यूपी: बुन्देलखंड में भूख से एक और दलित मजदूर की मौत, भीख मांगने को मजबूर बच्चे

punjabkesari.in Monday, Aug 21, 2017 - 05:07 PM (IST)

बुन्देलखंड: गरीबी, बेबसी ओर लाचारी भरी जिंदगी की सच्ची तस्वीर देखनी है तो आपको बुन्देलखंड की इस खबर पर नजर डालनी पड़ेगी। जहां परिवार के हालत ऐसी कि एक बार गरीबी भी अपना मुंह मोड़ ले, बेबसी ऐसी कि जिंदा रहने के लिए दो वक्त की रोटी की तलाश, लाचारी ऐसी कि हमारे समाज और प्रशासनिक तंत्र को सोचने पर मजबूर कर दे। जी हाँ ये किसी फिल्म की कहानी नही बल्कि बुन्देलखंण्ड के एक परिवार की दर्द भरी कहानी की दास्तान है।

यहां के एक दलित मजदूर की भूख से मौत का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि मजदूर के घर एक सप्ताह से चूल्हा नहीं जला था। मनरेगा में कई दिन से उसे काम नहीं मिल रहा था, इस वजह से परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। उसके बच्चे कई दिन से भीख मांगकर अपना पेट भर रहे थे। हालात ऐसे थे कि परिवार के पास मृतक का अंतिम संस्कार करने के पैसे नहीं थे। घटना के सामने आने के बाद प्रशासनिक अफसर मौके पर पहुंचे। उन्होंने अंतिम संस्कार के लिए 5 हजार रुपए और अनाज का इंतजाम करने के साथ ही पोस्टमार्टम के निर्देश दिए।

क्या है पूरा मामला?
जानकारी के अनुसार मामला महोबा सदर तहसील के घनडुवा गांव का है। यहां के रहने वाले दलित मजदूर छुट्टन के पास कुछ बीघा जमीन थी, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वो इस साल अपना खेत नहीं जोत सका। छुट्टन और उसकी पत्नी ऊषा अपने 3 बच्चों और बूढ़ी मां के पालन-पोषण के लिए मनरेगा की मजदूरी करते थे। दोनों ने मनरेगा में मजदूरी की थी, लेकिन उन्हें इसका न ही भुगतान मिला, न ही मजदूरी मिली। इस वजह से छुट्टन बुरी तरह आर्थिक तंगी की चपेट में आ गया।

1 सप्ताह से पति को खिलाने के लिए कुछ नहीं था-पत्नी
मृतक की पत्नी ऊषा ने बताया कि 2 वर्षों से खेतों में अनाज की कम पैदावार से हम परेशान हो उठे हैं। करीब 1 सप्ताह से मेरे पास पति को खिलाने के लिए कुछ नहीं था। 7 दिन से घर का चूल्हा नहीं जला था। कुछ भी पकाने को नहीं था, न ही पकाने का कोई सामान था। बच्चे पड़ोस और इधर-उधर से खाकर पेट भर रहे थे। बच्चे महुआ और बेर से बच्चे काम चला रहे थे।

गरीबी से लंबे समय से संघर्ष कर रहा परिवार-ग्रामीण
वहीं गांववालों का कहना है कि परिवार गरीबी के दर्द से काफी लंबे समय से संघर्ष कर रहा है। इस परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। परिवार के मुखिया की बीमारी से परिवार कर्ज में डूब गया है। प्रधान और सरकारी राशन की दुकान से मिलने वाले अनाज को कर्जदार ले जाते हैं। करीब 1 सप्ताह से मृतक के मुंह में एक निवाला भी नहीं गया था जिसके चलते उसकी भूख से मौत हो गई।

भूख से नहीं बीमारी से हुई मौत-ADM
मामले की सूचना मिलते ही जांच के लिए मौके पर पहुंचे एडीएम न्यायायिक महेंद्र सिंह ने मृतक की बेहद खराब आर्थिक स्थिति को देखकर दुख प्रकट किया। साथ ही उन्होंने परिवार को सहायता मुहैया कराते हुए तुरंत 50 किलो अनाज और अंतिम संस्कार के लिए 5 हजार रुपए दिए। एडीएम ने बताया कि मृतक बीमारी से ग्रस्त था। परिवार की आर्थिक स्थिति जरूर खराब है, लेकिन मौत बीमारी के चलते ही हुई है। फिर भी मौत के सही कारणों का पता लगाने के लिए मृतक का पोस्टमार्टम कराया जा रहा है। मनरेगा की मजदूरी के रुपए नहीं मिलने की बात सामने आई है, जिसकी जांच कराई जा रही है।