आखिर कांग्रेस को करना पड़ा राम मंदिर का सपोर्ट, विरोध करने पर खिसक गई जमीन

punjabkesari.in Thursday, Aug 06, 2020 - 05:35 PM (IST)

यूपी डेस्कः 1885 में अस्तित्व में आई कांग्रेस ने अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन चलाए। 1947 में भारत को आजादी दिलाने में कांग्रेस की अहम भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता है लेकिन आजाद भारत में चले दो आंदोलनों ने कांग्रेस को वो नुकसान पहुंचाया जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। पहला ऐसा आंदोलन जेपी का था जिसने कांग्रेस की नैतिक ताकत को झकझोर दिया था तो दूसरा आंदोलन श्रीराम मंदिर के निर्माण का था जिसने कांग्रेस की हाथ की ताकत को ही सिरे से उखाड़ कर फेंक दिया। राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस को लगातार झटके पर झटका लगता रहा है। राम मंदिर आंदोलन का विरोध करने और समय-समय पर राम विरोधी स्टैंड अपनाने की वजह से कांग्रेस की हाथ से भारत की सत्ता पानी की तरह फिसल गई। कांग्रेस का जनाधार धीरे धीरे खिसकता चला गया।आइए दिखाते हैं कि कांग्रेस ने राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर  कब कब और किस तरह से विरोध की नीति अपनाई थी..

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  • कांग्रेस राम मंदिर के मुद्दे पर कभी स्पष्ट रूख तय नहीं कर पाई।
  • राम मंदिर के सवाल पर कांग्रेस पार्टी शुरू से ही ग़लतियां करती चली गई।
  • एक दौर था जब कांग्रेस पार्टी ने कहा था कि रामायण कल्पना मात्र है।
  • कांग्रेस पार्टी के इस रूख से ये साफ हो गया था कि वे राम मंदिर आंदोलन की विरोधी है।
  • 2013 में सुप्रीम कोर्ट में भी कांग्रेसी सकार ने भगवान राम के अस्तित्व को नकारा था।
  • सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के बहस के दौरान कांग्रेसी सरकार ने दिया था विवादित शपथ पत्र।
  • कांग्रेसी सरकार ने शपथ पत्र में कहा था कि भगवान श्रीराम कभी पैदा ही नहीं हुए थे।
  • कांग्रेसी सरकार ने शपथ पत्र में कहा था कि भगवान श्रीराम केवल कोरी कल्पना हैं।
  • कांग्रेसी सरकार के शपथ पत्र से हिंदू समाज की आस्था पर गहरी ठेस लगी थी।
  • कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने तीन तलाक और हलाला की तुलना राम से की थी।
  • सिब्बल ने कहा था कि राम हिंदुओं के तो तीन तलाक मुसलमानों की आस्था का मसला है।
  • कपिल सिब्बल के इस विवादित दलील से भी हिंदू समाज का मजाक बनाया गया।
  • सुप्रीम कोर्ट में भी कपिल सिब्बल ने राम मंदिर केस को लटकाने की कोशिश की थी।
  • कपिल सिब्बल ने राम मंदिर की सुनवाई 2019 में टाल देने की मांग भी की थी।
  • मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह भी अकसर विवादित बयान देते रहते थे।


    कांग्रेस को अपने इस तरह की नकारात्मक राजनीति की भारी कीमत चुकानी पड़ी। शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की चरम सीमा को छू लिया था तो कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यक पंडितों को कट्टरपंथी इस्लामिकों ने जड़ से ही साफ कर दिया। सेकुलरिज्म का चैंपियन होने का दावा करने वाली कांग्रेस ने कश्मीर में हुए अत्याचार पर कभी खुल कर आवाज नहीं उठाई। कांग्रेस के ऐसे रूख से संघ परिवार और बीजेपी को बहुत ज्यादा सियासी फायदा मिला। बीजेपी की ताकत चुनाव दर चुनाव बढ़ती ही चली गई। कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति का ही नतीजा है कि कभी लोकसभा की 400 सीट जीतने वाली कांग्रेस महज 52 सीटों पर सिमट गई। यहां तक कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पाने लायक सीटें भी कांग्रेस को नहीं मिल पाई। 


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मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति से कांग्रेस काे हुआ हिदु वाेट का नुकसान
एक तरफ कांग्रेस की अपनी नीतियों की वजह से पार्टी का जनाधार सिमट कर केवल 19 फीसदी तक आ गया तो बीजेपी ने अपने जनाधार को बढ़ाते हुए लोकसभा चुनाव में लगभग 38 फीसदी वोट हासिल कर लिया। इस तरह से ये साफ हो गया कि मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति से कांग्रेस को हिंदू समाज का वोट तो खोना ही पड़ा। साथ ही मुस्लिम समुदाय का भी वोट कांग्रेस को नहीं मिल पाया। यूपी में मुस्लिम समाज का वोट सपा और बसपा में बंट गया। बिहार में मुस्लिम समाज का वोट लालू प्रसाद यादव के पाले में चला गया। 

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बीजेपी को नरेंद्र मोदी-अमित शाह का मिला फायदा
बीजेपी को नरेंद्र मोदी का आक्रामक नेतृत्व और अमित शाह की सटीक रणनीति का भी फायदा मिला और वह भारत की सत्ता के शिखर पर जा पहुंची। बीजेपी ने अपने दम पर लोकसभा में बंपर बहुमत हासिल किया और धारा 370 और तीन तलाक को खत्म करवा कर अपने कोर वोटरों की मांग को पूरा कर दिया। वहीं पांच अगस्त को राम मंदिर का भूमिपूजन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदू समाज के एक सबसे बड़े सपने को साकार कर दिया। 

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कांग्रेस काे गल्ती का हुआ एहसास, डैमेज कंट्राेल में जुटीं प्रियंका 
अयोध्या में भव्य राम मंदिर के रास्ते की सभी बाधाएं खत्म हो जाने के बाद अब कांग्रेस जैसे नींद से जागी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को ये अहसास हुआ कि राम मंदिर का विरोध कर पार्टी ने बहुत बड़ी भूल की है। कांग्रेस और गांधी परिवार की तरफ से हिंदू जनमानस पर किए प्रहार को डैमेज कंट्रोल करने के लिए प्रियंका ने राम मंदिर का समर्थन किया। प्रियंका ने कहा कि भूमिपूजन राम के "संदेश को प्रसारित करने वाला राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का कार्यक्रम बनेगा। 

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...ताे अगले कई साल तक खड़ी नहीं हाे पाएगी कांग्रेस
कांग्रेस को लगा कि अब अगर गलती नहीं सुधारी तो बीजेपी के सामने वह अगले कई सालों तक खड़ी नहीं हो पाएगी। इसलिए कमलनाथ ने घर पर हनुमान चालीसा का पाठ करवाया और पार्टी की तरफ़ से चांदी की 11 शीलाएं राम मंदिर के निर्माण के लिए भेजी। इससे पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दंडकारण्य के क्षेत्र को विकसित करने की बात कही थी क्योंकि बताया जाता है कि यहीं श्री राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास का समय बिताया था। हालांकि कांग्रेस का ये यू टर्न राम मंदिर के आधारशिला का दिन और समय तय हो जाने के बाद शुरू हुआ। अगर चार दशक के राम मंदिर आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका को माने तो ये कहना गलत नहीं होगा कि तुष्टीकरण की राजनीति से कांग्रेस को ना तो माया मिली और ना ही राम। तो वहीं चार दशक में ही श्री राम के पक्ष में बोलने पर बीजेपी दिल्ली के सिंहासन पर आसीन हो गई। कांग्रेस के नेतृत्व को गलती का अहसास तब हुआ है जब ट्रेन प्लेटफॉर्म छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी है। अब प्रियंका गांधी वाड्रा की कवायद पर ये कहना ही सही लगता है कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।


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Ajay kumar

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