Father's day: दिल को छू जाएगी इस पिता की कहानी, जिसने दिव्यांग बच्चे को बना दिया स्पेशल

punjabkesari.in Sunday, Jun 17, 2018 - 03:01 PM (IST)

बरेलीः फ़िल्म 'तारे जमीन पर' तो अापने देखी होगी। जो एक ऐसे बच्चे की कहानी बयां करती है जो कम बोलना, कम समझ पाना जैसी दिक्कतों से ग्रसत था। इस फिल्म के इसकी खास पात्र इशान की झलक बरेली जिले के एक बच्चे अर्पण शर्मा में देखने को मिली। जी हां अर्पण शर्मा बचपन से ही मानसिक रूप से बीमार है और वह 60% दिव्यांगता का शिकार है। उसके बावजूद भी उनकी प्रतिभा ने सबको मजबूर कर दिया है ये सोचने पर कि अगर कुछ कर दिखाने की चाहत हो तो कोई भी चीज आपको सफल होने से रोक नहीं सकती। उसके पिता की कड़ी मेहनत से अर्पण ने खेल की दुनिया में बरेली ही नहीं बल्कि विदेशों तक भारत का नाम रोशन किया है।

पिता ने बेटे साथ खुद भी की कड़ी मेहनत 
आज फादर्स डे पर हम आपको एक ऐसे पिता की कहानी बताने जा रहे हैं। जिन्होंने खुद की सरकारी नौकरी में रहते हुए अपने एक दिव्यांग बच्चे को स्पेशल बना दिया। अपने दिव्यांग बच्चे को स्पेशल बनाने के लिए सुनील शर्मा सुबह 4 बजे उठकर अपने दिव्यांग बेटे अर्पण को स्टेडियम लेकर जाते और वहां पहुंचकर उन्हें दौड़ लगवाते। उसके बाद सुनील भी अपने बेटे के साथ-साथ ही दौड़ते थे। दौड़ लगवाने के बाद सुनील अर्पण को वेट लिफ्टिंग कराते थे और उसके बाद अपनी नौकरी करने के लिए रोजाना 100 किलोमीटर का सफर तय करते थे।

बेटे ने पिता का नाम विदेशों तक किया रोशन 
जिसके बाद सालों तक की कठिन परीक्षा के बाद अब अर्पण पिता सुनील का नाम भारत में ही नही बल्कि विदेशों रोशन किया। दिव्यांग होने के बावजूद भी अपने पिता सुनील की कड़ी मेहनत के बाद अपर्ण अब तक 30 से अधिक मेडल और सर्टिफिकेट जीत चुका है। अर्पण ने इंटरनेशनल लेवल पर ऑस्ट्रेलिया में आयोजित हुए एशिया पैसेफिक रीजनल गेम में सिल्वर पदक जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया था। उसके बाद फिर से सुनील ने अपने बेटे अर्पण के साथ मेहनत शुरू कर दी। अर्पण ने अमेरिका में जाकर पावर लिफ्टिंग गेम में चौथा स्थान हासिल किया और देश का नाम भी गर्व से ऊंचा कर दिया।

हासिल किए अलग-अलग मेडल्स
अर्पण का सफर यहीं नही रुका। उसने ने पटियाला में आयोजित हुए नेशनल गेम के पावर लिफ्टिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया। उसके बाद बिहार में अर्पण ने पैरा ओलंपिक के स्पेशल गेम्स में सिल्वर पदक हासिल कर पिता को गर्व का अहसास कराया। अर्पण सही ढंग से बोल भी नहीं पाता है, लेकिन कुछ अनकहे शब्दों में दिव्यांग अर्पण ने अपने पिता के संघर्षों की कहानी अपनी जुबानी बताने की कोशिश की।

अर्पण की इस मेहनत के पीछे उसके पिता का हाथ- मां
अर्पण की मां का कहना है कि अर्पण की इस मेहनत के पीछे उसके पिता का हाथ है। सुबह 4 बजे उठकर उसके साथ मेहनत करके आज उसकी दिव्यांगता को उसका हथियार बना दिया है। दिन रात एक करके उसके पिता नव आज उसको नेशनल खिलाड़ी बना दिया है। आज अर्पण की मां अपने दिव्यांग बेटे पर तो गर्व कर ही रही है बल्कि वह अपने पति सुनील पर भी गर्व महसूस कर रही है।

Tamanna Bhardwaj