UP Politics: अखिलेश ने BJP को समझा दिया 2027 विधानसभा का चुनावी गणित, एक ट्वीट डिलीट के मायने?
punjabkesari.in Thursday, May 22, 2025 - 11:59 PM (IST)

Lucknow News: समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि युवाओं के लिए नौकरी और रोजगार भाजपा सरकार के एजेंडे में नहीं है। जिस तरह से नौकरियों के बारे में की गयी पोस्ट डिलीट कर दी गयी है, वैसे ही नौकरियां भी उत्तर प्रदेश से डिलीट कर दी गयीं हैं।
पल भर में सराकर ने छीन लीं युवाओं की खुशी
दरअसल, यूपी सरकार के अधिकारिक X हैंडल से एक अखबार की कटिंग की तस्वीर शेयर कर इस बात की घोषणा की गई कि सूबे में अब 1 लाख 93 हजार पदों पर शिक्षक भर्ती होगी। सरकार के इस पोस्ट के बाद युवाओं के बीच खुशी की लहार दौड़ गई। मगर ये खुशी ज्यादादेर तक नहीं रही क्योंकि सरकार ने अपना X पोस्ट डिलीट कर लिया। इसी के बाद से इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है। सपा चीफ अखिलेश यादव ने 1 लाख 93 हजार के आंकड़े से ये साबित करने की कोशिश की है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा बहुमत का आंकड़ा भी पार नहीं कर पर पाएगी। आइए जानते हैं अखिलेश यादव ने क्या गुणा-गणित लगाकर ट्वीट किया।
एक लाख 93 हजार शिक्षक भर्तियों के जुमलाई विज्ञापन से जन्मा आक्रोश
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का एक लाख 93 हजार शिक्षक भर्तियों के जुमलाई विज्ञापन से जन्मा आक्रोश 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का राजनीतिक गणित है। उन्होंने कहा कि मान लिया जाए कि एक पद के लिए कम से कम 75 अभ्यर्थी होते तो यह संख्या एक करोड़ 44 लाख 75 हजार होती है और एक अभ्यर्थी के साथ यदि केवल उनके अभिभावक जोड़ लिए जाएं तो कुल मिलाकर तीन लोग इससे प्रभावित होंगे और ये संख्या बैठेगी चार करोड़ 34 लाख 25 हजार बैठेगी। ये सभी व्यस्क होंगे अतः इन्हें 4,34,25,000 मतदाता मानकर अगर उप्र की 403 विधानसभा सीटों से विभाजित कर दें तो ये आँकड़ा लगभग 1,08,000 वोट प्रति सीट का आयेगा और अगर इनका आधा भी भाजपा का वोटर मान लें (चूँकि भाजपा 50% वोटर्स की जुमलाई बात करती आई है) तो लगभग 1,08,000 का आधा मतलब हर सीट पर 54,000 मतों का नुक़सान भाजपा को होना तय है। इस परिस्थिति में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनावों में दहाई सीटों पर ही सिमट जाएगी।
पुलिस भर्ती के मामले में ‘भर्तियों का ये गणित’ भाजपा को उप्र में लगभग आधी सीटों पर हारने में सफल भी रहा है, अत: ऐसे आँकड़ों को अब सब गंभीरता से लेने लगे हैं। अब ये मानसिक दबाव का नहीं वरन सियासी सच्चाई का आँकड़ा बन चुका है।