योगी सरकार के लिए आसान नहीं होगा घोषणाओं पर अमली जामा पहनाना

punjabkesari.in Friday, Apr 07, 2017 - 06:41 PM (IST)

लखनऊ: योगी सरकार ने स्कूलों में योग की पढ़ाई को अनिवार्य बना दिया है। ये शारीरिक शिक्षा के एक अंग के तौर पर बच्चों को सिखाया जाएगा। देखा जाए तो योगी के सीएम बनते ही योग की अहमियत भी बढ़ गई है। इसके अलावा सरकारी स्कूलों में नर्सरी से ही अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाया जाएगा। अभी तक सरकारी स्कूलों में छठी क्लास से अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी।

आखिर क्यों योग शिक्षकों की तैनाती नहीं है आसान? 
दरअसल इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि योग शारीरिक और मानसिक फिटनेस बनाए रखने में मदद कर सकता है। योग संघ और योगी आदित्यनाथ के एजेंडे का भी हिस्सा है। यही वजह है कि सरकार का जोर योग पर है। लेकिन अभी तक योग शिक्षकों की तादाद इतनी नहीं है कि हर सरकारी स्कूल में उन्हें तैनात किया जा सके। ऐसे में अगर योग शिक्षक ही नहीं मिल पाए तो फिर योग सिखाने की योजना खटाई में पड़ सकती है। इसके अलावा इन योग शिक्षकों के लिए बजट का इंतजाम करना भी आसान नहीं दिखता। 

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुल स्कूलों की संख्या तकरीबन 2 लाख 43 हजार है। अगर सरकार ने एक स्कूल में एक भी योग शिक्षक की नियुक्ति की तो कम से कम दो लाख 43 हजार शिक्षकों के वेतन-भत्तों के लिए बड़े बजट की जरुरत होगी जिसका कोई रोडमैप सरकार ने नहीं बताया है। साफ है कि योग शिक्षक की घोषणा को अमल में लाने से पहले सरकार को बजट की दिक्कतों से दो-चार होना पड़ेगा, क्योंकि किसानों के लिए 36 हजार करोड़ रुपए की कर्जमाफी के लिए बजट का जुगाड़ करने में अधिकारियों के पसीने पहले से ही छूट रहे हैं। ऐसे में लाखों योग शिक्षकों के लिए बजट का जुगाड़ करना टेढ़ी खीर के समान है। 

अंग्रेजी पढ़ाना भी नहीं है आसान काम!
वहीं अंग्रेजी को भी सरकारी स्कूलों में नर्सरी तक पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूल के शिक्षकों का लेबल सुधारना होगा। कई बार देखने में आया है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक मामूली सवालों के जवाब देने में भी फेल हो जाते हैं। ऐसे में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा और समझा देना मुमकिन हो पाएगा की नहीं ये देखने वाली बात होगी। इतना तो जरुर है कि दोनों ही बेहतर फैसले हैं लेकिन इन्हें अमलीजामा पहनाना ही सरकार के लिए कड़ी चुनौती होगी। वैसे भी सरकारी योजनाएं हमेशा से देखने-सुनने में बेहतर ही होती हैं लेकिन बुनियादी दिक्कत ये है कि योजनाएं जमीन पर अमल में नहीं आ पाती।