3 साल के मृत बेटे को अंतिम बार गले भी नहीं लगा सका ''कोरोना वॉरियर'', बेबस होकर देखता रहा शव

punjabkesari.in Wednesday, May 06, 2020 - 07:52 PM (IST)

लखनऊः कोरोना संकट के बीच कोरोना वॉरियर्स का योगदान कभी नहीं भूला जा सकता है। ऐसे में एक बेहद दर्दनाक मामला सामने आया है। ये पिता की मजबूरी कहें या दुख की दास्तां जो भी सुना बस उस वॉरियर के लिए सलाम निकला। जहां राजधानी लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल में वार्ड ब्वॉय के तौर पर तैनात एक बाप कोरोना संक्रमण फैलने के डर के कारण अपने मृत पुत्र को आखिरी बार गले तक नहीं लगा सका और तड़प कर रह गया।

बता दें कि यह हृदयविदारक किस्सा लोकबंधु अस्पताल में तैनात 27 वर्षीय 'कोरोना वॉरियर' मनीष कुमार का है। लोकबंधु अस्पताल को लेवल-2 कोरोना अस्पताल बनाया गया है। शनिवार की रात जब मनीष पृथक वार्ड में मरीजों की देखभाल कर रहे थे, तभी उन्हें घर से फोन आया कि उनके तीन साल के बेटे हर्षित को सांस लेने में तकलीफ और पेट में दर्द हो रहा है।

वहीं मनीष ने बताया कि 'जब मुझे घर से फोन आया तो मैं बेचैन हो गया. मैं फौरन अस्पताल से जा भी नहीं सकता था। परिवार के लोग मेरे बेटे को किंग जॉर्ज मेडिकल यूनीवर्सिटी ले गये। मुझे दिलासा देने के लिये वे व्हाट्सऐप पर हर्षित की फोटो भेजते रहे। रात करीब दो बजे वह दुनिया को छोड़ गया।' मनीष यह बात बताते हुए फफक कर रोने लगे। उन्होंने बताया, 'मैं अपने बेटे के पास जाना चाहता था लेकिन मैंने अपने साथी कर्मियों को नहीं बताया क्योंकि मैं अपने मरीजों को उनके हाल पर छोड़कर नहीं जाना चाहता था। मगर घर से बार-बार कॉल आने और मेरी हालत देखकर मेरे साथियों ने मुझसे घर जाकर बेटे को आखिरी बार देख आने को कहा।' मनीष सभी जरूरी एहतियात बरतते हुए किसी तरह केजीएमयू पहुंचे, जहां उनके मासूम बच्चे का शव रखा था। हालांकि वह अस्पताल के अंदर नहीं गये और अपने बेजान बेटे को बाहर लाये जाने का इंतजार करते रहे।

गम में डूबे मनीष ने बताया, 'मैं अपने घर के गेट के पास बरामदे में बैठा रहा। अगले दिन हर्षित का अंतिम संस्कार किया गया। मैं अपने बेटे को छू तक नहीं सका, क्योंकि अंत्येष्टि में बड़ी संख्या में लोग शामिल थे और मेरे छूने से संक्रमण हो सकता था। मेरे वरिष्ठजन ने भी किसी तरह के संक्रमण को टालने की सलाह दी थी।' उन्होंने कहा कि अब उनके पास अपने बेटे की बस यादें ही रह गयी हैं। मोबाइल फोन में कुछ वीडियो और तस्वीरें ही अपने प्यारे बच्चे की स्मृतियां बन गयी हैं।

 

Author

Moulshree Tripathi