8वें दौर की वार्ता फिर हुई फेल, किसान संगठनों ने कानून को निरस्त करने की मांग मांग पर अड़े

punjabkesari.in Friday, Jan 08, 2021 - 08:35 PM (IST)

नयी दिल्ली/लखनऊ: तीन कृषि कानूनों को लेकर पिछले लगभग एक महीने से सरकार और किसानों के बीच चला आ रहा गतिरोध शुक्रवार को आठवें दौर की वार्ता के बाद भी समाप्त नहीं हो सका। लिहाजा बैठक की अगली तारीख 15 जनवरी तय की गई। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि वार्ता के दौरान किसान संगठनों द्वारा तीनों कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग के अतिरिक्त कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं किए जाने के कारण कोई फैसला नहीं हो सका। लगभग दो घंटे तक चली बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में तोमर ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि अगली वार्ता में किसान संगठन के प्रतिनिधि वार्ता में कोई विकल्प लेकर आएंगे और कोई समाधान निकलेगा।उन्होंने कानूनों को निरस्त करने की मांग यह कहते हुए खारिज कर दी कि देश भर के अन्य किसानों के कई समूहों ने इन कृषि सुधारों को समर्थन किया है। तोमर ने इस बात से इंकार किया कि सरकार ने किसानों के समक्ष कृषि कानूनों से संबंधित उच्चतम न्यायालय में लंबित एक मामले में शामिल होने का कोई प्रस्ताव रखा। उन्होंने हालांकि कहा कि उच्चतम न्यायालय जो भी फैसला लेगी, सरकार उसका अनुसरण करेगी। 

सूत्रों ने बताया कि उच्चतम न्यायालय में इस मामले में 11 जनवरी को होने वाली सुनवाई को ध्यान में रखते हुए अगली वार्ता तय की गई है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता है। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार इन कानूनों को लागू करने का अधिकार राज्यों पर छोडऩे के प्रस्ताव पर विचार करेगी, तोमर ने कहा कि इस संबंध में किसान नेताओं की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं आया है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो सरकार उस वक्त फैसला लेगी। तोमर ने कहा, च्च्वार्ता में तीनों कानूनों पर चर्चा होती रही लेकिन कोई निर्णय आज नहीं हो सका। सरकार का लगातार यह आग्रह रहा कि कानूनों को निरस्त करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प अगर यूनियन दें तो सरकार उस पर विचार करेगी। लेकिन बहुत देर तक चर्चा के बाद भी कोई विकल्प आज प्रस्तुत नहीं किए जा सकें। इसलिए चर्चा का दौर यहीं स्थगित हुआ।'' 

उन्होंने कहा कि किसान संगठनों और सरकार के बीच अगले दौर की वार्ता आपसी सहमति से 15 जनवरी को तय की गई। बैठक के बाद किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि बैठक बेनतीजा रही और अगली वार्ता में कोई नतीजा निकलेगा, इसकी संभावना भी नहीं है। उन्होंने कहा, च्च्हम तीनों कानूनों को निरस्त करने के अलावा कुछ और नहीं चाहते।'' उन्होंने कहा, च्च्सरकार हमारी ताकत की परीक्षा ले रही है लेकिन हम झुकने वाले नहीं हैं। ऐसा लगता है कि हमें लोहड़ी और बैशाखी भी प्रदर्शन स्थलों पर मनानी पड़ेगी।'' एक अन्य किसान नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा कि किसान जीवन के अंतिम क्षण तक लडऩे को तैयार है। उन्होंने अदालत का रुख करने के विकल्प को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि किसान संगठन 11 जनवरी को आपस में बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे। तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े किसान नेताओं ने सरकार से दो टूक कहा कि उनकी च्च्घर वापसी'' तभी होगी जब वह इन कानूनों को वापस लेगी। सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के 41 सदस्यीय प्रतिनिधियों के साथ आठवें दौर की वार्ता में सत्ता पक्ष की ओर से दावा किया गया कि विभिन्न राज्यों के किसानों के एक बड़े समूह ने इन कानूनों का स्वागत किया है।

 सरकार ने किसान नेताओं से कहा कि उन्हें पूरे देश का हित समझना चाहिए। तोमर, रेलवे, वाणिज्य एवं खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री एवं पंजाब से सांसद सोम प्रकाश करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विज्ञान भवन में वार्ता कर रहे थे। उधर, मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद बीते एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक एक किसान नेता ने बैठक में कहा, च्च्हमारी च्घर वापसी' तभी होगी जब इन च्कानूनों की वापसी' होगी।'' एक अन्य किसान नेता ने बैठक में कहा, च्च्आदर्श तरीका तो यही है कि केंद्र को कृषि के विषय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि उच्चतम न्यायालय के विभिन्न आदेशों में कृषि को राज्य का विषय घोषित किया गया है। ऐसा लग रहा है कि आप (सरकार) मामले का समाधान नहीं चाहते हैं क्योंकि वार्ता कई दिनों से चल रही है। ऐसी सूरत में आप हमें स्पष्ट बता दीजिए। हम चले जाएंगे। क्यों हम एक दूसरे का समय बर्बाद करें।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की कविता कुरुगंती ने बताया कि सरकार ने किसानों से कहा है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं ले सकती और ना लेगी। कविता भी बैठक में शामिल थीं। लगभग एक घंटे की वार्ता के बाद किसान नेताओं ने बैठक के दौरान मौन धारण करना तय किया और इसके साथ ही उन्होंने नारे लिखे बैनर लहराना आरंभ कर दिया। इन बैनरों में लिखा था च्च्जीतेंगे या मरेंगे''। लिहाजा, तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए हॉल से बाहर निकल आए। एक सूत्र ने बताया कि तीनों मंत्रियों ने दोपहर भोज का अवकाश भी नहीं लिया और एक कमरे में बैठक करते रहे। आज की बैठक शुरु होने से पहले तोमर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और दोनों के बीच लगभग एक घंटे वार्ता चली। इससे पहले, चार जनवरी को हुई वार्ता बेनतीजा रही थी क्योंकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर डटे रहे, वहीं सरकार च्च्समस्या'' वाले प्रावधानों या गतिरोध दूर करने के लिए अन्य विकल्पों पर ही बात करना चाहती है।

किसान संगठनों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में दो मांगों पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और बिजली पर सब्सिडी जारी रखने को लेकर सहमति बनी थी। इससे पहले, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने उम्मीद जतायी कि शुक्रवार की बैठक में कोई समाधान निकलेगा। चौधरी ने च्पीटीआई-भाषा' से बातचीत में कहा, च्च्मुझे उम्मीद है कि शुक्रवार को होने वाली बैठक में किसी समाधान तक पहुंचा जा सकेगा। प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने पहली बैठक में उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की होती तो अभी तक तो हम गतिरोध को समाप्त कर चुके होते।'' उन्होंने कहा कि पहली बैठक में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग नहीं की गई थी। बैठक से पहले कविता कुरूंगती ने कहा, च्च्अगर आज की बैठक में समाधान नहीं निकला तो हम 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने की अपनी योजना पर आगे बढ़ेंगे।'' उन्होंने कहा, च्च्हमारी मुख्य मांग कानूनों को निरस्त करना है। हम किसी भी संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगे। 

सरकार इसे अहम का मुद्दा बना रही है और कानून वापस नहीं ले रही है। लेकिन, यह सभी किसानों के लिए जीवन और मरण का प्रश्न है। शुरुआत से ही हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।'' किसान यूनियनों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा रही थी। एक ओर किसान यूनियन तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़ी हैं, तो दूसरी ओर सरकार कानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करना चाहती है। उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को किसान संगठनों ने अपनी मांगों के मद्देनजर सरकार पर दबाव बनाने के लिए ट्रेक्टर रैली निकाली थी। 


 


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Ramkesh

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