जब सगे भाई ने किया इंकार तो फरिशता बना हिन्दू दोस्त, किडनी देकर बचाई रफी की जान

punjabkesari.in Friday, Sep 15, 2017 - 05:49 PM (IST)

बरेलीः आए दिन किसी जगह एक विशेष समुदाय के लोगों का विवाद सांप्रदायिकता में तबदील होता ही रहता है, लेकिन बरेली का ये मामला धर्म से कहीं उपर उठा हुआ है। जहां एक मुस्लिम को उसका सगा भाई किडनी देने से इंकार कर देता है तो वहीं उसका हिंदू दोस्त फरिशता बनकर आ जाता है।

डेढ़ साल से चल रहा इलाज 
जानकारी के अनुसार  45 साल के मंसूर रफी उत्तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले हैं। बीते साल मई में ही दिल्ली में इलाज के दौरान डॉक्टर ने उन्हें बता दिया था कि उनकी किडनी खराब हो चुकी हैं। वहीं दिल्ली के वीपीएस रॉकलैंड अस्पताल के डॉक्टर विक्रम कालरा ने बताया कि मंसूर को लगातार डायलसिस करना पड़ता था। उन्होंने बताया कि उनके लिए किडनी बदलवाना जरूरी है, क्योंकि किडनी ना बदलने से उनकी जिंदगी को भी खतरा हो सकता था। ऐसे में उनसे पूछा कि क्या उनका भाई, पत्नी या कोई नजदीकी रिश्तेदार उन्हें अपनी किडनी दे सकता है।

भाई ने किडनी देने से किया इंकार
पत्नी का ब्लड ग्रुप नहीं मिलता था और मंसूर रफी के भाईयों ने किडनी देने से इंकार कर दिया लेकिन उनके सालों पुराने हिन्दू दोस्त ने उनके लिए अपनी किडनी देने का फैसला किया और रफी को नई जिंदगी दी।

रूपए लेकर नहीं दी किडनी
रफी ने डॉक्टर कालरा को अपने दोस्त विपिन कुमार गुप्ता के साथ अपनी 12 साल पुरानी तस्वीरें दिखाईं। इनमें दोनों के परिवार एक साथ अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और बालाजी मंदिर में दिख रहे थे। डॉक्टर ने इसके बाद मामले को राज्य सरकार के संबंधित अधिकारियों को भेज दिया गया ताकि ये पता चल सके कि रुपए लेकर तो गुप्ता किडनी नहीं बेच रहे लेकिन जांच में डॉक्टर का ये शक बेबुनियाद साबित हुआ।

विपिन ने कहा मेरे गुरू है रफी
किडनी दान की इजाजत देने वाली कमेटी ने 3 बार गुप्ता की किडनी दान करने की याचिका खारिज कर दी। तीसरी बार में उन्हें इजाजत मिली। इसके बाद इस महीने के पहले हफ्ते में विपिन की दान की हुई किडनी रफी को लगा दी गईं। विपिन का कहना है कि वो और रफी दोनों ही पेशे से ड्राइवर हैं। रफी ने ही उनको गाड़ी चलाना सिखाया इसलिए वो उन्हें गुरू मानते हैं और गुरू के लिए उन्होंने खुशी-खुशी किडनी दान की है।