जमीयत उल्मा हिन्द बोले- 490 वर्षों से चला आ रहा देश का सबसे बड़ा हिन्दू-मुस्लिम विवाद खत्म

punjabkesari.in Sunday, Nov 10, 2019 - 02:44 PM (IST)

कानपुर: 490 सालों से चल रहा देश का सबसे बड़ा हिन्दू-मुस्लिम विवाद शनिवार सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समाप्त हो गया है।उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या की विवादित भूमि रामलला के नाम कर दी है, जिसका सभी वर्गों ने स्वागत किया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आने के बाद औधोगिक नगरी कानपुर में भी शांतिपूर्ण माहौल है। मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रो में भी शान्ति का माहौल है तथा मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश जमीयत उल्मा हिन्द के अध्यक्ष मौलाना मतीनुल हक़ उसमा कासमी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट मुल्क की सबसे बड़ी अदालत है। फैसला आने के बाद “कभी ख़ुशी, कभी गम” होता है, लेकिन फैसला सब मानते हैं। उन्होंने कहा कि जैसा फैसला चाहते थे वैसा नहीं आया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक बात बहुत वाजिब कही कि वहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई इसके सबूत नहीं मिले। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कम से कम हम को इस मामले में बरी कर दिया कि हमने कोई मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई। अलबत्ता नीचे कुछ आसार ऐसे मिले जिससे यह साबित होता है कि इससे पहले कोई चीज जरूर थी।

सुप्रीम कोर्ट ने एक बात और साफ कर दी कि कानून के एतबार से काम चलता है। आस्था किसी कि भी हो सकती है, लेकिन कोर्ट के जो फैसले होते हैं वो कानून के मुताबिक होते हैं आस्था के मुताबिक नहीं। यह मुल्क के मुस्तकबिल के लिए बहुत बेहतर चीज है। उसके साथ-साथ एक बात सामने हुई है, कि अब फैसला हो गया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि तमाम मुल्क वासियों को चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान, इस फैसले की वजह से आपस में कोई दरार नहीं करनी चाहिए। हजारों साल से हम जिस तरह से एकता और मोहब्बत सेरहते आए हैं वैसे ही रहें। हमारा मुल्क मजबूत होकर तरक्की करें, जिससे अमन और शान्ति कायम रहे यह हम सबकी मुस्तक़र जरुरत है। उन्होंने लोगों से उम्मीद जताई है कि मुल्क में अमनो-अमान के सिलसिले में कोई इस फैसले के आड़े नहीं आएगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पर्सनल ला बोर्ड रिव्यू पर जाने की बात कहने पर उन्होंने कहा कि यह बड़ो की बात है वो जैसा फैसला करेंगे उसको माना जाएगा। कानूनी एतबार से ऐसी कोई बात नहीं है,उन्होंने कोई गैर कानूनी बात नहीं कही, अगर कानून इसकी इजाजत देता है और वो अपील करते है तो यह क़ानूनी बात होगी। इसलिए वो क्या फैसला करते हैं, लेकिन अमन का क़याम और आपसी भाई-चारे का क़याम बहुत जरुरी है। बहुत से केसो में कानूनी लड़ाई होती रहती है, लेकिन कोई ऐसा काम जो कानून से बाहर हो उसके लिए कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए।

वहीं ओवैसी के बयान पर जमीयत उल्मा के अध्यक्ष ने कहा कि ऐसे मौके पर कोई ऐसी बात जिससे आपसी भाई-चारे में फर्क आए, दरार पड़े बयान नहीं देने चाहिए। वो बात ठीक है कि जज्बात है गम हैं, लेकिन ऐसे बयानों से बचा जाए तो ज्यादा अच्छा होगा। 

Ajay kumar