गुजारा भत्ता के मामलों में संपत्ति और देनदारी का ब्योरा देना अनिवार्य करें अदालतें: इलाहाबाद हाई कोर्ट

punjabkesari.in Friday, Mar 15, 2024 - 11:53 AM (IST)

प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में प्रदेश के सभी न्यायिक मजिस्ट्रेट और परिवार अदालतों के पीठासीन अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे गुजारा भत्ते के मामलों में अनिवार्य रूप से एक विशेष आदेश पारित कर पक्षों (पति एवं पत्नी) को हलफनामा दाखिल कर संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने के लिए कहें। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने संतोष कुमार जायसवाल नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। जायसवाल ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसके तहत उन्हें अपनी पत्नी और बेटी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। जायसवाल की पत्नी के मुताबिक उनका पति किराना की दुकान से हर महीने दो लाख रुपये कमा कर रहा है। 

वहीं जायसवाल का कहना है कि वह किराए की जगह पर एक छोटी सी किराना की दुकान चलाते हैं, जबकि उनकी पत्नी एक ब्यूटी पार्लर का संचालन कर रही है और प्रति माह 30,000 रुपये कमा रही है। निचली अदालत ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत जायसवाल को अपनी पत्नी को दो हजार रुपये प्रति माह और बेटी को एक हजार रुपये प्रति माह का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। जायसवाल के अधिवक्ता ने दलील दी कि निचली अदालत रजनेश बनाम नेहा के मामले में उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश का अनुपालन करने में विफल रही क्योंकि उसने संपत्ति एवं देनदारियों के खुलासे के लिए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश नहीं दिया। 

हलफनामा नहीं देने से अदालत आवेदक की वित्तीय स्थिति के बारे में सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकती। पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने मंगलवार को पारित अपने आदेश में गुजारा भत्ता के आदेश को दरकिनार कर दिया और जिला अदालत को संबद्ध पक्षों से हलफनामा मंगाकर गुजारा भत्ते के मामले में नए सिरे से निर्णय करने को कहा। उच्चतम न्यायालय ने रजनेश बनाम नेहा के मामले में कहा था कि गुजारा भत्ता के मुकदमे में चूंकि पत्नी अपनी जरूरतें बढ़ा दिया करती है और पति अपनी वास्तविक आय छिपाया करता है, इसलिए संबद्ध पक्षों को एक हलफनामा दाखिल कर अपनी संपत्ति एवं देनदारियों का खुलासा करने का निर्देश देना आवश्यक है। 
 

Content Writer

Tamanna Bhardwaj