इन दिग्गज नेताओं ने राम मंदिर मुद्दे में निभाई अहम भूमिका

punjabkesari.in Friday, Dec 08, 2017 - 02:57 PM (IST)

लखनऊ: कराची में पैदा हुए लाल कृष्ण अडवानी को राम मंदिर के लिए शुरू की गई मुहिम ने जनता में लोकप्रिय नेता बनाया। अडवानी द्वारा 1990 में शुरू की गई रथयात्रा के बाद भाजपा 1991 में लोकसभा में दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। 1993 में पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद अडवानी ने पार्टी में दूसरी कतार के नेता तैयार किए और 2002 में देश के उपप्रधानमंत्री बने। 2004 में भाजपा के चुनाव हारने के बाद भी पार्टी में उनकी तूती बोलती रही।

अडवानी के राजनीतिक करियर में गिरावट 2005 में उस वक्त आई जब उन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें सैकुलर नेता बताया। अडवानी के इस बयान से संघ नाराज हो गया। 2009 के चुनाव के बाद भी अडवानी का राजनीतिक कद नहीं बढ़ सका। अब वह पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं लेकिन इस मार्गदर्शक मंडल की 2014 के बाद कोई बैठक नहीं हुई है।

मुरली मनोहर जोशी, उम्र 83 साल
भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष 6 दिसम्बर, 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के समय घटनास्थल से चंद मीटर की दूरी पर थे। अडवानी उस दौरान पूरी मुहिम का चेहरा थे तो जोशी अविभाजित उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण नेता होने के नाते इस पूरी मुहिम का अहम स्तम्भ थे। नरेन्द्र मोदी मुरली मनोहर जोशी द्वारा दिसम्बर, 1991 और 1992 के मध्य कन्याकुमारी से कश्मीर तक शुरू की गई एकता यात्रा के लिए संसाधन जुटाने में अहम भूमिका में थे। जोशी के मंदिर मुहिम के लिए इस आक्रामक रुख ने उन्हें संघ के भीतर लोकप्रियता दिलाई।

जोशी भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी के बाद तीसरे सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी वाराणसी सीट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए खाली कर दी और राजनीतिक रूप से जोशी की अहमियत लगभग खत्म हो गई। जोशी अब पार्टी में बिल्कुल किनारे कर दिए गए हैं लेकिन वह मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं।

उमा भारती, उम्र 58 साल
टीकमगढ़ में पैदा हुई साध्वी का शुरूआती दिनों में सियासत से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन वह अपने धार्मिक भाषणों के लिए चर्चा में रहीं। 1984 में उमा भारती ने खुजराहो सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। 1989 में उन्होंने इसी सीट से चुनाव जीता और 1990 में लाल कृष्ण अडवानी की रथयात्रा में शामिल हो गईं। उमा भारती के आक्रामक भाषणों ने उन्हें जनता में लोकप्रिय बनाया। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री और 2003 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।

एक पुराने मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी छोडऩी पड़ी। 2004 में लाल कृष्ण अडवानी के साथ हुए झगड़े के कारण वह चर्चा में रहीं और 2005 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों व अनुशासन भंग करने के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया। उमा भारती ने 2008 में अपनी पार्टी बनाई लेकिन मध्य प्रदेश के चुनाव में उनकी पार्टी की दुर्गति हो गई। 2011 में उमा ने भाजपा में वापसी की और उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में उतारा गया। अब वह झांसी से लोकसभा की सदस्य हैं।