आशिकों के मेले में हजारों प्रेमियों ने मांगी मन्नत, जानिए क्या है इतिहास

punjabkesari.in Sunday, Jan 15, 2017 - 03:31 PM (IST)

बांदा(जफर अहमद): मकर संक्रांति का पर्व यूं तो देश के हर हिस्से में मनाया जाता है लेकिन बुन्देलखण्ड के बांदा में इसे कुछ अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। इस मौके पर केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है। प्रेम को पाने की चाहत में अपने प्राणों की बलि देने वाले नट महाबली के प्रेम मन्दिर में खास मकर संक्राति के दिन हजारों जोड़े विधिवत पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ा कर मन्नत मानते है। हर साल इस किले के नीचे बने नटबाबा के मन्दिर में मेला भी लगता है। जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। 

मन्नत मांगने आते हैं सैंकड़ों प्रेमी
इस मन्दिर में विराजमान नटबाबा भले इतिहास में दर्ज न हों लेकिन बुन्देलियों के दिलों में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है। ये जगह आशिकों के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं है। मकर संक्रांति के मौके पर शादीशुदा जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं तो सैकड़ों प्रेमी प्रेमिकाएं अपने मनपसंद साथी के लिए यहां मन्नत मांगते हैं। 

क्या है मान्यता?
मान्यता है कि 600 वर्ष पूर्व महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे। यहां से कुछ दूर मध्य प्रदेश के सरबई गाँव के एक नट जाति का 21 वर्षीय युवा बीरन किले में ही नौकर था। किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से इसी नट से विवाह की जिद की लेकिन किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पर बांबेश्वर पर्वत से किले तक नदी सूत (कच्चा धागे की रस्सी) पर चढ़कर पार कर किले आ जाए तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी। 

प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर ली और खास मकर संक्रांति के दिन नट सूत पर चढ़कर किले तक जाने लगा। प्रेमी नट ने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली लेकिन जैसे ही वह भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुंचा किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया और नट बीरन ऊंचाई से चट्टानों में गिर गया और उसकी वहीं मौत हो गयी। किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान में उसकी भी मौत हो गयी। किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गयी जो बाद में मंदिर में बदल गयी। आज ये नट महाबली का सिद्ध मंदिर माना जाता है। 

क्या कहते हैं श्रद्धालु?
-सुनील नाम के श्रद्धालु का कहना है कि हर साल की तरह इस बार भी हजारों लोग मेला देखने आए हैं। यहां आने वाले तमाम प्रेमी प्रेमिकाएं आज भी पूजा करने आते हैं और नटबली बाबा उन सबकी मुरादें पूरी करते हैं। 
-मंदिर के पुजारी कामता का कहना है कि नटबाबा के नाम पर लगने वाला ये मेला कई सालों से चल रहा है। उन्होंने बताया कि राजा और नटबाबा में शर्त हुई कि अगर वह रस्सी से चढ़कर नदी पार कर देगा तो शादी और राजपाठ उसे सौंप दिया जाएगा। जब नटबाबा शर्त पूरी करने वाले थे तो राजा ने उनके साथ धोखा करके मरवा दिया। जिसके बाद से ही ये मेला लगता आया है।  
-श्रद्धालु लड़की मधुर गुप्ता का कहना है कि जो भी यहां अपनी मुरादें लेकर आता है। उसकी मनोकामना पूरी होती है। 

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