मोबाइल युग में पिछड़ती जा रही है जीने की कला सिखाने वाली बुंदेली लोकसंगीत

punjabkesari.in Sunday, Aug 09, 2020 - 02:25 PM (IST)

झांसीः आज का युग मोबाइल का युग है। जहां टेक्नोलॉजी में ही दुनिया सिमटती जा रही है। वहीं पाश्चात्य संगीत के बढ़ते प्रभाव के चलते बुंदेलखंड की संस्कृति का पर्याय माने जाने वाली लोकगायन की मिठास फिजां से लुप्त होती जा रही है।

पहले टॉनिक हुआ करता था लोकगायन 
बता दें कि तीन दशक पहले तक खेती बाड़ी का काम निपटा कर गांव की चौपाल पर हर शाम जमा होने वाले ग्रामीण अपनी थकान वीररस से भरपूर लोकसंगीत का लुफ्त उठाकर मिटाते थे वहीं पेड़ों पर पड़े झूलों पर बच्चे किलकलारी मारते हुये पींग मारते नजर आते थे। खुशी का मौका हो या गम भुलाने की तरकीब, लोकगायन उनके लिये टॉनिक का काम करता था।

लोकगायन की अनूठी परंपरा को लग चुका है विराम
लोकसंगीत की मिठास से भरपूर निराली दुनिया में बुंदेलखंड की संस्कृति भी अमिट छाप साफ दिखती थी लेकिन मोबाइल और इंटरनेट की ग्रामीण इलाकों में पहुंच ने युवा वर्ग को उन्हे इस अनूठी परंपरा और संस्कृति से दूर कर दिया है। चौपालों में अब महफिलें नहीं सजती हालांकि कुछ बहुत बुजुर्ग कमर झुकाये अपनी समस्यायों को साझा करते देखे जा सकते है। लोकगायन की अनूठी परंपरा को लगभग विराम लग चुका है। शोरशराबे से भरपूर पाश्चात्य संगीत सदियों पुराने लोकसंगीत को लगभग लील चुका है। यही कारण है पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे झीका, मटका ,पखावज ,डफला, रमतूला, अलगोजा और पारंपरिक गायन तथा नृत्य की विधाओं का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है।

जाने माने तबला वादक और बच्चों को संगीत की नि:शुल्क शिक्षा के लिए संगीत स्कूल चलाने वाले डॉ़ शिवपूजन अवस्थी ने बताया कि ‘‘ भारतीय संस्कृति में बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक संगीत विभिन्न रूपों में सामने आता है। हमारे देवी देवाओं के हाथ भी वाद्य यंत्रों का होना बताता है कि संस्कृति के आधारभूत तत्वों में संगीत है। शिव के हाथ में डमरू,सरस्वती के हाथ में वीणा, नारद के हाथ में इकतारा तो कृष्ण की प्रिय थी बांसुरी। स्थानीय स्तर पर जीवन के दुखों और खुशियों के मिले जुले रंग से बना संगीत लोगों के गायन ,वादन और नृत्य से अपनी परिपूर्णता पाता है।''

उन्होंने कहा कि आधुनिकता की होड़ और विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिये अधिक पैसा कमाने की लालसा ने इंसान को पुरखों की विरासत लोक संस्कृति से दूर कर दिया है। जीवन के हर रंग को खूबसूरती के साथ जीने की कला सिखाने वाली लोक संस्कृति पिछड़ती चली जा रही है।                     

 

 

Author

Moulshree Tripathi