बढ़ रहा बर्ड फ्लू का खतरा: डॉक्टरों की सलाह- बाहरी मुर्गियों को क्वारंटीन करें पालक

punjabkesari.in Sunday, Jan 10, 2021 - 03:08 PM (IST)

मथुरा: बर्ड फ्लू (एवियन इन्फलुईन्जा) की रोकथाम के लिए दीनदयाल वेटेरिनरी यूनिवर्सिटी ने किसानों एवं मुर्गीपालकों को सलाह दी है कि किसी नई जगह से खरीदी मुर्गियों को क्वारन्टाइन में रखने के बाद ही उन्हें फार्म में पाली हुई मुर्गियों के संपर्क में लाना चाहिए। संस्थान के अधिष्ठाता प्रो पंकज कुमार शुक्ला ने रविवार को पत्रकारों से कहा कि बर्ड फ्लू बीमारी का कोई कारगर उपचार नही है। इसलिए इस बीमारी के लक्षण मुर्गियों में दिखाई देते ही पक्षी रोग विशेषज्ञ अथवा पशुचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। पालतू मुर्गियों को, जंगली मुर्गियों खासकर जल पक्षियों से दूर रखना चाहिए।
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बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए अन्य उपायों में एक उम्र की मुर्गियों को एक साथ रखना ,किसी भी आगुन्तक को मुर्गी फार्म में नहीं आने देना, मुर्गी फार्म के प्रवेश द्वार पर हमेशा डिसइन्फैक्टैन्ट का होना, फार्म में काम करने वाले व्यक्तियों की साफ सफाई, फार्म में किसी प्रकार के वाहन का प्रवेश निषेध करना प्रमुख है। प्रो शुक्ला ने बताया कि बीमार मुर्गी के साथ या उसके मल-मूत्र के साथ संपर्क से,बीमार मुर्गियों के संक्रमित दाना, पानी के बर्तन एवं फार्म में काम करने वाले व्यक्तियों के कपड़े, जूते से भी यह बीमारी फैलती है। इस बीमारी का प्रकोप अचानक होता है तथा यह बीमारी मुर्गियों में तेजी से फैलती है। इस बीमारी से अचानक अधिक मृत्यु होती है जो 100 प्रतिशत तक पहॅुच सकती है।

उन्होंने बताया कि बीमार मुर्गियों में दस्त लग जाते है वह छींकती है तथा खॉसी करती है। बीमार मुर्गी सुस्त दिखाई देती है और उसका पंख लटक जाता हैं। मुर्गियों में सांस लेने में परेशानी होती है तथा मुह व नाक से लार निकलती है, चेहरा व गर्दन सूज जाती है एवं ऑखों के आस-पास भी सूजन हो जाती है। इसके अतिरिक्त बीमार मुर्गी अण्डा देना बन्द कर देती है अथवा पतले छिल्के का अण्डा देती हैं एंव कई बार तो अण्डों का आकार भी बिगड़ जाता है। बीमार मुर्गियों का सिर एंव गर्दन मुड़ जाता है उसेे लकवा हो जाता है तथा वह पूरी तरह से गिर जाती है।

प्रो शुक्ला ने बताया कि बर्ड फ्लू मुर्गियों में होने वाला एक संक्रामक रोग है जो कि इन्फलुईन्जा टाइप ए विषाणु से होता है। यद्यपि एवियन इन्फलुईन्जा की बीमारी सभी प्रजाति की मुर्गियों में बीमारी पैदा कर सकती है परन्तु चिकन तथा अन्य प्रजातियों में यह ज्यादा पाई गई है। जल पक्षियों में खास तौर पर जंगली बत्तख इस विषाणु के मुख्य घटक माने जाते है। पालतू बतखों में यह विषाणु बिना बीमारी पैदा किए हुए रह सकता ह जो दूसरे पक्षियों के विषाणु के फैलाव का स्रोत बन सकता है। जो मुर्गियां इस बीमारी के प्रकोप के बाद जीवित बच जाती है उन मुर्गियों के मल-मूत्र में यह विषाणु 10 दिन तक निरंतर आता रहता है, जिससे अन्य स्वस्थ मुर्गियों में इस विषाणु के फैलाव का स्रोत बन सकता है। यह विषाणु मुर्गियों के मल-मूत्र में 4 डिग्री सैलसियस तापमान पर 35 दिन तक जीवित रह सकता है।

इस विषाणु के निर्जीवित करने में कुछ डिस इन्फैक्टैन्टस जैसे कि सोडियम डोडीसाईल सलफेट या आयोडिन रखने वाले डिसइन्फैक्टैन्ट कारागार पाये गये है। उन्होने बताया कि देश के सात राज्यों में यह बीमारी जिस प्रकार फैल गई है और रूकने का नाम नही ले रही है उसे देखते हुए मथुरा के दीन दयाल वेटेरिनरी यूनिवर्सिटी के पोल्ट्री फार्म में भी बर्ड फ्लू का फैलना रोकने के लिए विशेष तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। दुवासू के पोल्ट्री फार्म में की गई तैयारियों की समीक्षा करने के बाद फार्म मे स्वच्छता, नियमित रूप से फुट बाय का प्रयोग, फार्म प्रक्षेत्र में अनचाहे लोगों के आवागमन पर रोक एवं फार्म के कर्मचारियों के स्वच्छता पर जोर दिया जा रहा है। 


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Tamanna Bhardwaj

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