पवित्र भूमि से ऐतिहासिक पहल की शुरुआत, मासिक धर्म के लिए अब ''मानविका'' शब्द का होगा प्रयोग!

punjabkesari.in Thursday, Jul 10, 2025 - 03:42 PM (IST)

अयोध्या: पवित्र भूमि से एक ऐसी ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हुई है, जो महिलाओं के जीवन से जुड़े एक अत्यंत संवेदनशील विषय को नई भाषा, नई दृष्टि और नए आत्मसम्मान से जोड़ने का कार्य करेगी। सामाजिक कार्यकर्ता और युवा चिंतक अभिषेक सावंत "रामानुगामी" ने मासिक धर्म जैसे विषय पर समाज में व्याप्त संकोच, हिचक और चुप्पी को तोड़ने के लिए एक नया शब्द प्रस्तावित किया है – 'मानविका'। इस शब्द के साथ उन्होंने एक नया उत्सव भी आरंभ किया है जिसे हर साल 10 जुलाई को "मानविका उत्सव दिवस" के रूप में मनाने की घोषणा की गई है।

इस भाषा के पीछे एक सामाजिक क्रांति की सोच
इस शब्द और उत्सव के पीछे केवल एक भाषाई प्रयोग नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की सोच है। अभिषेक का मानना है कि जब तक भाषा नहीं बदलेगी, तब तक सोच नहीं बदलेगी। जिस प्रकार 'विकलांग' को 'दिव्यांग' कहकर समाज ने सम्मानजनक दृष्टिकोण विकसित किया, उसी प्रकार अब 'मासिक धर्म' को 'मानविका' कहने की आवश्यकता है। 'मानविका' शब्द में मानवता, नारीत्व और जैविक गरिमा का समावेश है। यह न केवल वैज्ञानिक सोच को सम्मान देता है, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति की दिशा में भी एक सार्थक कदम है।

मानविका उत्सव केवल एक दिवस नहीं, यह एक जन चेतना आंदोलन है
मानविका उत्सव केवल एक दिवस नहीं है, यह एक जनचेतना आंदोलन है जिसमें महिलाओं, किशोरियों, शिक्षकों, अभिभावकों और चिकित्सकों की भागीदारी से संवाद और समझ का वातावरण बनाया जाएगा। राज्य के सभी विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में रचनात्मक गतिविधियाँ होंगी – जैसे नाटक, पोस्टर, निबंध प्रतियोगिता, जनसंवाद, स्वास्थ्य शिविर, प्रेरक वक्ताओं के संबोधन, और 'मानविका मित्र क्लब' की स्थापना। यह आयोजन केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ग्रामीण अंचलों, पंचायतों, स्लम बस्तियों और कम शिक्षित तबकों तक भी पहुँचेगा।

मासिक धर्म को सामान्य बनाना उद्देश्य
मानविका उत्सव की यह पहल उत्तर प्रदेश में अपने आप में अनोखी है, क्योंकि पहली बार किसी पुरुष सामाजिक कार्यकर्ता ने सार्वजनिक रूप से इस विषय पर न केवल संवाद शुरू किया है, बल्कि उसे राज्य स्तरीय मान्यता की दिशा में भी प्रयास प्रारंभ किया है। इस संवाद का उद्देश्य केवल मासिक धर्म को सामान्य बनाना नहीं है, बल्कि उसे सम्मान के साथ जोड़ना है। यह समाज के सोचने, बोलने और व्यवहार करने के तरीके को बदलने का आह्वान है।

अभिषेक सावंत ने की प्रेस वार्ता
अभिषेक सावंत ने प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि इस अभियान को पहले चरण में उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में पहुँचाया जाएगा। इस कार्य के लिए जिलेवार समितियाँ गठित की जाएंगी, जिनमें स्थानीय सामाजिक संगठन, छात्र समूह, महिला मंडल और चिकित्सक जुड़ेंगे। 28 मई को मनाए जाने वाले Menstrual Hygiene Day की तर्ज पर अब 10 जुलाई को मानविका उत्सव दिवस के रूप में घोषित किए जाने हेतु प्रस्ताव राज्य सरकार को सौंपा जाएगा।

23% किशोरियां मासिक धर्म शुरू होने के बाद स्कूल जाना छोड़ देती हैं
यदि आँकड़ों की दृष्टि से देखा जाए, तो इस आंदोलन की आवश्यकता स्पष्ट हो जाती है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 23% किशोरियाँ मासिक धर्म शुरू होने के बाद स्कूल जाना छोड़ देती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 70% किशोरियाँ पहली बार पीरियड आने पर इसके बारे में कोई पूर्व जानकारी नहीं रखतीं। NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार 60% से अधिक ग्रामीण महिलाएं आज भी कपड़े, राख या असुरक्षित साधनों का उपयोग करती हैं। Menstrual Health Alliance India के अनुसार देश के 50% से अधिक घरों में आज भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं की जाती। इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि 'मानविका' शब्द और उत्सव केवल एक भाषाई बदलाव नहीं, बल्कि सम्मान, शिक्षा, जागरूकता और स्वास्थ्य से जुड़ा व्यापक सामाजिक आंदोलन है।

अभिषेक सावंत बोले- इस विचार को धरातल पर उतारेंगे
इस आंदोलन की शुरुआत अयोध्या से एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की जा रही है। अगले तीन महीनों में अभिषेक सावंत और उनकी टीम अयोध्या के विद्यालयों, महाविद्यालयों, सामाजिक संस्थानों, चिकित्सकों, ग्रामीण पंचायतों और मातृ मंडलों के साथ मिलकर इस विचार को धरातल पर उतारेंगे। प्रत्येक वार्ड, मोहल्ले और गाँव में 'मानविका संवाद', स्वास्थ्य शिविर, जागरूकता रैली और स्थानीय महिला समूहों के साथ चर्चा सत्र आयोजित किए जाएंगे। विशेष ध्यान उन वर्गों पर दिया जाएगा जो सामाजिक रूप से हाशिए पर हैं – जैसे कि कम शिक्षित, ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग।

अयोध्या से बदलाव की शुरुआत"
अयोध्या पायलट प्रोजेक्ट से प्राप्त अनुभव, जन प्रतिक्रिया और डेटा के आधार पर अगले चरणों की रणनीति बनाई जाएगी। फीडबैक का विश्लेषण कर यह निर्धारित किया जाएगा कि किन रूपों में मानविका उत्सव को शेष जनपदों में लागू किया जाए। यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि "अयोध्या से बदलाव की शुरुआत" है – एक ऐसा सांस्कृतिक प्रयोग जो देशभर में आदर्श बन सकता है।

वर्षभर जागरूकता गतिविधियां चलाई जाएंगी
अभियान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया, डॉक्यूमेंट्री, संवाद श्रृंखला, पुस्तक और डिजिटल प्रचार सामग्री का निर्माण भी किया जाएगा। 'मानविका उत्सव' को केवल एक दिन तक सीमित न रखते हुए वर्षभर जागरूकता गतिविधियाँ चलाई जाएँगी, जिससे यह एक सतत आंदोलन के रूप में समाज में स्थिर हो सके। प्रेस वार्ता के अंत में अभिषेक सावंत "रामानुगामी" ने कहा, “मैं चाहता हूं कि वह बच्ची, जो आज भी मासिक धर्म पर बोलने से डरती है, वह आने वाले समय में पूरे आत्मविश्वास से, गर्व से और सम्मान से कहे – 'मैं मानविका हूं।' यही इस शब्द का और इस आंदोलन का अंतिम उद्देश्य है।

तमाम चुप्पियों के विरुद्ध एक शांति-क्रांति है
यह पहल उन तमाम चुप्पियों के विरुद्ध एक शांति-क्रांति है, जो सदियों से स्त्रियों के मन, शरीर और सामाजिक स्थान को सीमित करती रही हैं। यह सिर्फ एक नाम नहीं, यह एक नई पहचान है, जिसमें गरिमा है, ज्ञान है और सबसे बड़ी बात, सहजता है।


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Content Writer

Ramkesh

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