महागठबन्धन की सुगबुगाहट के बीच मुलायम से मिले अखिलेश, कहा-कौन रोकेगा गर सपा-कांग्रेस ऐसा चाहेंगे

punjabkesari.in Monday, Nov 07, 2016 - 02:44 PM (IST)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर समाजवादी पार्टी (सपा) की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को रोकने के लिए महागठबन्धन बनने की सुगबुगाहट के बीच आज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की। मुलायम सिंह यादव के सरकारी आवास पर दोनों नेताओं की करीब 40 मिनट हुई बातचीत का स्पष्ट ब्यौरा तो नहीं मिल सका है, लेकिन माना जा रहा है कि पारिवारिक मसलों के साथ ही दोनों के बीच महागठबन्धन को लेकर भी बातचीत हुई।

मुलायम सिंह से मुलाकात करने के बाद मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ‘मुझे गठबन्धन के बारे में जो सुझाव देना होगा मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष जी को दूंगा। पार्टी फोरम पर भी बात करुंगा। देखना होगा कि किसे कितना लाभ हो रहा है और किसे कितना नुकसान हो रहा है।’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘कांग्रेस और सपा यदि गठबन्धन करना ही चाहेंगे तो कौन रोक सकता है।’

 उधर, मुख्यमंत्री के नजदीकी लोगों का कहना है कि अखिलेश यादव महागठबन्धन के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन वह अपने पिता तथा पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के आगे बेबस हैं। मुख्यमंत्री अपनी सरकार के कार्यों के बल पर बिना किसी दल से गठजोड किये सपा को अपने दम पर अकेले चुनाव लडने के पक्षधर बताये जाते हैं। मुख्यमंत्री को अपनी सरकार के कार्यों पर भरोसा है। उन्हें विश्वास है कि जनता उन्हें जरुर समर्थन देगी। दूसरी ओर, मुलायम सिंह यादव धर्मनिरपेक्ष में खासतौर पर मुस्लिम मतदाताओं में किसी भी कीमत पर बंटवारा नहीं चाहते। 

लोकसभा के 2014 में हुए चुनाव में तगड़ा शिकस्त खाने के बाद गैर भाजपा दल एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि गैर भाजपा मतों में बंटवारा रोकने के लिए आतुर राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह भी हर हाल में चुनावी गठबन्धन चाहते हैं, और इसके लिए उन्होंने मुलायम सिंह यादव से आगे आकर अपेक्षित महागठबन्धन का नेतृत्व संभालने की अपील तक कर डाली। 

रालोद का सूबे के पश्चिमी इलाकों में खासा प्रभाव है। जाट और मुस्लिम गठजोड की वजह से रालोद विधान सभा की 10-15 सीट जीत लेती थी, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे ने इन दोनो वर्गों में भेद पैदा किया। ऐसे में यदि महागठबन्धन नहीं बना तो अजित सिंह के पास से ज्यादातर मुस्लिम मत छटक जायेंगे और अपने सजातीय जाट मतों पर ही भरोसा करना पड़ेगा। उधर, भाजपा ने भी संजीव बलियान जैसे जाट नेता को प्रमुखता से स्थापित करने का प्रयास किया है। इन परिस्थितियों में महागठबन्धन रालोद की मजबूरी बन गयी है। इसीलिए चौधरी अजित सिंह महागठबनधन की जबरदस्त पैरवी कर रहे हैं। 

सूबे में कांग्रेस की हालत लगातार पतली होती जा रही है। उसके करीब 10 विधायक पार्टी छोड गये हैं। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित है। कांग्रेस चाहती है कि 2017 में भाजपा को रोक देने से 2019 में उसे हराना आसान हो जाएगा। हांलाकि यह अभी भी भविष्य के गर्त में है कि 2019 में क्या होगा, लेकिन कांग्रेस हर हाल में गैरभाजपा मतों का बंटवारा रोकना चाहती है, इसीलिए प्रक्षकों की माने तो 2017 में विधानसभा की कम सीट मिलने पर भी वह गठबन्धन के लिए तैयार हो सकती है। 

सपा में गठबन्धन को लेकर कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशान्त किशोर उर्फ पीके मुलायम सिंह यादव से तीन बार मिल चुके हैं। गठबन्धन होने के बारे में अभी स्पष्ट जानकारी तो नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस और सपा के बची इसकी सैद्धान्तिक सहमति हो गयी है। महागठबन्धन की चर्चा से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती में भी बेचैनी देखी जा रही है। एक दिन पहले ही मायावती ने कहा है कि महागठबन्धन बनाने की कोशिश से ही लग रहा है कि सपा ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। अकेले जीत की उम्मीद होती तो सपा गठबन्धन की बात क्यों करती। उनका यह भी कहना है कि इससे मुसलमानों को भ्रम में नहीं पडऩा चाहिए क्योंकि मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के मतों में भ्रम पैदा करने के लिए महागठबन्धन की बात की जा रही है। जबकि सत्य यह है कि बेहतर कानून व्यवस्था और विकास के लिए जनता बसपा को समर्थन देकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। 

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