ऋषि राजपोपट ने सुलझाई संस्कृत के हजारों साल पुरानी पहेली, आखिर क्या है ये पहेली?

punjabkesari.in Monday, Dec 19, 2022 - 04:48 PM (IST)

दिल्ली: भारतीय मूल के एक शोधकर्ता ऋषि अतुल राजपोपत ने कमाल कर दिया है। उन्होंने व्याकरण की एक ऐसी समस्या का समाधान किया जो 2500 वर्षों में किसी ने नहीं किया। ऋषि राजपोपत ने ये कमाल कर 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत के विद्वानों को पराजित किया है। ऋषि कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में 'एशियन एंड मिडल ईस्टर्न स्टडीज फैकल्टी' में पीएचडी स्कॉलर हैं। उन्होंने सालों पुराने पाणिनि द्वारा लिखी गई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में सामने आने वाली व्याकरण की गलती को ठीक कर दिखाया है। हालांकि इसका अब खंडन किया जा रहा है।

ऋषि अतुल राजपोपत  के शोधोपाधि ग्रन्थ का मूल खंडन
 संस्कृत बचाने की मुहिम चला रहीं डॉ. पुष्पा दीक्षित ने ऋषि अतुल राजपोपत  के शोधोपाधि ग्रन्थ का मूल खंडन किया गया है। उन्होंने कहा कि जो शास्त्र है हमारे भारत राष्ट्र की पहचान है। इन्हें ऋतंभरा प्रज्ञा में लिखा गया है। इन्हें गलत ठहराना गलत है।

संस्कृत के लिए क्यों खास हैं डॉ. पुष्पा
बिलासपुर के सरकारी कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते हुए डॉ. पुष्पा दीक्षित ने पाणिनी, सिद्धांत कौमुदी और आर्य प्रणाली से संस्कृत व्याकरण को लेकर तीन दशकों तक शोध किया है। इसके बाद उन्होंने सबसे प्रचलित और कठिन माने जाने वाले पाणिनीय व्याकरण को गणितीय विधि में सूत्रबद्ध किया। इसकी मदद से 3 से 4 महीने में ही लोग ठीक-ठीक संस्कृत को जान-समझ सकते हैं। 10 से 12 महीने में ही वो कोर्स पूरा कर देती हैं। डॉ. पुष्पा के गुरुकुल में संस्कृत सीखने सिर्फ भारतीय ही नहीं, बल्कि अमेरिका, चीन, बांग्लादेश समेत विश्व के कई देशों से विद्यार्थी आते हैं। इनमें क्रिश्चियन और मुस्लिम भी शामिल हैं। इनके गुरुकुल में आम दिनों में एक साथ 20 से 25 विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती, जबकि गर्मी की छुट्टियों में इनकी संख्या 60 से 80 हो जाती है। बिलासपुर के ही एक सरकारी कॉलेज से रिटायर डॉ. पुष्पा 20 साल से लगातार नि:शुल्क संस्कृत की शिक्षा दे रही हैं।

पहले भी कई विद्वानों ने इस नियम का किया था विरोध
पहले भी जयादित्य और वामन जैसे संस्कृत के विद्वानों ने इस नियम का विरोध किया था। उनकी शिकायत थी कि इस नियम से नए शब्द बनाने में दिक्कंतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन अब ऋषि अतुल राजपोपत ने नई खोज कर सभी को गलत साबित किया है। ऋषि ने थीसिस पर काम शुरू किया। उस दौरान उन्हेंत पता चला कि कात्यायन ने भी ऐसा ही अनुमान लगा लिया था। हालांकि, उन्होंने भी वैकल्पिक व्याख्या को ही आधार बनाया था। संस्कृत में ये परंपरा रही है कि एक विद्वान पुरानी पीढ़ी के विशेषज्ञों के कामों को रेफरेंस के तौर पर लेता है और उसी से अपने लेख तैयार करता था। इसलिए नए शब्द बनाने को लेकर इस तरह का कन्फ्यूजन बढ़ता चला गया।

कौन थे पाणिनि
पाणिनि 700 ईपू संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गान्धार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है। जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।

अष्टाध्यायी में मूल शब्दों से नए शब्द बनाने का नियम
दरअसल, अष्टाध्यायी में मूल शब्दों से नए शब्द को बनाने के नियम बताए गए हैं। जिसमें उन्‍होंने बड़ी गलती को उजागर किया है। ऋषि अतुल राजपोपत ने सालों पुराने पाणिनि के द्वारा लिखे गए। प्राचीन संस्कृत के ग्रंथों में गलती निकाली है। उन्होंने व्याकरण में होने वाली दिक्कत को ठीक कर दिया है। आपको बता दें कि पाणिनि का एक ग्रंथ अष्टाध्यायी है। जिसमें मूल शब्दों से नए शब्द बनाने का नियम बताया गया है, लेकिन पाणिनि के द्वारा बताए गए नियम से नए शब्द बनाने में कई बार दिक्कत आती थी। इस बात को लेकर कई स्कॉलर्स इस नियम का विरोध भी करते थे।

इस गुत्थी को सुलझाने के लिए क्या नहीं किया ? 
राजपोपत बताते हैं कि इस गुत्थी को सुलझाने के लिए उन्होंने 9 महीने तक ग्रामर पर काम किया, लेकिन इतनी कोशिश करने के बाद भी उन्‍हें कुछ हासिल नहीं हुआ। फिर उन्‍होंने एक महीने का ब्रेक ले लिया। इस दौरान उन्होंने किताबों से दूरी बना ली और गर्मियों में मजा किया। उन्होंने तैराकी करना, साइकिल चलाना, खाना बनाना, ध्यान करना और प्रार्थना करने जैसे काम किए। उसके बाद फिर एक दिन किताबों के पन्ने पलटने शुरू किए और फिर एक पैटर्न समझ आने लगा। कई और भी काम करना था, लेकिन मुझे पहेली का सबसे बड़ा हिस्सा मिल गया था। अगले कुछ हफ़्तों में मैं बहुत उत्साहित था। मैं सो नहीं सका.... संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए आधी रात पुस्तकालय में घंटों बिताए। उस काम में ढाई साल लग गए। उन्होंने कहा "भारत के कुछ सबसे प्राचीन ज्ञान संस्कृत में हैं और हम अभी भी पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि हमारे पूर्वजों ने क्या हासिल किया। मुझे उम्मीद है कि यह खोज भारत में छात्रों को आत्मविश्वास, गर्व से भर देगी और उम्मीद है कि वे भी महान चीजें हासिल कर सकते हैं." उन्हें उम्मीद है कि अब पाणिनि का व्याकरण कंप्यूटर पर पढ़ाना संभव होगा। वही कई राजनेताओं ने ऋषि राजपोपत को बधाई दी है। 
 


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Content Writer

Tamanna Bhardwaj

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