सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद BSP बना रही है नई रणनीति

punjabkesari.in Monday, Jan 30, 2017 - 03:10 PM (IST)

लखनऊ: पिछले एक सप्ताह के घटनाक्रमों ने एक बात पूरे राज्य के विभिन्न हलकों में साफ कर दी है कि सपा- कांग्रेस व भाजपा के बीच पैदा हुए वोटों के ध्रुवीकरण को बहुजन समाज पार्टी त्रिकोणीय बनाने में जुटी है। बसपा ने इसीलिए सपा- कांग्रेस व भाजपा गठजोड़ दोनों पर हमले तेज करने आरंभ कर दिए हैं। 2014 के आम चुनाव में यू.पी. की 80 लोकसभा सीटों में कहीं भी बसपा का खाता नहीं खुल पाया था लेकिन इस बार भाजपा व सपा के भीतर भी इस तथ्य को स्वीकार किया जा रहा है कि मोदी लहर में अढ़ाई बरस पहले जो दलित वोट भाजपा की ओर खिसक गया है वह चुपचाप वापस लौट आया है। बसपा भी इस बात से उत्साहित है कि हमारा साथ छोड़ चुका वोट बैंक वापस आया तो इससे कई सीटों पर मुकाबले में हम बाकी दलों पर हावी रहेंगे।

मायावती ने डॉन मुख्तार अंसारी से मिलाया हाथ
पश्चिमी यू.पी. जहां भाजपा अपना ग्राफ आगे बढ़ाने का दावा कर रही है वहां कांग्रेस ने सपा का दामन थामकर मुस्लिम वोटरों को एकजुट होकर वोट करने को विवश कर दिया है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुसलमानों की नाराजगी जाटों के पीछे खड़ी भाजपा से ज्यादा सपा के खिलाफ थी। अल्पसंख्यक समुदाय इस बात से खफा था कि जब उनके लोग दंगों में मारे जा रहे थे तो सपा सरकार कुछ दिनों तक मूकदर्शक बनकर तमाशा देखती रही। लेकिन मुस्लिम राजनीति के पैरोकारों का मानना है कि सपा-कांग्रेस के जिताऊ उम्मीदवारों को वोट देने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। इसी मुस्लिम मन की बारीकियों को समझकर ही मायावती ने हाल में मुख्तार अंसारी जैसे डॉन से हाथ मिलाने में कोई गुरेज नहीं किया। मायावती को बखूबी मालूम है कि 100 से ज्यादा सीटों पर दलित-मुस्लिम गठजोड़ मजबूती से काम करेगा।

मायावती का वोट बैंक उनके इशारे पर काम करता
लेकिन पश्चिमी यूपी के एक जाने-माने मुसलिम बुद्धिजीवी के तर्क पर गौर करें तो पाएंगे कि मुस्लिम समुदाय अपना वोट खराब करने के बजाय इस बात पर वोट करेगा कि यू.पी. के बाद दिल्ली की राजनीति में मोदी सरकार की घेराबंदी करने वाली पार्टी या गठजोड़ को वोट करना ही वक्त की मांग है। मायावती योजनाबद्ध तरीके से अपने दलित वोट बैंक के साथ बाकी जातियों का वोट बैंक जोड़कर पूरे राज्य में अपने विरोधी सपा-कांग्रेस व दूसरी ओर भाजपा को कड़ी से कड़ी टक्कर देने की योजना पर काम कर रही हैं। मायावती को इस बात पर नाज रहता है कि उसका वोट बैंक इशारे पर काम करता है तथा आखिरी मौके पर यह समझते हुए कि बसपा के मैदान में रहने से भाजपा की  बजाय सपा को लाभ होगा तो मायावती अपना वोट कहीं भी शिफ्ट कराने में देर नहीं लगातीं।

जाट मतदाता चौधरी अजित सिंह के पक्ष में खड़े दिख रहे
मुस्लिम राजनीति के जानकारों का यकीन है कि यू.पी. में अगर किसी भी सूरत में त्रिशंकु विधानसभा की सूरत बनती है तो इतना तय है कि भाजपा व बसपा किसी भी सूरत में सपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार नहीं बनने देंगे। भाजपा भी सपा की बैसाखी पर यू.पी. में सरकार की सांझेदारी में कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने को कोई कसर नहीं छोड़ेगी। पश्चिमी यू.पी. में भाजपा के पक्ष में 2014 जैसी मोदी लहर कहीं नहीं दिख रही। इसका बड़ा कारण यह है कि जाट मतदाताओं का एक बड़ा तबका चौधरी अजित सिंह के पक्ष में खड़ा दिख रहा है।

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