थरूर बोले, स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए रामायण-महाभारत

punjabkesari.in Sunday, Feb 19, 2017 - 11:48 AM (IST)

लखनऊ: कांग्रेस के सांसद शशि थरूर का मानना है कि बच्चों को स्कूल में महाभारत और रामायण पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि इन महाकाव्यों को धार्मिक किताब की तरह नहीं, बल्कि साहित्य की तरह पढ़ाना चाहिए। थरूर मानते हैं कि इन महाकाव्यों की सूझबूझ से सांप्रदायिक बंटवारे को खत्म किया जा सकता है। लखनऊ के श्री रामस्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी में शनिवार को आयोजित साहित्यिक सम्मेलन के दौरान अपनी ताजातरीन किताब 'एन एरा ऑफ डार्कनेस' पर आयोजित संवाद के दौरान थरूर ने ये बातें कहीं। स्कूली बच्चों को ब्रिटिश राज की विरासत के 'प्रतीक' शेक्सपियर की किताबें पढ़ाना कितना सही फैसला है के सवाल पर, थरूर ने कहा कि शेक्सपियर पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन साथ में संस्कृत के कवियों और कालिदास जैसे लेखकों की रचनाओं को भी बराबर महत्व दिया जाना चाहिए।

दुनिया के किसी भी अन्य महान लेखक की तुलना में कालिदास किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं थे।' उन्होंने कहा कि कालिदास को स्कूली पाठ्यक्रम से बाहर रखकर हम नई पीढ़ी को उनकी संस्कृति और मौलिक पहचान के बड़े हिस्से से दूर रख रहे हैं। थरूर ने कहा, 'ऐतिहासिक रूप से ही भारत इंजिनियरिंग और चिकित्सा के क्षेत्र में काफी आगे रहा है। आयुर्वेद और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट का योगदान इन क्षेत्रों में भारत की प्राचीन कौशल व निपुणता का ऐसा उदाहरण है जिसके दस्तावेज आज भी सुरक्षित हैं।' नेहरू के योगदान पर बोलते हुए थरूर ने कहा, 'जवाहरलाल नेहरू ने इसे और मजबूत किया, वह भी तब जबकि उनके सामने गंभीर आर्थिक और लोकतंत्रीय चुनौतियां थीं।'

उन्होंने कहा, 'ISRO द्वारा अभी एकसाथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में छोड़ना नेहरू द्वारा डाली गई वैज्ञानिक बुनियाद की मजबूती का सबूत है।' अपने कथन में समर्थन में थरूर ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस बयान का भी जिक्र किया, जो उन्होंने 1964 में नेहरू की मृत्यु के समय कहा था। वाजपेयी ने उस समय नए भारत के निर्माण में नेहरू के प्रयासों और योगदान की सराहना की थी। थरूर ने ब्रिटिश राज के नकारात्मक परिणामों और भारत के 'असली इतिहास' पर भी काफी विस्तार से बात की।