घर का चूल्हा जलाने के लिए मौत का सफर तय करने को मजबूर हैं अन्नदाता

punjabkesari.in Thursday, Jan 04, 2018 - 12:15 PM (IST)

बिजनौरः आजादी के 70 साल बाद भी नए दौर में प्रवेश कर चुके भारत में डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकारों की हकीकत आज भी कुछ और ही बयां करती है। आजादी के कई दशक बाद भी अन्नदाता मौत का सफर करने को मजबूर है। पुल न होने की वजह से अन्नदाता मजबूरन नाव के जरिए 20 से 25 फिट गहरे पानी से रोजाना मौत का सफर तय करने को मजबूर है। जबकि जिला प्रशासन के अधिकारी इससे आंखे मूंद कर बैठे हुए हैं।

रोज करना पड़ता है मौत का सफर तय
दरअसल राजरामपुर खादर क्षेत्र के करीब दर्जनों गांव की हजारों हेक्टेयर जमीन का रकबा गंगा के दूसरी ओर पड़ता है। जहां के किसानों के लिए सरकार की ओर से गंगा के दूसरी ओर जाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। जिस कारण हजारों किसानो को रोज अपने खेत पर जाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। तब जाकर इनके घर का चूल्हा जलता है। अपनी गन्ने जैसी सर्दियों की फसल को मिलों तक पहुंचाने के लिए अपनी जान को जोखिम मे डालकर मौत का सफर तय करते हैं।

आम आदमी के हो जाएंगे रोंगटे खड़े 
इस जगह के किसान अपनी फसलों को खेतों से ट्रेक्टर-ट्राली और बुग्गियों के सहारे गंगा के किनारे तक लेकर आते हैं और फिर नाव के सहारे 20-25 फिट गहरे गंगा के पानी मे जान जोखिम मे डालकर अपना सफर तय करते है। जिसे देखकर आम आदमी के तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। किसानों को अपनी फसलों को उगाने के लिए खून पसीना एक करना पड़ता है तब जाकर फसल पैदा की जाती है।

शासन-प्रशासन है बेखबर 
उसके बाद उसको विक्रय स्थल तक ले जाने के लिए मौत का सफर तय करना पड़ता है। अभी हाल ही में एक किसान खेत से वापिस आते हुए गंगा में गिर गया था, जिसकी लाश अभी तक नही मिली है। दो वक्त की रोटी के लिए अन्नदाताओं को रोजाना मौत का सफर तय करना पड़ता है। जिस पर अभी भी शासन-प्रशासन बेखबर है ।