ाती रही कि भारत को राष्ट्र ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने बनाया। उन्होंने कहा कि जान-बूझकर भारतीय राष्ट्र की अवधारणा एवं राष्ट्रीयता को विकृत किया गया।