Two-Finger Test Ban: ''रेप पीड़िता को और पीड़ा देता है टू-फिंगर टेस्ट'' सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
punjabkesari.in Monday, Oct 31, 2022 - 06:30 PM (IST)

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस की जांच के लिए किए जाने वाले टू फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दिया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की दो सदस्यीय पीठ ने ऐसा करने वालों को कदाचार का दोषी माने जाने की चेतावनी दी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी हालत में यौन उत्पीड़न या रेप पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने टेस्ट के इस तरीके पितृसत्ता की निशानी और रेप पीड़िता पर दोहरा आघात करार दिया है। पीठ ने इस टेस्ट के जारी रहने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि पीड़िताओं के साथ ऐसा करने वालों को कानून का दोषी माना जाएगा। कोर्ट ने अपने फैसले में अफसोस जताया कि आज के दौर में भी टू फिंगर टेस्ट किया जा रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई में पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में इस टेस्ट के इस्तेमाल की बार-बार निंदा की है। इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है। पीठ ने हैरत जताते हुए पूछा कि यह क्यों जारी है?
टेस्ट रेप पीड़ित को दोबारा आघात पहुंचाता है- सुप्रीम कोर्ट
इस टेस्ट पर कड़ा एतराज जताते हुए कोर्ट ने कहा कि इसका इस्तेमाल करने वालों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। ये टेस्ट रेप पीड़ित को दोबारा आघात पहुंचाता है। इस अवैज्ञानिक टेस्ट पद्धित को खत्म होना चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले में टू फिंगर टेस्ट को गैर कानूनी और रेप पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला करार दिया था। उस दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह टेस्ट रेप पीड़िता को शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है।
क्या है टू फिंगर टेस्ट?
टू फिंगर टेस्ट में पीड़िता के निजी अंगों में एक या दो उंगली डालकर उसका कौमार्य परिक्षण किया जाता है। इस परिक्षण के माध्यम से पता किया जाता है की महिला के साथ शारीरिक संबंध बने है या नहीं। यदि महिला के निजी अंगों में दोनों उँगलियाँ चली जाती है तो माना जाता है महिला के साथ संबंध बने थे।
क्यों हुआ प्रतिबंधित?
इस टेस्ट को विज्ञान पूरी तरह नकारता है। इस मामले में वैज्ञानिकों और चिकित्स्कों का कहना है इस परिक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, इस टेस्ट के जरिए महिला की वर्जिनिटी टेस्ट का सही संदाजा लगाना एक मिथ है।