गैरों से ज्यादा अपनों का है डर, इन बागियों के तीखे तेवर बिगाड़ सकते हैं भाजपा का गणित

punjabkesari.in Friday, Dec 28, 2018 - 06:54 PM (IST)

लखनऊः उत्तर प्रदेश में राजनीतिक क्षितिज की दो धुरी माने जाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की निकटता वर्ष 2018 में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिये परेशानी का सबब बनी रही वहीं सहयोगी दलों सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और अपना दल के साथ ही भाजपा के कुछ नेताओं ने बगावती तेवर अपना कर सरकार की मुसीबतों में इजाफा किया।

2014 लोकसभा चुनावः प्रचंड बहुमत से भाजपा ने जीता था चुनाव
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीट झटकने वाली भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के दम पर प्रचंड बहुमत हासिल किया। गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी नयी पारी का आगाज करते हुये किसानों की कर्ज माफी समेत कई अहम फैसले लिये। तेजतर्राक छवि वाले योगी के मंत्रिमंडल में सुभासपा को जगह दी गई।

सावित्री बाई फुले के बगावती सुर ने बढ़ाई भाजपा की परेशानी
उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की नुमाइंदगी करने वाले सुभासपा अध्यक्ष और कबीना मंत्री ओम प्रकाश राजभर के अलावा भाजपा की सांसद सावित्री बाई फूले ने समय समय पर बगावती तेवर अपना कर पार्टी की पेशानी में बल डाले वहीं साल के आखिरी महीने में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल अपना दल ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराजगी व्यक्त करते हुये 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग राह चुनने की धमकी दे डाली। सहयोगी दलों के साथ ही भाजपा और उसके अनुसांगिक संगठनों ने भी योगी सरकार की परेशानी बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी।

लंबे समय से भाजपा से नाराज चल रहे राजभर
वहीं सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर लंबे समय से योगी सरकार के कामकाज के तरीके को लेकर नाराजगी जताते रहे। राजभर की मांग है कि सरकारी नौकरियों में राजभर समुदाय के लोगों को आरक्षण दिया जाए और राज्य में पूर्ण रूप से शराब बंदी को लागू किया जाए।

4 सीटें हारने के बाद सहयोगियों में बैचेनी लाजमी
राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार गोरखपुर, फूलपुर लोकसभा सीट के बाद कैराना और नूरपुर में हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली शिकस्त के बाद अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की बेचैनी बढऩा लाजिमी है। दोनों सहयोगियों का लक्ष्य अपनी राजनीतिक जमीन को बचाना है, जिससे कार्यकर्ताओं और समर्थकों में चुनाव के मद्देनजर ऊर्जा भरी जा सके।

भाजपा से सम्मान ना मिलने से सहयोगी दल नाराज
हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद केंद्र में भाजपा गठबंधन की अहम सहयोगी अपना दल-सोनेलाल ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नाराजगी जाहिर की। पार्टी अध्यक्ष आशीष पटेल ने दावा किया कि न केवल अपना दल बल्कि भाजपा के भी कई विधायक, सांसद और मंत्री सरकार से नाराज हैं। दरअसल अपना दल की नाराजगी इस बात को लेकर है कि केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को उत्तर प्रदेश में वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं। यहां तक की वाराणसी संसदीय क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों में भी अनुप्रिया पटेल को नहीं बुलाया जाता, जबकि यह प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है और अनुप्रिया के संसदीय क्षेत्र से मिर्जापुर से सटा है। आशीष पटेल ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इसी तरह सहयोगी दलों की प्रदेश भाजपा उपेक्षा करती रही तो सोचना पड़ेगा।

छोटी-छोटी पार्टियों की मदद भी दे सकती हैं भाजपा को लाभ
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अपना दल और फिर 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ समझौता कर भाजपा बड़ी सफलता हासिल की। भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि पूरे देश में 70 से अधिक ऐसी छोटी-छोटी पार्टियां हैं जो भले ही अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकती हैं, लेकिन इन दलों के पास 50 हजार से लेकर 10 लाख तक वोट हैं। ये वोट लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखने में भले कम दिखते हों, लेकिन अगर भाजपा के साथ ये दल जुड़ते हैं तो उन राज्यों में भी उसे बड़ी सफलता हासिल हो सकती है, जहां फिलहाल वह कमजोर मानी जाती है। इनमें से कई छोटे दलों की पकड़ किसानों के बीच अच्छी है। कुछ दलों की मजदूर संगठनों में तो कुछ की आध्यात्मिक जगत के लोगों में अपनी पहचान है।




 

Tamanna Bhardwaj