इलाहाबाद HC का बड़ा फैसला: 16 साल की उम्र में निकाह वैध, रे*प नहीं माना जाएगा — आरोपी इस्लाम को किया बरी
punjabkesari.in Friday, Oct 17, 2025 - 08:15 AM (IST)

Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण, जबरन शादी और नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने के एक केस में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस्लाम नामक युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया, जिसे पहले निचली अदालत ने 7 साल की सजा दी थी।
क्या था मामला?
इस्लाम पर आरोप था कि उसने एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर जबरन उससे शादी की और फिर शारीरिक संबंध बनाए। ट्रायल कोर्ट (निचली अदालत) ने इस्लाम को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 (अपहरण), 366 (जबरन शादी) और 376 (बलात्कार) के तहत दोषी मानते हुए सात साल की कठोर कैद की सजा दी थी।
हाईकोर्ट ने क्यों दी राहत?
मामले की सुनवाई जस्टिस अनिल कुमार की सिंगल बेंच ने की। उन्होंने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए इस्लाम को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने कई अहम बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए यह फैसला दिया:
लड़की की गवाही ने बदला पूरा मामला
पीड़िता (लड़की) ने कोर्ट में साफ कहा कि वह अपनी मर्जी से इस्लाम के साथ गई थी। उसने बताया कि दोनों ने कालपी में निकाह (शादी) किया और फिर भोपाल में एक महीने तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे। ऐसे में यह साबित नहीं हो सका कि लड़की को बहला-फुसलाकर या जबरदस्ती ले जाया गया था।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार शादी वैध
कोर्ट ने माना कि पीड़िता की उम्र ऑसिफिकेशन टेस्ट (हड्डियों की जांच) के अनुसार 16 साल से अधिक थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, 15 साल की उम्र पूरी करने पर लड़की को बालिग माना जाता है और वह शादी कर सकती है। ऐसे में कोर्ट ने माना कि निकाह वैध था और पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध कानूनन अपराध नहीं है।
'ले जाना' और 'साथ जाना' में फर्क होता है: कोर्ट
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले (1973) का हवाला देते हुए कहा कि 'किसी को ले जाना' और 'किसी का खुद साथ जाना' — दोनों में कानूनी फर्क होता है। लड़की के पिता ने अपहरण का आरोप लगाया था, लेकिन अभियोजन (सरकारी पक्ष) ये साबित नहीं कर सका कि लड़की को जबरदस्ती ले जाया गया।
नतीजा
कोर्ट ने कहा कि चूंकि लड़की की गवाही से जबरन अपहरण और शादी की बात साबित नहीं होती और निकाह भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत वैध है, इसलिए इस्लाम को सभी आरोपों से बरी किया जाता है।
कानून की नजर में अहम बात
- मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार 15 साल की उम्र के बाद लड़की शादी कर सकती है
- शादी के बाद पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध IPC की धारा 376 (रेप) के तहत नहीं आता, अगर यह जबरदस्ती ना हो
- अदालतें अक्सर सामान्य कानून (IPC) और पर्सनल लॉ (धार्मिक कानून) में संतुलन बनाकर फैसला देती हैं