डॉ. वरूणवीर की CM योगी से मांग, कहा- कपिलवस्तु में बौद्ध स्तूप को पर्यटन स्थल के तौर पर करें विकसित

punjabkesari.in Friday, Feb 26, 2021 - 02:47 PM (IST)

सहारनपुर: योग गुरू डॉ. वरूणवीर ने भगवान गौतम बुद्ध की जन्मस्थली लुबंनी से मात्र 10 किमी की दूरी पर स्थित सिद्धार्थनगर जिले के कपिलवस्तु में बौद्ध स्तूप को धार्मिक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग की है। 

डॉ वरूणवीर ने शुक्रवार को कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या को विश्व स्तरीय धार्मिक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने का काम कर रहे हैं, उम्मीद है कि उसी तरह वह भगवान बुद्ध जिन्हें दुनिया के अनेक देशों में माना और पूजा जाता हैं, पर भी अपना विशेष ध्यान देंगे। उन्होंने इस स्थान का विकास कराए जाने और वहां यात्रियों के लिए तमाम जरूरी सुविधाएं एवं साधन मुहैया कराने की मांग की।       

योग गुरू ने हाल ही में बौद्ध स्तूप की यात्रा का वृतांत सुनाते हुये कहा कि कपिलवस्तु में पिपरावां स्थित भगवान गौतमबुद्ध के अंडाकार स्तूप के पास ध्यान लगाने से मन की एकाग्रता शून्य के ऊपर बहुत गहरे रूप से प्रतीत हुई। उन्हें महसूस हुआ कि वह अंदर से बिल्कुल रिक्त हैं और उनके शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है। केवल आत्मा का अस्तित्व है जो परमात्मा का आधार है। मनुष्य जिस शरीर को अपना मानता है वह कुछ नहीं है। यदि कुछ अपना है तो वह है राग, द्वेष, अभिनिवेष (मृत्यु का भय), घृणा, क्रोध, मोह और लालच जिस दिन मनुष्य अपने इस आपको छोड़ देगा उस दिन वह भगवान बुद्ध की स्थिति को प्राप्त जाता है।

उन्होंने कहा कि पूरे स्थल पर अनूठी सात्विकता और भगवान बुद्ध की मौजूदगी का अहसास होता है। वहां की आबोहवा में भगवान बुद्ध की मौजूदगी बनी हुई है। भगवान बुद्ध के अवशेषों को आठ हिस्सों में बांटा गया था जिसका एक हिस्सा वहां पिपरवां में स्तूप के नीचे रखा है। इस स्थान से भगवान बुद्ध का जन्म स्थान लुंबिनी 10 किलोमीटर पूरब में स्थित है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिट्टी के टीले के नीचे दबे भगवान बुद्ध के पिता शुद्धोधन के राजमहल के अवशेष मौजूद हैं। इस महत्वपूर्ण स्थान की यात्रा सम्राट अशोक ने 232 ईसा पूर्व की थी और स्तूप एवं स्मारक का निर्माण कराया था। चीनी यात्री फाह्यान ने 405 से 411 ईसा पूर्व और हर्ष के शासनकाल के दौरान चीनी पर्यटक युवानच्वांग ने (करीब 630 ईसा के पूर्व) यहां की यात्रा की थी। 

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Umakant yadav