डॉल्फिन डेः इनमें नहीं होती है देखने की क्षमता, जानें ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य

punjabkesari.in Monday, Oct 05, 2020 - 12:42 PM (IST)

यूपी डेस्कः भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन के लिए  उत्तर भारत की पांच प्रमुख नदियों यमुना, चंबल, सिंध, क्वारी व पहुज के संगम स्थल ‘पंचनदा' सबसे खास पर्यावास है। क्योंकि नदियों का संगम इनका मुख्य प्राकृतिक वास होता है और यहां पर एक साथ 16 से अधिक डॉल्फिनों को एक समय में एक साथ पर्यावरण विशेषज्ञों ने देखा, तभी से देश के प्राणी वैज्ञानिक पंचनदा को डाल्फिनों के लिये महत्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं और इस स्थान को पूर्णतया सुरक्षित रखने की मांग भी कर रहे हैं।

बता दें कि  डाल्फिन स्तनधारी जीव हैं जो पानी में रहने के कारण मछली होने को भ्रम पैदा करती है, सामान्यत इसे लोग सूंस के नाम से पुकारते है। इसमें देखने की क्षमता नहीं होती हैं लेकिन सोनार यानी घ्वनि प्रक्रिया बेहद तीव्र होती हैं, जिसके बलबूते खतरे को समझती है।

मादा डॉल्फिन 2.70 मीटर और वजन 100 से 150 किलो तक होता है, नर छोटा होता है, प्रजनन समय जनवरी से जून तक रहता है। यह एक बार में सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है। डॉल्फिन को बचाने की दिशा में सबसे पहला कदम 1979 में चंबल नदी में राष्ट्रीय सेंचुरी बना कर किया गया। डॉल्फिन को वन्य जीव प्राणी संरक्षण अघिनियम 1972 में शामिल किया गया। हर साल एक अनुमान के मुताबिक 100 डाल्फिन विभिन्न तरीके से मौत की शिकार हो जाती हैं, इनमें मुख्यतया मछली के शिकार के दौरान जाल में फंसने से होती है, कुछ को तस्कर लोग डाल्फिन का तेल निकालने के इरादे से मार डालते हैं।

दूसरा कारण नदियों का उथला होना यानी प्राकृतिक वास स्थलों का नष्ट होना, नदियों में प्रदूषण होना और नदियों में बन रहे बांध भी इनके आने-जाने को प्रभावित करते हैं। अवैध शिकार की वजह है कि डॉल्फिन के जिस्म से निकलने वाले तेल का उपयोग मछलियों के शिकार एवं मानव हड्डियों को मजबूत करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि इसके तेल की बाजार में कीमतें भी अधिक होती हैं। इसलिए शिकारियों की नजरों में डॉल्फिन एक धन कमाने का जरिया बन चुकी है।

डॉल्फिन का शिकार दंडनीय अपराध है। शिकार करते हुए पकड़े जाने पर आरोपी को छह साल के कारावास तथा पचास हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है। डॉल्फिन संरक्षण के लिए नमामि गंगे परियोजना मैं बहुत महत्व दिया जा रहा है अभी हाल में ही कई सारी डॉल्फिन संरक्षण की परियोजनाएं क्रियान्वित की गई है जिनमें सामुदायिक सामुदायिक सहभागिता को निश्चित रूप से शामिल करने का आवाहन किया गया।

 

 

 

 

Moulshree Tripathi