गोरखपुर की वनटांगिया बस्ती में CM के नाम पर सजती हैं दीपमालिकाएं, यहां योगी को ''''राम'''' मानती हैं महिलाएं

punjabkesari.in Friday, Nov 10, 2023 - 05:12 PM (IST)

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगमन का उल्लास छाया हुआ है जिसकी वजह दीपावली पर वनटांगिया बस्ती में उनके नाम पर ही दीपमालिकाएं सजती हैं। प्रशासन अपनी तैयारियों में जुटा है तो गांव के लोग मुख्यमंत्री के स्वागत में अपने.अपने घर.द्वार को साफ सुथरा बनाने, रंग रोगन करने और सजाने संवारने में लगे हैं। तैयारी ऐसी मानों उनके घर उनका आराध्य आने वाला हो। मुख्यमंत्री इस गांव में रविवार को आकर दीपोत्सव मनाएंगे।

जंगल के बीच बसे गांव में ऐसी तैयारी का होना स्वाभाविक भी है। वनटांगिया समुदाय के लिए योगी आदित्यनाथ तारणहार हैं। इनकी सौ साल से अधिक की गुमनामी और बदहाली को सशक्त पहचान और अधिकार दिलाने के साथ विकास संग कदमताल कराने का श्रेय सीएम योगी के ही नाम है। गोरखपुर स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में हर साल दीपावली मनाने वाले मुख्यमंत्री के प्रयासों से इस गांव समेत गोरखपुर, महराजगंज के 23 गांवों और प्रदेश की सभी वनवासी बस्तियों में विकास और हक.हुकूक का अखंड दीप जल रहा है। वास्तव में कुसम्ही जंगल स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन एक ऐसा गांव है जहां दीपावली पर हर दीप .योगी बाबा. के नाम से ही जलता है। साल दर साल यह परंपरा ऐसी मजबूत हो गई है कि साठ साल के बुर्जुर्ग ;महिला.पुरुष दोनों भी बच्चों सी जिद वाली बोली बोलते हैं कि बाबा नहीं आएंगे तो दीया नहीं जलाएंगे।        

ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए बर्तानिया सरकार ने साखू के नए पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की .टांगिया विधि. का इस्तेमाल किया गया इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए।  

कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं। इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे। 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी। नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं तो दूर की कौड़ी थीं। जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की इजाजत नहीं थी। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं। समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कारर्वाई का भय अलग से। साखू के पेड़ों से जंगल संतृप्त हो गया तो वन विभाग ने अस्सी के दशक में वनटांगियों को जंगल से बेदखल करने की कारर्वाई शुरू कर दी। 

Content Writer

Tamanna Bhardwaj