मवेशियों को लगाए जाएंगे जहर के इंजेक्शन, जानिए वजह

punjabkesari.in Saturday, Dec 30, 2017 - 12:39 PM (IST)

कानपुरः वर्तमान दौर में बीमारियां का खतरा लोगों पर मंडराता ही रहता है। इसके साथ ही जानवरों से लगने वाली बीमरियों का तो ज्यादा खतरा रहता है। ताजा मामला कानपुर का है, जहां घोड़े की प्रजाति से इंसानों में फैलने वाली जानलेवा बीमारी ‘ग्लैंडर्स’ 7 घोड़े और 6 खच्चर में मिली।

बताया गया कि इससे बचाव के लिए अब इन दसों मवेशियों को जहर का इंजेक्शन देकर मौत की नींद सुला दिया जाएगा। तेजी से फैलने वाली इस बीमारी की चपेट में दूसरे मवेशी के अतिरिक्त इंसान भी आ सकते हैं। इस आशंका के चलते पशु विभाग को सक्रिय कर दिया गया है।

जानवरों को दिए जाएंगे जहर के इंजेक्शन
बता दें पशु चिकित्सक के अनुसार बर्खोलडेरिया मैलियाई नामक बैक्टीरिया से फैलने वाली इस बीमारी के लक्षण बीते दिनों अश्व कुल (इक्वाइन) की कुछ प्रजातियों में मिले थे। पशु पालन विभाग ने मिलते-जुलते लक्षणों के आधार पर पशुओं के 219 ब्लड सैंपल जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार, हरियाणा भेजे थे। लैब की जांच रिपोर्ट में 10 केस पॉजिटिव पाए गए। बताया गया कि रोग निदान का दूसरा जरिया नहीं होने के कारण ऐसे जानवरों को जहर का इंजेक्शन देने के सिवाए कोई चारा नहीं है।

संक्रमित सभी मवेशी सिकंदरा के हैं
सीवीओ डा. के एस यादव ने बताया कि संक्रमित सभी मवेशी सिकंदरा के हैं। सभी को जहर देकर मारने की अनुमति सीडीओ ने गुरुवार को दे दी है। पशु चिकित्सक डा. ह्रदेश को इसका नोडल प्रभारी बनाया गया है। उनकी देखरेख में जानवरों को मारा जाएगा। बाकी जगहों पर इसका बैक्टीरिया न पहुंचे, इसके लिए प्लान तैयार किया जा रहा है। पशु चिकित्सक डॉ. ह्रदेश ने बताया कि मवेशियों को कम से कम दर्द देकर मारा जाएगा। इसके लिए 3 तरह के जहर दिए जाएंगे। घोड़ों-खच्चरों को पहले जाइलेजिन इंजेक्शन फिर थॉयोपेंटस सोडियम और फिर मैग्नीशियम सल्फेट का 10 एमजी वाल्यूम इंजेक्ट किया जाएगा। 

कार्रवाई के दौरान अधिकारी व पुलिस मौजुद रहेगी
इस कार्रवाई के दौरान मजिस्ट्रेट स्तर का एक अधिकारी व पुलिस रहेगी। पूरी प्रक्रिया की फोटोग्राफी होगी और मरने के बाद बाकायदा उन्हें दफनाया जाएगा। सीवीओ ने बताया कि जिन घोड़ों-खच्चरों को डेथ इंजेक्शन दिया जाएगा, उनके पालकों को विभाग की तरफ से निर्धारित मुआवजा दिया जाएगा। घोडे़ के लिए 25 हजार और खच्चर की हत्या पर 16 हजार रुपए की राशि प्रदान की जाएगी।‘ग्लैंडर्स’ रोग का प्रभाव अभी तक वेस्ट यूपी के बरेली, बदायूं और बिजनौर में ज्यादा रहा है। लेकिन अब कानपुर देहात तक बीमारी आने के पीछे माना जा रहा है कि घोड़े-खच्चरों के पालक आमतौर पर भट्ठा मजदूर या ठेकेदार होते हैं।

ऐसा केस अंतिम बार वर्ष 2000 में अमेरिका में मिला
प्रभावित क्षेत्रों के लोगों द्वारा संक्रमित जानवरों को यहां लाने का अनुमान लगाया जा रहा है। ग्लैडर्स के उन्मूलन के लिए देश में वर्ष 1899 में ग्लैंडर्स एंड फारसी एक्ट बना था और यह बीमारी नोटिफाई कर दी गई थी। देश ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया में ‘ग्लैंडर्स’ की जांच की एकमात्र प्रयोगशाला हरियाणा में ही है। घोड़ों, खच्चरों व गधों से इंसानों में यह जानलेवा बीमारी आ सकती है, लेकिन पशुओं में इसके जीवाणु की संख्या कम होती है और वह इंसानों में जल्दी संक्रमण नहीं कर सकते। बताया गया कि इंसानों में ऐसा केस अंतिम बार वर्ष 2000 में अमेरिका में मिला था।

ये हैं ‘ग्लैंडर्स’ के लक्षण
‘ग्लैंडर्स’ से घबराने की जरूरत नहीं है। जिस घोड़े, खच्चर व गधे के नाक के बीच में अल्सर हो और उसमें से पीले-हरे रंग का पानी निकल रहा हो, शरीर पर दाने हों, उससे सतर्क रहें। फेफड़े का संक्रमण होने से पशु कमजोर हो जाता है।