ई-रिक्शा पर प्रसव मामले का डीजी हेल्थ ने लिया संज्ञान, तीन दिन में मांगी रिपोर्ट

punjabkesari.in Saturday, Dec 16, 2017 - 03:15 PM (IST)

लखनऊ: राजधानी के चिनहट इलाके में गर्भवती को एम्बुलेंस ना मिलने से ई-रिक्शा में प्रसव होने के मामले का सरकार ने संज्ञान लिया है। स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉ. पद्माकर सिंह ने इस मामले की 3 दिन में रिपोर्ट देने का आदेश जारी कर दिया गया है। डीजी हेल्थ ने एम्बुलेंस 102 के साथ लोहिया अस्पताल के डायरेक्टर से भी इस मामले में लापरवाही बरते जाने पर जबाव मांगा है।

यह है मामला
इंदिरा नगर थाना क्षेत्र के चिनहट की रहने वाली साबिया (27) को वीरवार की दोपहर को लेबर पेन शुरू हो गया।  तब उसके परिजनों ने 108 एंबुलेंस के नंबर पर फोन किया। पति हकीमुद्दीन (33) का आरोप है कि फोन करने के एक घंटे बाद भी एम्बुलेंस नहीं पहुंची। सादिया की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। घरवालों ने काफी देर तक इंतजार किया, लेकिन एम्बुलेंस नहीं आई। इसके बाद परिजन उसे एक ई-रिक्शा लेकर लोहिया अस्पताल के लिए निकले। वाहन पॉलीटेक्निक चौराहे से थोड़ी दूर ही बढ़ा था, तभी ई-रिक्शा वाले ने अचानक ब्रेक लगा दिया। इससे रिक्शा जंप कर गया और साबिया ने उसके अंदर ही बच्चे को जन्म दे दिया। अस्पताल पहुंचने पर तुरंत जच्चा और बच्चा को भर्ती कर लिया गया।

अस्पताल में नहीं मिली तत्काल सुविधा
अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप महिला के पति हकीमुद्दीन ने बताया कि वो दुकानों पर ब्रेड, बिस्कुट और नमकीन की सप्लाई करता है। उसकी कोई फिक्स वेतन नहीं है। उसकी पहले से तीन बेटियां है। बड़ी बेटी एलिमा (9), दूसरी बेटी इकरा (6) और सबसे छोटी बेटी जिकरा (3) है। घर में कोई बेटा नहीं था, दोनों एक बेटा चाहते थे। उसकी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया। यह बच्चा उन दोनों का चौथी संतान है। हकीमुद्दीन ने बताया जब वो किसी तरह हॉस्पिटल पहुंचे तो वहां पर कोई भी नर्स या महिला कर्मचारी पशेंट को स्ट्रेचर से अंदर ले जाने के लिए नहीं आई। वह स्ट्रेचर के लिए इधर-उधर भगते रहे। थोड़ी देर बाद उनकी नजर एक स्ट्रेचर पर पड़ी। उसके बाद वे दौड़कर स्ट्रेचर खींच कर लेकर आए। उसके बाद खुद ही स्ट्रेचर खींचते हुए हॉस्पिटल की इमरजेंसी के अंदर ले गए। तब जाकर डॉक्टर्स ने उसकी पत्नी व बच्चे को देखा।

जच्चा बच्चा के लिए ये हैं सुविधाएं
गर्भवती को निशुल्क इलाज के लिए घर से अस्पताल ले जाना। प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा को अस्पताल से घर पहुंचाना। गर्भवती व शिशु को बेहतर इलाज के लिए एक से दूसरे अस्पताल छोड़ना। 1 साल तक के शिशु को बीमार होने पर घर से अस्पताल ले जाना और छोड़ना।