चंबल घाटी में डेढ दशक पहले डाकू जगजीवन ने खेली थी खूनी होली, कहानी सुन आज भी कांप जाती है रूह
punjabkesari.in Sunday, Mar 28, 2021 - 02:37 PM (IST)
इटावा: चंबल घाटी मे वैसे तो कुख्यात डाकुओं ने एक से बढ़कर एक ऐसे आंतकी कारनामे किए हैं जिससे लोगों में भय पैदा होना आम बात है, लेकिन उत्तर प्रदेश के इटावा मे खूंखार क्रूर डाकू जगजीवन परिहार ने डेढ दशक पहले चैरैला गांव में ऐसी खूनी होली खेली थी, जिसका खौफ आज भी लोगों को डरा जाता है। इस लोमहर्षक घटना की गूंज पूरे देश मे सुनाई दी थी। इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेला गया था।
जानकारी मुताबिक चंबल के खूंखार डाकुओं में शुमार जगजीवन परिहार के गांव चैरैला के आसपास के कई गांव में खासी दहशत और आंतक था। जगजीवन के अलावा उसके गिरोह के दूसरे डाकुओं का खात्मा हो जाने के बाद आसपास के गांव के लोगों में भय समाप्त हो गया था। मार्च 2006 को होली की रात जगजीवन गिरोह के डकैतों ने आंतक मचाते हुए चैरैला गांव में अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया और उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढ़ाई कर दी थी । वहां करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था। इतने में भी डाकुओं को सुकुन नहीं मिला तो पुरारामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया था । इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतारा था।
चंबल इलाके के पत्रकार सनोज तिवारी बताते हैं कि यह ऐसा खूनी कांड रहा है जिसकी कोई दूसरी मिसाल बीहड के इस इलाके में देखने को नहीं मिलती है। इस कांड की यादें आज भी गांव के लोगों के जहन में समाई हुई हैं। इटावा में थाना बिठौली क्षेत्र के अंतर्गत चैरैला गांव में मार्च 2006 को हुई घटना ने हर किसी को झकझोर दिया था। चूकि मुलायम सिंह यादव उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और वे होली के दिन अपने गांव सैफई में होलिका समारोह में शामिल होने के लिए आए थे। पुलिस के बड़े अफसर भी मुख्यमंत्री की वजह से आए थे जैसे उनको इस खूनी होली की खबर लगी, वैसे ही अधिकारियों ने घटनास्थल की ओर पीड़ितों की मदद के लिए दौड़ लगा दी।
चैरैला गांव के रघुपति सिंह बताते हैं कि होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग के हथियार बंद डाकुओं ने गांव में धावा बोला तो किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि डाकुओं का दल गांव में खूनी वारदात करने के इरादे से आए हुए हैं क्योंकि अमूमन जगजीवन परिहार का गैंग गांव के आसपास आता रहता था, लेकिन होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग ने सबसे पहले उनके घर पर गोलीबारी की। डाकुओं ने उनके घर पर बेहिसाब गोलियां चलाई । डाकुओं का इरादा उनकी हत्या करना था लेकिन डाकू दल घर का दरवाजा नहीं तोड़ पाए इससे वह और उसका परिवार बच गया । बेशक वो बच गया लेकिन उसके और दूसरे गांव के तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया तथा दो अन्य लोगों को गोली मार कर मरणासन्न कर दिया गया था। आज भी उस खूनी होली याद से मन सिहर उठता है। इस सनसनीखेज घटना की गूंज पूरे देश में सुनाई दी ।
इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेला गया था। इस कांड की वजह से सरकारी स्कूलों में पुलिस और पीएसी के जवानों को कैंप कराना पड़ा था। क्षेत्र के सरकारी स्कूल अब डाकुओं के आंतक से पूरी तरह से मुक्ति पा चुके हैं। इलाके में अब कई प्राथमिक स्कूल खुल चुके हैं। इसके साथ ही कई जूनियर हाईस्कूल भी खोले जा रहे हैं। जिनमें गांव के मासूम बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं और पूरे समय रहकर शिक्षकों से सीखते हैं। ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार बताते हैं कि जगजीवन के मारे जाने के बाद पूरी तरह से सुकुन महसूस हो रहा है । उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नहीं आता था । लोग अपने घरों के बजाय दूसरे घरों में रात बैठ करके काटा करते थे । उस समय डाकुओं का इतना आंतक था कि लोगों की नींद उड़ी हुई थी। पहले किसान खेत पर जाकर रखवाली करने में भी डरते थे। आज वे अपनी फसलों की भी रखवाली आसानी से करते हैं।
गौरतलब है कि कभी स्कूल में चपरासी रहा जगजीवन एक वक्त चंबल में आंतक का खासा नाम बन गया था। परिहार ने अपने ही गांव चैरैला गांव के अपने पड़ोसी उमाशंकर दुबे की 6 मई 2002 को करीब 11 लोगों के साथ मिलकर धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। डाकू उसका सिर और दोनों हाथ काटकर अपने साथ ले गए थे। इटावा पुलिस ने इसी कांड के बाद जगजीवन को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 5 हजार का इनाम घोषित किया था। एक समय जगजीवन परिहार के गिरोह पर उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश और राजस्थान पुलिस ने करीब 8 लाख का इनाम घोषित किया था। चैरैला कांड के रूप में कुख्यात यह दर्दनाक ऐसा वाक्या है जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है।