भगवान राम की नगरी अयोध्या में 14 कोसी परिक्रमा को लेकर जिला प्रशासन सख्त, सुरक्षा में चप्पे चप्पे पर फोर्स तैनात

punjabkesari.in Thursday, Nov 11, 2021 - 06:42 PM (IST)

अयोध्या: भगवान राम की नगरी अयोध्या में शुक्रवार को चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बीच 14 कोसी परिक्रमा कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सम्पन्न होगी। चौबीस घंटे चलने वाली परिक्रमा 12 नवम्बर को प्रात: 1022 बजे से शुरू होगी। जिलाधिकारी नीतीश कुमार ने गुरुवार को बताया कि चौदह कोसी परिक्रमा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं। जिला प्रशासन की तरफ से श्रद्धालुओं से यह बार-बार अपील की जा रही है कि कोविड 19 को देखते हुए मास्क का प्रयोग जरूर करें। उन्होंने बताया कि जिले की शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ही परिक्रमा में भाग लेते हैं जिससे कोविड-19 का सुचारू रूप से पालन कराया जाना जरूरी है। सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जिला प्रशासन सतर्क है जगह-जगह पर पुलिस बल तैनात किये गये हैं। परिक्रमा को सकुशल सम्पन्न कराने के लिये पांच जोन व 43 सेक्टरों में बांटकर निगरानी के लिये पुलिस फोर्स के साथ मजिस्ट्रेटों की तैनाती की गयी है। परिक्रमा 13 नवम्बर को सुबह 0917 बजे समाप्त होगी।

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मान्यताओं के मुताबिक बड़ा परिक्रमा अर्थात चौदह कोसी परिक्रमा का सीधा संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से है। किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से अपने को जोड़ते हुए अयोध्यावासियों ने प्रत्येक वर्ष के लिये एक कोस परिक्रमा की होगी। इस प्रकार चौदह वर्ष के लिये चौदह कोस परिक्रमा पूरा किया, तभी से यह परम्परा बन गयी और उस परम्परा का निर्वाह करते हुए आज भी कार्तिक की अमावस्या अर्थात् दीपावली के नौवें दिन श्रद्धालु यहां आकर करीब 42 किलोमीटर अर्थात् चौदह कोस की परिक्रमा एक निर्धारित मार्ग पर अयोध्या और फैजाबाद नगर तक चौतरफा पैदल नंगे पांव चलकर अपनी-अपनी परिक्रमा पूरी करते हैं।

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कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शुरू होने वाले इस परिक्रमा में ज्यादातर श्रद्धालु ग्रामीण अंचलों से आते हैं। यह एक-दो दिन पूर्व ही यहां आकर अपने परिजनों व साथियों के साथ विभिन्न मंदिरों में आकर शरण लेते हैं और परिक्रमा के एक दिन निश्चित समय पर सरयू स्नान कर अपनी परिक्रमा शुरू कर देते हैं, जो उसी स्थान पर पुन: पहुंचने पर समाप्त होती है। परिक्रमा में ज्यादातर लोग लगातार चलकर अपनी परिक्रमा पूरा करना चाहते हैं। क्योंकि रुक जाने पर मांसपेशियों पर खिंचाव आ जाने से थकान का अनुभव जल्दी होने लगता है। यद्यपि श्रद्धालुओं में न रुकने की चाह रहती है फिर भी लम्बी दूरी की वजह से रुकना तो पड़ता है। विश्राम के लिए रुकने वालों में ज्यादातर वृद्ध या अधेड़ उम्र के लोग रहते हैं। इनके विश्राम के लिए जिला प्रशासन के अलावा तमाम स्वयंसेवी संस्थायें आगे आकर जगह-जगह विश्रामालय, नि:शुल्क प्रारंभिक चिकित्सा केन्द्र व जलपान गृहों का इंतजाम करती हैं। श्रद्धालु औसतन अपनी-अपनी परिक्रमा करीब छह-सात घंटें में पूरी कर लेते हैं। 


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Content Writer

Ramkesh

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