माफिया से माननीय तक, डॉन बृजेश सिंह की पूरी कहानी (PHOTOS)

punjabkesari.in Friday, Mar 11, 2016 - 08:17 PM (IST)

लखनऊ/ वाराणसी: सहारनपुर जेल में बन्द डॉन और नवनिर्वाचित एमएलसी बृजेश सिंह को एमएलसी पद की शपथ दिलाई गई। इससे पहले उन्हें भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच लखनऊ रवाना किया गया था। गौरतलब है कि बृजेश सिंह बुधवार को विधान परिषद सदस्य की शपथ लेने राजधानी लखनऊ नहीं पहुंच पाए थे। दरअसल मतदान से पूर्व सत्ता के इशारे पर बृजेश सिंह को वाराणसी केंद्रीय कारागार से पहले शाहजहांपुर और फिर सहारनपुर जेल भेज दिया गया था। बृजेश सिंह ने कहा कि क्षेत्र का विकास ही उनका एक मात्र मकसद है।
 
कौन है बृजेश सिंह?
बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनके पिता रविन्द्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे। सियासीतौर पर भी उनका रुतबा कम नहीं था। बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी होनहार थे। 1984 में इंटर की परीक्षा में उन्होंने बहुत अच्छे अंक पाकर टॉप किया। उसके बाद बृजेश ने यूपी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की। वहां भी उनका नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था।
 
एक होनहार छात्र कैसे बन गया डॉन?
पिता की हत्या ने बृजेश को माफिया डॉन बना दिया। बृजेश सिंह का उनके पिता रविंद्र सिंह से काफी लगाव था। वह चाहते थे कि बृजेश पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बने। समाज में उसका नाम हो। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश के पिता रविन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई। इस काम को उनके सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने साथियों के साथ मिलकर अंजाम दिया था। राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को जन्म दिया। इसी भावना के चलते बृजेश ने जाने अनजाने में अपराध की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया।
 
बृजेश सिंह ने बदले के लिए एक साल का इंतजार किया और आखिर वह दिन आ ही गया जिसका बृजेश को इंतजार था। 27 मई 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा बृजेश के सामने आ गया और उसे देखते ही बृजेश का खून खौल उठा और उसने दिन दहाड़े अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया। यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज हुआ। हरिहर को मौत के घाट उतारने के बाद भी बृजेश सिंह का गुस्सा शांत नहीं हुआ। उसे उन लोगों की भी तलाश थी जो उसके पिता की हत्या में हरिहर के साथ शामिल थे। 9 अप्रैल 1986 का दिन जब अचानक बनारस का सिकरौरा गांव गोलियों की आवाज़ से गूंज उठा। 
 
दरअसल, यहां बृजेश सिंह ने अपने पिता की हत्या में शामिल रहे पांच लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला था। इस वारदात को अंजान देने के बाद पहली बार बृजेश गिरफ्तार हुए और इस घटना के बाद बृजेश देश के सबसे बड़े डॉन की फेहरिस्त में शामिल हो गया और उसकी दोस्ती दाऊद से हुई लेकिन ये दोस्ती ज्यादा दिन चल नहीं पाई और ये दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए।
  
कैसे हुई दाऊद से दोस्ती? 
90 के दशक में बृजेश सिंह का उत्तर प्रदेश के बाहुबली मुख्तार अंसारी के गैंग से आमना-सामना हुआ। इस दौरान वह पुलिस और मुख्तार के गैंग से बचने के लिए मुंबई चले गए। यहां पहुंचने के बाद दाऊद के करीबी सुभाष ठाकुर से मुलाकात की। फिर इनके माध्यम से दाऊद से मिले। दाऊद के जीजा इब्राहिम कासकर की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश 12 फरवरी 1992 को जेजे अस्पताल पहुंचा। यहां डॉक्टर बनकर गवली के गैंग के 4 लोगों को पुलिस के पहरे के बीच मार दिया। उनकी इस शातिराना चाल देखकर दाऊद बृजेश के दिमाग का लोहा मान गया। इसके बाद दोनों बेहद करीब आ गए।
 
दाऊद और बृजेश की दोस्ती...आखिर दुश्मनी में क्यों बदल गई?
1993 में हुए मुंबई ब्लास्ट के बाद दोनों में मतभेद हो गया। जानकारों की मानें तो बृजेश सिंह मुंबई को दहलाने 
की दाऊद की योजना से पूरी तरह अनजान था। इस ब्लास्ट में हजारों बेगुनाह मारे गए और सैंकड़ों लोग घायल हुए। इस वारदात से बृजेश सिंह को गहरा आघात लगा। दाऊद के इस कदम के बाद दोनों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई। माना जाता है कि इसके बाद दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। हालांकि मुंबई ब्लास्ट के पहले ही दाऊद ने देश छोड़ दिया, लेकिन बृजेश दाऊद को मारने का प्लान बनाने लगा। जिसके लिए कई बार भेष बदल कर दाऊद तक पहुंचने की कोशिश भी की लेकिन अपने मनसूबे में सफल नहीं हो पाया। इस घटना के बाद बृजेश को "देश भक्त डॉन" "हिन्दू डॉन " और पूर्व का रोबिन हुड के नाम से जाना जाने लगा। साल 2008 में बृजेश सिंह को उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया।