BJP कल्‍याण सिंह को सौंप सकती है UP चुनाव प्रचार की कमान

punjabkesari.in Tuesday, May 31, 2016 - 11:06 AM (IST)

लखनऊ: बी.जे.पी. असम में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद अब यू.पी. चुनाव में अपना परचम लहराना चाहती है। भाजपा पाट्री के सामने सबसे बड़ा सवाल प्रदेश में सी.एम. चेहरे को लेकर है, जो अभी तक हल नहीं हो पाया है।  कल्‍याण सिंह को पार्टी दुबारा प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान सौंप सकती है। कल्‍याण सिंह वर्तमान में राजस्‍थान के राज्यपाल हैं।
 
कल्‍याण सिंह की आवश्यकता क्‍यों?
जानकारों की मानें तो बी.जे.पी. ने कल्याण सिंह के बाद रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह को प्रदेश की कमान सौंपी, लेकिन दोनों ही पार्टी के लिए यहां जमीन नहीं तैयार कर पाए।ऐसा भी कहा जा रहा है कि मायावती और मुलायम सिंह को टक्कर देने में वर्तमान में बी.जे.पी. की तरफ से कल्याण सिंह ही सबसे मजबूत मानें जा रहे हैं। इसके पीछे वजह है कि एक तो वह 2 बार यू.पी. के सी.एम. रह चुके हैं। साथ ही यहां की राजनीति और जातिगत समीकरणों से वह अच्छी तरह से परिचित हैं। इसके अलावा उनका अपना जनाधार भी है। जोड़तोड़ की राजनीति में वह काफी माहिर माने जाते हैं। वहीं, बसपा में मायावती पहले से ही सी.एम. चेहरा हैं, जबकि सपा फिर से एक बार अखिलेश को विकास पुरुष बताकर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में अगर बी.जे.पी. किसी मजबूत चेहरे को प्रदेश में नहीं लाती है, तो इसका फायदा बसपा और सपा को मिलना लाजिमी है।
 
बी.जे.पी.दुबारा गलती नहीं दोहराना चाहेगी
जानकारों का यह भी कहना है कि बी.जे.पी. उस गलती को दोबारा दोहराना नहीं चाहेगी, जो उसने दिल्ली में की थी। बता दें, दिल्ली में बी.जे.पी. ने हर्षवर्धन की बजाय किरण बेदी को सी.एम. प्रोजैक्ट किया और हालत यह हुई कि दिल्ली में बी.जे.पी. की बुरी तरह हारी। यह भी एक वजह है कि यू.पी. में पार्टी स्मृति ईरानी को प्रोजैक्ट करने के बजाय कल्याण सिंह को लाकर असम के फार्मूले पर चुनाव लड़ सकती है। 

कल्‍याण सिंह की राजनीति?
कल्याण सिंह पहली बार 1991 में यू.पी. के सी.एम. बने। 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद जब ढही, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद एक बार फिर से जब बसपा और बी.जे.पी. के गठबंधन में सरकार बनी तो वह सी.एम. बने। हालांंकि, मायावती के बीच में ही समर्थन वापस लेने के बाद उन्होंने लोकतांत्रिक कांग्रेस और जन बसपा के विधायकों के साथ गठबंधन बनाकर सरकार चलाई। 1999 में उन्होंने सार्वजनिक मंच से अटल विहारी बाजपेई की आलोचना की, तो पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। इसके बाद 2002 में उन्‍होंने अपनी पार्टी बनाई, हालांंकि इससे उन्‍हें बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ। 2003 में वह मुलायम सिंह की सरकार के गठबंधन में शामिल हो गए। लेकिन ये दोस्ती ज्यादा दिन तक नहीं चली और 2004 में वह एक बार फिर से बी.जे.पी. में वापस आ गए। 2007 का चुनाव बी.जे.पी. ने कल्याण सिंह की अगुवाई में लड़ा, लेकिन उससे विशेष फायदा नहीं हुआ। इसके बाद एक बार फिर से कल्याण सिंह 2009 में मुलायम सिंह के साथ चले गए। इस दौरान उन्होने बी.जे.पी. नेताओं पर जमकर भड़ास भी निकाली। लेकिन 2014 में लोकसभा चुनाव के पहले एक बार फिर से वह बी.जे.पी. में वापस आ गए। मोदी सरकार बनते ही उन्‍हें राजस्थान का गर्वनर बना दिया गया।